क्या सचमुच सात जन्मों का बंधन है- शादी?

सोनी राय
सोनी राय

ऐसा कहा जाता है कि शादियां आसमां में बनती है और उनका मिलन धरती पर होता है । ये दो लोगों को नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता है। शादी जीवन का वह पड़ाव है, जो हर पुरुष व स्त्री को परिपूर्ण करता है। भगवान या यूं कहिए कि प्रकृति ने कुछ ऐसी जिम्मेदारियां भी दी हैं, जो कि कोई एक पुरुष या स्त्री अकेले पूरा नहीं कर सकती। इसलिए शादी जैसे संबंध स्थापित किए गए, जिनसे दो लोग मिलकर उन जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं। संसार में शादी से बड़ा कोई पवित्र रिश्ता न बनाया गया है और न ही माना गया है। शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि शादी-विवाह जीवन के अभिन्न अंग हैं।
हालांकि शादी सुनने में एक बहुत ही छोटा सा शब्द है, लेकिन इस शब्द के मायने और सार बहुत बहुत बड़े हैं। इसमें छिपे हैं बहुत सारी रितियां, रिवाज, संस्कृतियों का आदान प्रदान, फेरे, सिंदूर आदि। भले ही शादियों का इतिहास बहुत लंबा रहा हो, लेकिन हर युग में इसके मायने व रूप बदलते रहे हैं। पहले जहां शादियों का मतलब सादगी से होता था आज वहीं शादियां किसी बड़े समारोह या त्योहार से कम नहीं लगती हैं। हर रीति-रिवाज को बढ़ चढकर मनाया जाता है। शादी को दूल्हा दुल्हन के सबसे यादगार पलों में शुमार कर दिया जाता है। हल्दी, मेहंदी, फेरे, सेहरा हर रस्म में चार चांद लगा दिए जाते हैं।
शादी किसी समारोह तक ही सीमित नहीं रह जाता बल्कि एक ऐसा समां बन जाता है जहां शादी के नाम पर दिलखोल कर पैसे खर्च किए जाते हैं और वाह वाही लूटी जाती है। आजकल तो शादी की तैयारी देखकर ही किसी की हैसियत का पता लगाया जा सकता है। लेकिन ऐसे में वे लोग जो कि निम्र स्तर के हैं, ऐसी शादियां करने में असमर्थ होते हैं। कई केसों में तो ऐसा भी देखा जाता है कि एक बेटी की शादी करने के लिए मध्यमवर्गीय लोग अपने जीवन भर की कमाई भी लुटा बैठते हैं। उनकी भी क्या गलती है? भारत जैसे देश में कई ऐसे प्रांत व राज्य आज भी हैं जो कि दहेज जैसी प्रथा को मानते हैं और उसके तहत लडके वाले अपने बेटे की पढ़ाई और जीवन भर का खर्चा लडकी वालों से दहेज के रूप में वसूल लेते हैं। ऐसे में लड़कियां तो मां बाप पर बोझ ही बन जाती हैं।
खैर, इन सब पर एक लगाम लगान के लिए कुछ समय पहले सिख समुदाय ने शादियां करने के लिए एक कोड आफ कडंक्ट निर्धारित किया है ताकि शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची को नियंत्रित किया जा सके और दहेज जैसी प्रथाएं भी अपने पैर न पसार सकें। वैसे कुछ समय पहले तक भारतीय हिंदू समाज में अरेंज्ड शादियां ही की जाती थीं। जहां परिजन ही वर के लिए वधू, वधू के लिए वर खोजते थे। उनके मुताबिक ही शादी हुआ करती थी। लेकिन अब ये प्रथा बदल रही है। आजकल के बच्चे इतने समझदार और आजाद हैं कि वे परिणय संबंधी सभी निर्णय खुद ही लेते हैं। समय की बढ़ती मांग ने अरेंज्ड मैरिज के चलन को लव मैरिज अर्थात प्रेम विवाह में परिवर्तित कर दिया है।
ये लव मैरिज भी पुराने सीधे सादे तरीकों से न होकर अब बड़े ही जोर-शोर से की जाती है। वेडिंग थीम, डिजाइनर लहंगे व गहने, विश्वस्तरीय खाना, अनूठी साज सजावट आजकल की शादियों की परंपरा है। शादी के कार्ड भी ऐसे स्टाइलिश होते हैं कि विश्वास कर पाना भी मुश्किल हो जाता है कि ये शादी का ही कार्ड है। शादियों का आयोजन ऐसा भव्य होता है कि सुंदरता और शोभा देखते ही बनती है। वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी इस तरह से की जाती है कि शादी के वे पल मानों कभी पुराने ही न हों और जीवनभर उनकी ताजगी बरकरार रहे।
लेकिन इन सबके बाद भी ये सवाल उठता है कि ये माडर्न शादियां कितनी टिकाउ हैं। पहले शादियां भले कम उम्र में होती थीं और वर वधू शादी से पहले एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे, मगर वे बंधन लोगों को जिंदगी की जिम्मेदारियों के प्रति इतना परिपक्व कर देते थे कि शादी का बंधन सात जन्मों का एक अटूट बंधन बन जाता था। वहीं आज के कलयुग में शादी सात सालों तक भी टिक जाए तो शुक्र किया जाना चाहिए। आज के समय में शादियां भी एक प्रकार का कमर्शियलाइजेशन हो गया है। शर्तों पर शादी करना शायद कलयुग का तोहफा है।