बरसात के मौसम में रहे कीड़े मकोड़ों से सावधान

विनीता झा कार्यकारी संपादक

बरसात का मौसम जहाँ अपने साथ हरियाली, गर्मी से राहत, किसानों के लिये  ख़ुशी और बच्चों के लिए बारिश में भीगने का मज़ा लेके आता है वहीँ दूसरी ओर काफी समस्याएं भी इसके साथ जुडी होती हैं। खांसी, ज़ुखाम, बुखार, और दूसरे प्रकार के वायरल इन्फेक्शन तो मानसून में लोगों को प्रभावित करते ही हैं मगर इसके अलावा भी एक समस्या ऐसी है जिससे मानसून में लोग बचते हैं। और यह समस्या है मानसून में पैदा होने वाले कीड़े मकौड़ों की। जब प्यासी धरती पर बारिश की पहली बूँदें पढ़ती हैं वो न केवल बीज और पौधों को जीवन देती हैं बल्कि कीड़े भी जीवन के इस अमृत को पीने के लिए निकल पढ़ते हैं।तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है अगर बरसात के मौसम में अचानक आप अपने घर के आसपास या घर में कीडे मकौड़ों को रेंगते देखते हैं।

बरसात के मौसम में मच्छर, मक्खी, चीटी, कॉकरोच, सांप, बिच्छू, आदि ज़हरीले कीडे मकौड़े अपने बिलों में से निकल पढ़ते हैं।  अक्‍सर यह कीड़े मकौड़े आपको काट लेते हैं जो जहरीले और घातक भी होते हैं। 

निम्न कुछ कीड़े हैं जो आमतौर पर बारिश के मौसम में देखने को मिलते हैं।

चीटियां:-

आमतौर पर बरसात में लाल रंग की चीटियां देखने को मिलती हैं। चींटी भले ही बहुत छोटी क्‍यों न हो लेकिन इसके काटने पर असहनीय दर्द होता है और अगर लाल चींटी ने काट लिया तो दर्द कुछ घंटों तक रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लाल चींटी में फार्मिक एसिड होता है। चींटी जब काटती है तो इस फ़ॉर्मिक एसिड को त्वचा छोड़ देती है जिससे तेज जलन होती है। इससे तेज एलर्जिक रिऐक्शन हो सकता है। इसे मेडिकल साइंस एनाफायलैक्सिस (Anaphylaxis) का नाम देती है। इसमें भयंकर सूजन और दर्द होता है।

उपचार :-

  • अगर चींटी के काटने पर व्यक्ति को सिर्फ जलन हो या त्वचा पर लाल निशान होते हैं तो यह आम है।  इसके लिए प्रभावित जगह पर आइस पैक लगाने के लिए डॉक्टर बताते हैं।
  • खुजली दूर करने के लिए एंटीहिसटामाइन और हाइड्रोकोर्टीसोन क्रीम का उपयोग कर सकते हैं।
  • अगर रिएक्शन बहुत ज़्यादा और दर्दनाक है, तो डॉक्टर को दिखाइए वह एंटीहिस्टामिन और स्टेरॉयड दे सकता है। या फिर एपिनेफ्रीन शॉट्स भी दिए जा सकते हैं।

मच्छर:-

यूँ तो सभी जानते हैं की में पैदा होने वाले मच्छर कई खतरनाक बीमारियां फैलाते हैं जैसे डेंगू, मलेरिया , चिकनगुनिया आदि।  परंतु इनके अलावा भी जो आम मच्छर होते हैं वह भी बरसात के मौसम में लोगों को काटते हैं।

  1. मलेरिया:- मलेरिया एक परजीवी (Parasite) रोगाणु (germs) से होता है, जिसे प्लाज्मोडियम कहते हैं। ये जर्म्स एनोफेलीज़ जाति के मादा मच्छर में होते हैं और जब यह किसी व्यक्‍ति को काटती है, तो उसके खून की नली में मलेरिया के रोगाणु फैल जाते हैं। मलेरिया का मच्छर रुके हुए पानी में पनपता है। मलेरिया ज़्यादातर तीन प्रकार के पर जीवी जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होता है-वाईवेक्स, फ़ेल्सीपेरम और मेलेरी। आमतौर पर मलेरिया के मच्छर सुबह और शाम के वक्त ही काटते है। दिन के वक्‍त ये मच्‍छर निष्क्रिय हो जाते हैं। मलेरिया के लक्षण मच्छर काटने के दसवें दिन से शुरू होकर 4 सप्ताह तक बने रहते हैं।
  2. इसके लक्षण 5 साल से कम आयु के बच्चों में ज्यादा गंभीर होते हैं। इसके अलावा मलेरिया होने पर बुखार, कंपकंपी, खांसी-जुकाम, भूखना लगने, उल्टियां आने, पेट में दर्द होने, हाइपोथर्मिया और सांस तेज चलने के लक्षण नजर आ सकते हैं। बुखार होना मलेरिया का मुख्य लक्षण माना जाता है। अगर व्यक्ति 5 साल से बड़ा है तो उसमें सामान्य फ्लू की तरह लक्षण नज़र आएंगे।
  3. चिकनगुनिया:- चिकन गुनिया एक वायरस बुखार है जो एडीज मच्छरएइ जिप्टी के काटने के कारण होता है।चिकन गुनिया का अर्थ है ‘हड्डी टूटने जैसा दर्द’ यह शब्द एक अफ़्रीकी शब्द है। यह फैलने वाल बेहद पीड़ा दायक रोग होता है। इस रोग में व्यक्ति के जोड़ों में इतना दर्द होता है की वह कोई भी कार्य करने में असमर्थ महसूस करता है और एक सप्ताह के अंदर ही बेहद कमज़ोर हो जाता है । अगर कोई गर्भवती महिला चिकन गुनिया से पीड़ित है तो उसके बच्चे में यह रोग फैलने का डर होता है। चिकन गुनिया और डेंगू के लक्षण लगभग एक समान होते हैं। ​इसके अलावा इसमें जोड़ों के दर्द के साथ साथ बुखार आता है, सिरदर्द, हड्डियों में दर्द, जोड़ों में सूजन और विकृति, भूक कम लगना, जी मचलाना, रौशनी से हनन होना, शरीर पर चकते निकलना और त्वचा खुश्क हो जाती है। चिकन गुनिया के लिए फिलहाल अभी तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। मरीज के लक्षणों को देखकर उसका इलाज किया जाता है। बुखार और दर्द के लक्षणों को दूर करने के लिए आराम, अधिक मात्रा में तरल पदार्थ लेने की डॉक्टर सलाह देते हैं साथ ही कुछ ज़रूरी दवाएं भी दी जाती हैं।
  4. येलो फीवर/पित्तज्वर:- येलो फीवर को पीला बुखार या पित्त ज्‍वर भी कहते हैं, यह बहुत ही भयानक रोग है। यह भी डेंगू, मलेरिया की तरह एक वायरल संक्रमण है। यह स्‍टैगोमिया नामक मच्‍छर के काटने से मनुष्य के शरीर में फैलता है। ये मच्छर दिन के समय काटता है। आमतौर पर इसमें पीलिया के लक्षण भी पाए जाते है। इसीलिए इस को येलो फीवर या पीला बुखार कहा जाता है। इसमें त्वचा का रंग पीला और आंखों में पीला पन दिखाई पड़ने लगता है। पीला ज्वर आर एन ए वायरस से फैलता है।इस रोग को पैदा करने वाले मच्‍छर बंदरगाहों और जहाज के आसपास पैदा होते हैं इसलिए इनको बंदर-मच्‍छर भी कहा जाता है। यह सिस्टमिक रोग है अर्थात यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है। पीला बुखार आमतौर पर तीन से छह दिन के बीच अचानक बढ़ने लगता है।
  5. इसके लक्षण में शामिल है:-  बुखार, सिरदर्द, ठंडलगना, पीठदर्द, भूख, उलटी आदि। इसका संक्रमण आमतौर पर तीन से चार दिन तक रहता है। गंभीर स्थिति में मुंह से खून आना और खून की उल्टियां होने की सम्भावना होती है। इसके खतरे वाले क्षेत्रों/देशों में रहने वाले लोगों को और 9 माह की आयु से अधिक बच्चों के लिए येलो फीवर का टीका लगवाने की सलाह दी जाती है।

उपचार

  • यदि आप फ्लू जैसे लक्षण यानी बुखार, ठंड लगना, सिर दर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द , थकान, शरीर पर लाल चकत्ते, आदि महसूस करते हैं तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं क्योंकि यह लक्षण डेंगू, मलेरिया, या चिकन गुनिया के हो सकते हैं जिसमे आपको अस्पताल में भर्ती होना पढ़ सकता है।
  •  यदि ऐसे लक्षण नहीं हैं और केवल खुजली या सूजन हुई है तो साबुन से प्रभावित जगह को धोकर उसपे कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगा लें।  सूजन के लिये आइस पैक लगाकर प्रभावित जगह पर सिकाई करने की सलाह डॉक्टर देते हैं।

सांप और बिच्छु:-

यह दोनों ही जहरीले और खतरनाक होते हैं। बारिश के मौसम में सांप, बिच्छू भी अपने बिल में से निकलते हैं और अक्सर घरों में आ जाते हैं। हालाँकि बिच्छू रेगिस्तान क्षेत्रों में ज़्यादा पाए जाते हैं। सबसे खतरनाक बिच्छू को बार्क बिच्छु कहते हैं। यदि भयंकर बिच्छू ने काटा तो शरीर में जलन होती है, पसीना छूटने लगता है, दर्द से बदन टूटने लगता है। नाखूनों का रंग पीला, हरा, या नीला हो जाता है। नाक या मुँह से काले रंग का खून आने लगता है आदि। इसके ज़हर की यही पहिचान है कि काटे जाने के बाद शरीर में झनझनाहट होती है, और वह जगह भारी हो जाती है।

सांप के काटने पर दर्द फ़ौरन नही होता है, रोगी को ऐठन और बेहोशी होने लगती है , त्वचा के रंग में बदलाव, पेट दर्द, निगलने में कठिनाई, सरदर्द, शॉक, पैरालिसिस आदि होने लगता है।

उपचार

  • यूँ तो सांप या बिच्छु काट ले तो लोग अपने घरेलु नुस्खे अपनाते हैं परंतु ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बेहद खतरनाक होता है। सांप या  बिच्छू के काटने पर  रोगी को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए।
  • यदि किसी जहरीले या ज्यादा खतरनाक सांप ने नहीं काटा है तो डॉक्टर बस घाव को साफ करके टिटनेस का टीका दे सकता है।
  • मरीज की हालत को देखते हुए इंट्रावेनस दवाएं देके उच्च रक्तचाप, दर्द और रोगी की तड़प को काम किया जाता है।
  • सांप या  बिच्छू के काटने की वजह से मांसपेशियों में ऐंठन के लिए सेडेटिव्स दिए जाते हैं। 
  • गंभीर लक्षणों के लिए या यदि मरीज को बार्क बिच्छू ने डंक मारा है या बहुत जहरीले सांप ने काटा है तो एंटीवेनम दिया जाता है।

कनखजूरा:-

इसको चालीसपद भी कहा जाता है यह आमतौर पर बरसात के समय घरों में या घर के आसपास रेंगते हुए दिख जाते हैं। चालीसपद के डंक के लक्षण एलर्जी की डिग्री और चालीसपद के आकार पर निर्भर करते है। आमतौर पर, इसमें गंभीर दर्द होता है काटने की जगह पर सूजन और लाली आ जाती है। इसके अलावा अगर कनखजूरा ज़हरीला है तो लक्षण में  सिर दर्द, सीने में दर्द, दिल का दौर , मतली और उल्टी भी शामिल हो सकते हैं।

उपचार

  • अगर लक्षण ज़्यादा गंभीर नहीं हैं तो घाव पर आइस पैक लगा लें और दर्द दूर करने के लिए लोकल  अनेस्थेटिक एजेंट का प्रयोग डॉक्टर करते हैं।
  • गंभीर लक्षणों के लिए एंटीवेनम दिया जाता है।

यह सभी कीड़े मकोड़े बरसात के मौसम में निकलते ही हैं।  लेकिन ज़रूरी है के हम सावधान रहे और अपने घर में और घर के आस पास समय पर कीटनाशक का छिड़काव करते रहे।

विनीता झा