रिश्तों और समाज की परतें खोलती ‘स्मृतियों की धूप-छाँव’

पुस्तक समीक्षा

दुर्गेश्वर राय

बड़ा विचित्र होता है यादों का खजाना। हजारों रंगों को अपने अंदर समेटे रहता है। कुछ ऐसे पल होते हैं जिन्हें हम बार-बार जीना चाहते हैं तो कुछ पल ऐसे होते हैं जिनके स्मरण मात्र से ही पूरा शरीर सिहर उठता है। कुछ यादें ऐसे व्यक्तियों से जुड़ जाती हैं जो हमारे अंदर की सुषुप्त सृजन शक्तियों को उभार देते हैं तो कुछ ऐसे से जो हमें मीलों पीछे धकेल देते हैं। जब इन यादों को रोचकता की कड़ाही में तलकर, सत्यता की चाशनी में डूबाकर शब्द सांचे में ढाला जाता हैं तब जाकर बनता है एक संस्मरण। और जब यह कार्य करने वाला व्यक्ति समाज का पथ प्रदर्शक हो, जिसकी जड़ें समाज और सामाजिक परिवेश से गहराई तक जुड़ी हों तो संस्मरणों की मिठास और बढ़ जाती है। ऐसे ही संस्मरणों का संग्रह है वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षक प्रमोद दीक्षित मलय द्वारा संपादित और जनवरी 2023 में प्रकाशित पुस्तक ‘स्मृतियों की धूप छाँव’।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में प्रकाशित इस पुस्तक में उत्तर प्रदेश के 10 शिक्षक और 43 शिक्षिकाओं के रोणक संस्मरणों को संकलित किया गया है। इन संस्मरणों की विविधता देखते ही बनती है। एक तरफ जहां माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और भाई बहन जैसे अटूट रिश्तों के भावानात्मक सम्बन्धों को बड़ी बारीकी से उकेरा गया है, तो वहीं दूसरी ओर सदियों से मनुष्य के सहयोगी रहे पशु-पक्षियों की वफादारी और मानव द्वारा मिले स्नेह को समेटा गया है। कभी गुरु और शिष्य के शाश्वत रिश्ते प्रगाढ़ होते नजर आए हैं , तो कभी कुछ भौतिक वस्तुओं ने अपने साथ उलझा लिया है। कुछ आकस्मिक घटनाएं तो आपको चौकने के लिए मजबूर कर देंगी, तो कुछ संस्मरण धर्म और समाज से आपका साक्षात्कार कराएंगे।

किसी भी व्यक्ति के लिए पिता उस विशाल तरुवर के समान होते हैं जिस के तले बेफिक्री के शिखर पर बैठ कर आराम किया जा सकता है। बिधु सिंह, फरहत माबूद, सीमा मिश्रा, संतोष कुशवाहा और कुमुद सिंह के संस्मरण आपको अपने पिता का एहसास दिलाएंगे। आभा त्रिपाठी, अशोक प्रियदर्शी और प्रमोद दीक्षित मलय के संस्मरण आपको मां की ममता के सरोवर में गोते लगाने को मजबूर कर देंगे। एक पुत्र का कर्तव्य क्या होना चाहिए, मां का यह एक कथन ही स्पष्ट कर देगा- ‘नन्ना, तुम्हारी सेवा देखकर मुझे मेरे पिता याद आते हैं। तुम तो मेरे बाप हो गए हो। तुम मातृऋण से मुक्त हो गये।’

तीसरी पीढ़ी के साथ रिश्ते बड़े मधुर होते हैं। दादा-दादी और नाना नानी के बच्चों के साथ किस्से जगजाहिर हैं। वत्सला मिश्रा, मंजू देवी वर्मा, इला सिंह और आशिया फारुकी के संस्मरण इन्हीं रिश्तों की सुनहरी परतें खोलते नजर आ रहे हैं तो वही रेनू पाल रूह का संस्मरण तीसरी पीढ़ी की उपेक्षा का दर्द बयां करता है जहां पीड़ा, घुटन, उपेक्षा और तिरस्कार के कर्कश स्वर हवा में तैर रहे हैं। माधुरी त्रिपाठी की सहकर्मी, ज्योति दीक्षित के ड्राइवरी के शौक, श्रुति त्रिपाठी के मित्र और मोनिका सक्सेना के भाई की कहानी आपको अंत तक बांधे रखेगी तो मंजू वर्मा, अर्चना रानी अग्रवाल, शंकर कुमार रावत,  हरियाली श्रीवास्तव,  आरती साहू,  राजेंद्र राव और डॉ० श्रवण कुमार गुप्ता के जीवन सफर और संघर्ष के खट्टे-मीठे अनुभव आपके अपने अनुभवों से मेल खाते नजर आएंगे। अपर्णा नायक का संस्मरण सृष्टि सृजन के लिए एक मां के प्रसव पीड़ा का मर्म बयां करता है। डॉ शालिनी गुप्ता के सुक्कू, कुसुम कौसिक की नंदिनी, माधुरी जायसवाल और मीना भाटिया के बुलबुल, नीता कुमारी के आबि और  स्मृति दीक्षित के गौरैया पर आधारित संस्मरणों ने पाषाण काल से चले आ रहे मनुष्य का पशु-पक्षियों के साथ संबंधों को और प्रगाढ़ किया है। रिचा अग्रवाल, रेखा दीक्षित बरखा, पायल मलिक, शाजिया गुल उस्मानी, डॉ. रेणु देवी, अर्चना पांडेय और कंचन बाला के संस्मरण विपरीत परिस्थितियों में मातृशक्ति द्वारा लिए गये सूझ-बूझ भरे निर्णय और दृढ इच्छा-शक्ति आपको रोमांचित कर देगी ।

      शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक होता है। गुरु और शिष्य परम्परा सनातन है। कभी कोई गुरु किसी शिष्य के लिए वरदान साबित होता है तो कभी कोई शिष्य स्वयं को साबित कर अपने गुरु का मान बढ़ा जाता है। शहनाज बानो, आराधना शुक्ला, रुकसाना बानो, वर्षा श्रीवास्तव, कुमुद, दुर्गेश्वर राय, अनीता मिश्रा, कमलेश कुमार पाण्डेय, शीला सिंह, शोभना शर्मा और रणविजय निषाद की रचनाएँ गुरु और शिष्य के मध्य उपजे आत्मीय संबंधों के अलग-अलग आयामों को रेखांकित करती हैं जो निश्चित रूप से पाठकों द्वारा सराही जाएंगी। अर्चना वर्मा सपनों के दुकान की सैर जरूर करिएगा। डा० प्रज्ञा द्विवेदी, उषा रानी और शानू दीक्षित की रचनाएं आपको एक अलग रंग में डूबा देंगी।

      प्रसिद्ध संस्मरणकार जितेंद्र शर्मा की भूमिका ने पुस्तक की गरिमा बढ़ा दी है तो वरिष्ठ साहित्यकार महेशचंद्र पुनेठा, रामनगीना मौर्य और आलोक मिश्र के शुभकामना संदेशों ने पुस्तक में चार चांद लगाये हैं। रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज द्वारा उच्च गुणवत्ता के पृष्ठों पर सुंदर व स्वच्छ छपाई और राज भगत के शानदार कवर डिजाइन ने पुस्तक को आकर्षक बना दिया है। प्रमोद दीक्षित मलय के संपादकीय लेख ने पुस्तक की कल्पना से लेकर तैयारी, प्रशिक्षण, नवोदित लेखकों द्वारा शानदार लेखन, संपादन और  प्रकाशन तक के दुरूह सफर को रेखांकित किया है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठक आनंद के सागर में गोते अवश्य लगाएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय

पुस्तक – स्मृतियों की धूप-छाँव

विधा – संस्मरण

संपादक –  प्रमोद दीक्षित मलय

प्रकाशक – रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज