अचानक मार दे लकवा तो जल्द इलाज से हो सकता है ठीक

मस्तिष्क आघात की मुख्य वजह है मस्तिष्क को सही तरह से रक्त न पहुंच पाना

डॉ. विपुल गुप्ता
डायरेक्टर
न्यूरोइंटरवेन्शन
अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस
आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम

पिछले दिनों 62 साल की एक महिला को अचानक शरीर के बाएं हिस्से में लकवा मार गया और फिर उसे बोलने में कठिनाई होने लगी। वह तेज स्ट्रोक का शिकार हो गई है जिस कारण से उसके शरीर के बाएं हिस्से में लकवा मार गया है। तत्काल ही उनकी सीटी स्कैन कराई गई, जिसमें पाया गया कि उनके ब्रेन की एक प्रमुख नली में अवरोध पैदा हो गया है, जिससे मङ्क्षस्तष्क को क्षति पहुंच रही है। सीटी स्कैन के माध्यम से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह का चित्र देखा गया तो पता चला कि ब्रेन के कुछ उत्तक तो पहले ही नष्ट हो चुके थे, लेकिन अभी भी मस्तिष्क के अधिकतर ऐसे हिस्से बचे हुए थे जिन्हें रक्त की आपूर्ति शुरु कर फिर से जीवित किया जा सकता था।
अगर यह काम तत्काल नहीं किया जाता, तो मस्तिष्क की कोशिकाओं के मरने में बहुत समय नहीं बचा था। उसका इलाज जिस विधि से किया गया उसका मेडिकल नाम है-इंट्रा-आर्टेरियल थ्रॉम्बोलाइसिस। पांव की रक्त नलिका से होकर एक बहुत ही पतले ट्यूब ( माइक्रोकैथेटर) को अवरोध वाले दिमाग के नस में ले जाकर वहां थक्के को गलाने वाली दवाई दी गई जिससे बंद नली खुल गई। महिला तत्काल ठीक होने लगी और अगले 24 घंटे में एकदम स्वस्थ हो गई। अब उसके बाएं हाथ-पांव में पूरी ताकत आ गई है। बोलने की कठिनाई भी खत्म और वह सामान्य जीवन जी रही है।
जिन मरीजों को मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति रूकने से (इस्कोमिक) स्ट्रोक यानी लकवे का अटैक होता है वे आम तौर पर जीवन भर दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं। यह भारी मनोवैज्ञानिक, सामाजिक एवं आर्थिक बोझ का सबब बनता है। हालांिक यह स्ट्रोक होने से दिमाग की कुछ कोशिकाएं तो तत्काल मर जाती हैं, लेकिन कुछ हिस्से जो बच जाते हैं वे फिर से जीवित किए जा सकते हैं, बशर्ते अगले कुछ घंटों में ही रक्त की आपूर्ति फिर से शुरु कर दी जाए। यह काम उस दवा से बखूबी कर सकते हैं जो खून के थक्के ( थ्राम्बॉसिस) को पिघला देती है और रक्त की बंद नली खुल जाती है। इस विधि को ‘इंट्रावीनिस थ्राम्बोलाइसिस’ कहते हैं। इससे स्ट्रोक से पहले की सामान्य स्थिति लौट आती है। जब थक्का बड़ा हो और यह थेरैपी दी जानी मुश्किल हो तो रूकी हुई नली में दवा की सीधी डिलिवरी भी हो सकती है।
इसमें इंट्राआर्टेरियल या एंडोवेस्कुलर विधि ज्यादा प्रभावी होती है। इसमेें पैरों की रक्त की नली से होती हुई एक बहुत ही सूक्ष्म ट्यूब को अंदर डाल दिया जाता है। ट्यूब नली के रूके हुए स्थान पर पहुंचती है जहां थक्के को पिघलाने वाली दवा दे दी जाती है। कई ऐसे यांत्रिक तरीके भी हैं जिनसे थक्के को बाहर निकाला जा सकता है। यह खास इलाज मस्तिष्क पर होने वाले हमले के 8 घंटे बाद तक किया जा सकता है।
मस्तिष्क आघात की मुख्य वजह है मस्तिष्क को सही तरह से रक्त न पहुंच पाना। अधिकतर आघात, मस्तिष्क को एकाएक रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाने के कारण होते हैं, जिनके परिणामस्वरूप मरीज लकवे का शिकार हो जाया करते हंै। बहुत तरह के आघात मस्तिष्क से होने वाले रक्त स्राव के कारण भी होते हैं। इन आघातों की साथ एक बड़ी समस्या यह होती है कि अगर मरीज की जान बच जाए तब भी वह इस कदर विकलांगता का शिकार हो जाया करता है कि अपने दैनिक कार्य भी नहीं कर पाता। आघात मृत्यु और विकलांगता का तीसरा सबसे सामान्य कारण होते हंै। भारत में बढ़ती हुई आबादी, बदलती हुई जीवनशैली मसलन शहरीकरण, धूम्रपान, नमक या शराब का सेवन, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी की वजह से पक्षाघात का खतरा लगातार ही बढ़ता चला जा रहा है। कई बार इसके लक्षणों को पहचानने में तथा इलाज में देरी और भी खतरनाक बना देती है।