सभी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है मौजूद दिल्ली में

विदेश से कई तादादों में लोग भारत घुमने आते हैं और वे भी खासकर दिल्ली. चूंकि दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है. राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहां देखे ही जा सकते हैं साथ ही लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहां हैं बिरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर आदि भी मौजूद हैं, जिनमें से निम्न है:-
छतरपुर मंदिर
छतरपुर मंदिर दिल्ली के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक है. छतरपुर मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी सजावट बहुत की आकर्षक है. दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर विशाल क्षेत्र में फैला है. मंदिर परिसर में खूबसूरत लॉन और बगीचे हैं. मूल रूप से यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है. इसके अतिरिक्तं यहां भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी, हनुमान, भगवान गणेश और राम आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है.
लक्ष्मी नारायण मंदिर
लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था. बिड़ला मंदिर अपने यहां मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है. यह मंदिर मूल रूप में 1622 में वीर सिंह देव ने बनवाया था, उसके बाद पृथ्वी सिंह ने 1793 में इसका जीर्णोद्धार कराया. सन् 1938 में भारत के बड़े औद्योगिक परिवार, बिड़ला समूह ने इसका विस्तार और पुनरोद्धार कराया.
गुरुद्वारा बंगला साहिब
गुरु हरिकिशन साहिब को समर्पित यह गुरुद्वारा सिक्खों का प्रमुख धार्मिक केंद्र है. गुरु हरि किशन सिक्खों के आठवें गुरु थे. कहा जाता है कि उनके दिल्ली प्रवास के दौरान यहां महामारी फैल गई थी. उस समय गुरु हरि किशन ने बिना किसी भेदभाव के गरीब और असहाय लोगों की सेवा की. गुरुद्वार के परिसर में एक माध्यमिक स्कूल, संग्रहालय, किताबों की दुकान, पुस्तकालय, अस्पताल और एक पवित्र तालाब भी है. देश-विदेश से श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा रहता है.
बहाई मंदिर
कालकाजी मंदिर के पीछे स्थित है बहाई प्रार्थना केंद्र जिसे लोटस टैंपल या कमल मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर एशिया महाद्वीप में बना एकमात्र बहाई प्रार्थना केंद्र है. भारत के अलावा पनामा, कंपाला, इल्लिनॉइस, फ्रैंकफर्ट, सिडनी और वेस्ट समोआ में इसके केंद्र हैं. ये सभी केंद्र बहाई आस्था के प्रतीक हैं और अपने अद्वितीय वास्तु शिल्प के लिए प्रसिद्ध हैं. 26 एकड़ में फैले इस मंदिर का निर्माण 1980 से 1986 के बीच हुआ था. तालाब और बगीचों के बीच यह मंदिर ऐसे लगता है जसे पानी में कमल तैर रहा हो. इसका डिजाइन फरीबर्ज सभा ने बनाया था. कमल भारत की सर्वधर्म समभाव की संस्कृति को दर्शाता है. मंदिर के प्रार्थना हॉल में कोई मूर्ति नहीं है. किसी भी धर्म के अनुयायी यहां आकर ध्यान लगा सकते हैं.
काली बाड़ी मंदिर
बिड़ला मंदिर के पास ही काली बाड़ी मंदिर स्थित है. यह छोटा-सा मंदिर काली मां को समर्पित है. नवरात्रि के दौरान यहां भव्य समारोह आयोजित किया जाता है. काली मां को देवी दुर्गा का ही रौद्र रूप माना जाता है. काली बाड़ी मंदिर दिखने में छोटा और साधारण अवश्य है लेकिन इसकी मान्यता बहुत अधिक है. मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है. भक्तगण इस पेड़ को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं.
दिगंबर जैन मंदिर
दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर लाल किला और चांदनी चौक के सामने स्थित है. इसका निर्माण 1526 में हुआ. वर्तमान में इसकी इमारत लाल पत्थरों की बनी है. इसलिए यह लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा भी स्थाकपित है. जैन धर्म के अनुयायियों के बीच यह स्थान बहुत लोकप्रिय है. यहां का शांत वातावरण लोगों का अपनी ओर खींचता है.
कालकाजी मंदिर
प्रसिद्ध कालकाजी मंदिर, भारत में सबसे अधिक भ्रमण किये जाने वाले प्राचीन एवं श्रद्धेय मंदिरों में से एक है. यह दिल्ली में नेहरू प्लेस के पास कालकाजी में स्थित है. यह मंदिर मां दुर्गा की एक अवतार, देवी काली को समर्पित है. यह मनोकामना सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है. मनोकामना का अर्थ है कि यहां भक्तों की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं. इस मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा भी बहुत रोचक है. ऐसा कहा जाता है कि देवी काली का जन्म देवी पार्वती से हुआ था, जो राक्षसों की बड़ी संख्या से अन्य देवताओं की रक्षा करना चाहती थी. देवी ने यहां निवास के रूप में जगह ली और इस प्रकार यह स्थान एक मंदिर के रूप में उभरा. यह मंदिर ईटों की चिनाई द्वारा बनाया गया था परन्तु वर्तमान में यह संगमरमर से सजा है एवं यह चारों ओर से पिरामिड के आकार वाले स्तंभ से घिरा हुआ है. मंदिर का गर्भगृह 12 तरफ है जिसमें प्रत्येक पक्ष पर संगमरमर से सुसज्जित एक प्रशस्त गलियारा है. यहां गर्भगृह को चारों तरफ से घेरे हुए एक बरामदा है जिसमें 36 धनुषाकार मार्ग हैं. हालांकि मंदिर में रोज पूजा होती है पर नवरात्री के त्यौहार के दौरान मंदिर में उत्सव का माहौल होता है. नवरात्री का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है. इस दौरान भक्त यहां एकत्रित होते हैं एवं देवी दुर्गा की स्तुति में भजन गाते हैं. इस मंदिर के पास के मुख्य आकर्षण लोटस टेम्पल एवं इस्कॉन मंदिर हैं.
जामा मस्जिद
लाल किले से महज 500 मी. की दूरी पर जामा मस्जिद स्थित है जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है. इस मस्जिद का निर्माण 1650 में शाहजहां ने शुरु करवाया था. बहुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है. पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है. इसके बार में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे. इसका प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है. इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला महराब अन्य से कुछ बड़ा है. इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर से सजाया गया है जो निजामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं.
खिडक़ी मस्जिद
इस मस्जिद का निर्माण फिरोज शाह तुगलक के प्रधानमंत्री खान-ई-जहान जुनैन शाह ने 1380 में करवाया था. मस्जिद के अंदर बनी खूबसूरत खिड़कियों के कारण इसका नाम खिडक़ी मस्जिद पड़ा. यह मस्जिद दो मंजिला है. मस्जिद के चारों कोनों पर बुर्ज बने हैं जो इसे किले का रूप देते हैं. तीन दरवाजों पर मीनारें बनी हैं. पुराने समय में पूर्वी द्वार से प्रवेश किया जाता था लेकिन अब दक्षिण द्वार पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है.
फतेहपुरी मस्जिद :

फतेहपुरी मस्जिद चांदनी चौक की पुरानी गली के पश्चिमी छोर पर स्थित है. इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम ने 1650 में करवाया था. उन्हीं के नाम पर इसका नाम फतेहपुरी मस्जिद पड़ा. लाल पत्थरों से बनी यह मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है. मस्जिद के दोनों ओर लाल पत्थर से बने स्तंभों की कतारें हैं. इस मस्जिद में एक कुंड भी है जो सफेद संगमरमर से बना है. यह मस्जिद कई धार्मिक वाद-विवाद की गवाह रही है. दिल्ली है दिलवालों इसलिए यहां की इमारतें भी दिल से बनाई हुई इसलिए यह इतनी खुबसुरत और शानदार है. लोग इसे जितनी बार भी क्यों ना देख लें लेकिन देखने वालों का मन कभी नहीं भरता. वो कहते है स्वादिष्ट खाने को कितना भी खा लो पेट तो भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता बस वही बात हमारी दिल्ली की इन खुबसुरत जगहों की हैं.