युवाओं में बढ़ता सितारों का क्रेज भी एक मार्केटिंक हैं

विनीता झा
कार्यकारी संपादक

युवाओं की उम्र ही ऐसी होती है कि उनका ध्यान फैशन की ओर जल्द ही आकर्षित हो जाता है. कोई भी नया ट्रेंड मार्केट में आया नहीं कि वे फटाफट उसे अपना लेते हैं. देखा जाए तो इसमें हर्ज भी क्या है? आखिर हमें भी तो स्मार्ट दिखना है. युवाओं द्वारा किसी भी फैशन ट्रेंड को अपनाने में सबसे ज्यादा असर फिल्मी सितारों का होता है. साथ ही फैशन ब्रांड के विज्ञापनों से भी वे काफी प्रभावित होते हैं. विज्ञापन कुछ इस तरह से बनाए गए होते है कि वे व्यक्ति को अपनी ओर धीरे-धीरे ही सही लेकिन खींच ही लेते है.

वो कहते हैं ना कुछ बातें कही नहीं लिखी जाती हैं और इन बातों का असर गहरा होता है. इन दिनों एसएमएस का दौर तेजी पर है. खासकर युवाओं के बीच इन एप्पस का चलन काफी बढ़ा है. सस्ता और सरल माध्यम होने के कारण इसे उपभोक्ता तेजी से अपना भी रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, शहर में एप्पस का बाजार काफी बढ़ गया है. वहीं आने वाले फेस्टिवल सीजन में इन एप्पस की डिमांड का ग्राफ आसमान छूने को बेताब रहता है.
सोशल नेटवर्किंग साइट के बाद लोगों में एसएमएस के प्रति दीवानगी कम नहीं हो रही है. इन सभी को फेसबुक और ट्विटर की अपेक्षा मोबाइल से एसएमएस भेजना ज्यादा बेहतर मानते और पसंद भी करते हैं. इन दिनों हर कोई सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग कर रहा है. नई तकनीक के इस दौर में लोगों से जुडऩे के लिए कई सरल और सस्ते माध्यम आए, लेकिन इन एप्पस का क्रेज आज युवाओं के सिर से उतरा नहीं है. समय-समय पर कंपनियां उपभोक्ताओं को एप्पस डाउनलोड करने के लुभावने ऑफर देती रहती हैं. जैसे लाइन डाउनलोड करें और कैटरीना से बात करें! या वी चैट डाउनलोड नाउ एंड चैट वीथ वरूण एंड परिणीती!
इस तरह के विज्ञापन आमतौर पर परमोशन के लिए किए जाते है कि व्यक्ति उनके साफ्टवेयर को अधिक से अधिक डाउनलोड करें. ऐसे परमोशन लोगों को अधिक आकर्षित भी करते हैं और फिर वे उन एप्स को जल्द ही डाउनलोड करना भी शुरू कर देते हैं. युवाओं का सितारों के प्रति इस तरह के्रज बढ़ जाता है मानों सितारें सच में उनसे एप्पस के मध्यम से बात करने के लिए अतुर हो रहे है. आप लोगों को मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हुं फिल्म तो याद ही होगी कि किस तरह एक आम लडक़ी पर फिल्मी सितारों का असर होता है और वे उनकी तरह बनने या उनसे मिलने या बात करने के लिए पागल हो जाती है. इस तरह के फोबिया को सेलिब्रिटी फोबिया भी कहा जाता है. इस तरह की फिल्में व विज्ञापन लोगों की मानसिकता को देखकर बनाए जाते हैं.

लेकिन कभी कभी इस तरह की सोच दिमाग पर गहरा असर डालती है और व्यक्ति गहरे सदमें या डिप्रेंशन में चला जाता हैं. इसके बहुत से कारण हो सकते है. जैसे अपने आपको उन जैसा दिखाने की होड़ और लोगों में अपने आपको बेस्ट दिखाने की चाह. साथ ही उन्हें यह भी लगने लगता है कि उनकी सितारों से दुरियां कम होती जा रही है. मिलना ना सही बात तो हो रही है. लेकिन कई बार यही चाहत आगे जाकर मनोस्थिति पर गहरा असर डाल देते है और युवा पागल से होने लगते है.
फिल्मी फैशन का असर तो युवाओं पर जमाने से ही होता रहा है. युवा अपने समय के लोकप्रिय नायक-नायिकाओं का अनुसरण करते ही हैं. उनसे मिलने और बात करने के लिए मानो जो करना हो वो सब करने के लिए तैयार रहते हैं. फुटवियर से लेकर हेयर स्टाइल और एक्सेसरीज तक फिल्मी कलाकारों की कॉपी की जाती है. यहां तक कि रंगों की मैचिंग भी देखी जाती है.
युवाओं की नजर अखबार या टीवी पर फैशन से संबंधित विज्ञापनों पर सबसे अधिक होती है. ऐसे विज्ञापन, चाहे प्रिंट के हों या टीवी के, इस अंदाज से बनाए ही जाते हैं कि किशोरों व युवाओं का ध्यान एकदम से उनकी ओर जाता है, और फिर वे उसे खरीदने की योजना बनाने लगते हैं. उसे पाने के लिए उनसे जो हो सकता है वो करते हैं. कई बार तो वे ऐसा कदम उठा लेते है जो उनके लिए व उनके परिवार वालों के लिए हानिकारक सिद्ध हो जाता है.
हालांकि ऐसे भी युवाओं की कमी नहीं है, जो खुद ही तरह-तरह के प्रयोग करते रहते हैं और अपना स्टाइल स्टेटमेंट खुद तय करते हैं. सच तो यही है कि स्टार्स और फैशन ट्रेंड को फॉलो करने वाले युवाओं की संख्या कहीं अधिक है. लेकिन फिर भी यदि युवा यह पहचान लें कि जो चीजें टीवी पर दिखाई या सुनाई जाती है, उनका वास्ताविकता से कोई लेना देना नहीं है तो ज्यादा अच्छा रहेगा. इसके लिए उन्हें यह मानना आवश्यक है कि वे सितारें है और उसका कार्य दर्शकों को लुभाना है, चाहे जैसे भी और दूसरा यह कि विज्ञापनों में जितनी भी तथ्य दिखाए जाते है उसमें से अधिकांश आधे से ज्यादा बातें तर्कसंगत नहीं होती है. इसलिए व्यक्ति को इस मामले में ही नहीं हर मामले में दिल से नहीं दिमाग से काम करना चाहिए.
आपको फिल्म गुड्डी तो याद ही होगी, उसमें जिस तरह से गुड्डी को धर्मेंद  के प्रति आकर्षण था, लेकिन जब वह उसे ऑफलाइन देखती है तो जानती है कि सब दिखावा होता है. उसी तरह सच्चाई में भी जो किरदार सितारें फिल्मों में या विज्ञापनों में दिखाते है वैसे वे होते नहीं है. वे कहते है ना हाथी के दांत खाने के ओर, दिखाने के ओर, बस यही सारी बात है. स्टार जो टी वी पर दिखते है उससे काफी हटकर पर्दे के पीछे होते है, यह बात तो हर कोई जानता है लेकिन फिर भी ना जाने क्यों जाल में फंसते चले जाते हैं. इस तरह के विज्ञापनों व फिल्मों का केवल एकमात्र यही उद्देश्य होता है कि किस तरह से दर्शकों का लुभाए और अपना परमोशन करें इसलिए निम्र बातों का ध्यान रखें:-

किसी भी एप्पस पर कैटरीना हो या वरूण कोई भी आपको रिप्लाई नहीं करता. यह एक तरह का ऑटोमेंटिक रिप्लाई रिकोडर के जरिए होता है.

यदि आपके दोस्त आपके लिए हर समय उपस्थित नहीं रह सकते, यानी रिप्लाई नहीं करते तो भला यह सितारे आपके लिए हमेशा उपस्थित कैसे रह सकते है.
स्टार सगाई में कभी भी वे फोन इस्तेमाल नहीं करते जिसका वे एंड कर रहे होते है, चूंकि आज जब एक आम व्यक्ति के पास स्मार्ट फोन है तो क्या वे अपनी तुलना उससे करना चाहेगें और वैसा ही फोन खुद भी लेगें.

यह सच है कि वे भी एप्पस का उपयोग करते होगें लेकिन सोशल यूज के लिए नहीं.
जब उन एप्पस पर मैसेज किया जाता है तो अक्सर फीड बेक वो नहीं आता जो आना चाहिए बस ‘यादा से ‘यादा धन्यवाद का रिप्लाई आ जाता होगा. हाई करो तो हैलो का भी रिप्लाई नहीं आएगा. यह पहचान है कि उस तरफ कोई नहीं है रिप्लाई करने को और आप बेवकुफ बने जा रहे हो. अत: सोचे, समझे फिर कोई कार्य करें जिसका असर ना तो दिल पर हो और ना हीं दिमाग पर.