अभिभावक के गुण एवं कर्तव्य

राष्ट्रीय अभिभावक दिवस (23 जुलाई)

हर वर्ष जुलाई के चौथे शनिवार को राष्ट्रीय अभिभावक दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि अभिभावकों को बदलते परिवेश में बच्चों के परवरिश के तौर तरीकों से अवगत कराया जा सके। बदलते सामाजिक परिवेश व एकांकी परिवार की बढ़ती अवधारणा से अभिभावक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है।

संयुक्त परिवार में बच्चों का परवरिश करना आसान था क्योंकि संयुक्त परिवार में परवरिश की जिम्मेदारी अनेक लोगों में बट जाती थी पर आधुनिक समय में यह एक जटिल एवं कौशल पूर्ण कार्य हो गया है यदि अभिभावक जागृत व सतर्क नहीं रहता है तो बच्चों में अनेक विकृति उत्पन्न हो सकती है। माता-पिता दोनों के कामकाजी होने पर बच्चों का सही परवरिश और भी जटिल एवं कठिन हो जाता है।

भारत के 1956 के अधिनियम के अनुसार तीन लोग प्राकृतिक अभिभावक हैं:  पिता, माता व पति। 1956 के अधिनियम की धारा 6 के अनुसार पिता प्राकृतिक अभिभावक होता है और उसके बाद माता नाबालिक की प्राकृतिक अभिभावक होती है। अभिभावक या माता-पिता बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं। अभिभावक में यदि व्यावहारिक समस्याएं होंगी तो निस्संदेह बच्चों में भी अनेक समस्याएं होने की संभावना होती है इसलिए आधुनिक समय में अभिभावकों को न केवल बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए बल्कि अपने स्वयं के व्यवहार को भी संयमित एवं संतुलित रखने का प्रयास करना चाहिए।

अच्छे अभिभावक के गुण:

  • ईमानदारी
  • स्पष्टवादी
  • अपनी कमी को स्वीकारना
  • बात व व्यवहार में समानता
  • आदर्श व्यवहार
  • कर्तव्य पालन
  • समयनिष्ठ
  • नियमित दिनचर्या
  • प्रभावशाली समायोजन
  • संवेगों की संतुलित अभिव्यक्ति
  • सही भाषा का प्रयोग
  • बड़ों एवं छोटों के प्रति यथोचित व्यवहार

अभिभावक के कर्तव्य:

  • संतुलित पोषण की व्यवस्था करना।
  • सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना।
  • बच्चों के कार्य एवं व्यवहार की निगरानी करना।
  • बच्चों के विकास हेतु सकारात्मक सोच के साथ प्रयास करना।
  • शिक्षा का उचित प्रबंध करना।
  • समय-समय पर बच्चों के प्रगति की समीक्षा करना।
  • स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करना।
  • सोशल मीडिया के आभासी दुनिया के दुष्परिणामों से अवगत कराना।
  • गुणवत्तापूर्ण संवाद कायम करना।
  • बच्चों के सामने आदर्श व्यवहार प्रतिरूप प्रस्तुत करना।
  • बच्चों में अच्छे मूल्यों के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना।
  • स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था करना।
  • विकास के लिए बाधा एवं तनाव रहित वातावरण उपलब्ध कराना।
  • बच्चों में सही व गलत की समझ विकसित करना।
  • बच्चे की अनावश्यक दूसरे बच्चों से तुलना न करना।
  • कोई बात दबाव से नहीं बल्कि समझा-बुझाकर मनवाना।
  • शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देना।
  • स्वतंत्रता देने के साथ जिम्मेदारियों का भी एहसास कराना।
  • कार्य को पूर्ण कराने हेतु दण्ड या लालच न देना।
  • उचित अनुशासन बनाए रखना।
  • केवल बच्चे की कमी न देखें बल्कि कमी को दूर करने में बच्चे की मदद करें।
  • बच्चे पर अपने निर्णय थोपें न बल्कि उन्हें सही निर्णय लेने में सहयोग करें।
  • अच्छे कार्यों के लिए बच्चों की प्रशंसा करें।
  • उनकी क्षमता से अधिक अपेक्षा न रखें।

बच्चे किसी भी राष्ट्र के भविष्य होते हैं और बच्चों के सही परवरिश एवं देखभाल के द्वारा उनके विकास को सही दिशा प्रदान किया जा सकता है परवरिश में त्रुटि होने से बच्चों में समस्याएं उत्पन्न होती है जो न केवल परिवार को संकट में डालती है बल्कि उसका प्रभाव समाज एवं राष्ट्र के ऊपर भी पड़ता है इसलिए आधुनिक समय में किसी भी राष्ट्र के निर्माण एवं विकास में अभिभावक की भूमिका बहुत ही अहम होती है।

डॉ मनोज कुमार तिवारी 
(वरिष्ठ परामर्शदाता)
 
(एआरटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू वाराणसी)