मान हुआ नारी का जग में देखो तार- तार है…

मान हुआ नारी का जग में देखो तार- तार है।
कोखों ने था जन्म दिया लो होता उस पर वार है।।

धृतराष्ट्र सा बना हुआ अब कैसा यह संसार है।
सुनो कृष्ण अब इस जग को बस तेरी दरकार है।।

तन नारी का बना यहांँ पर भोग का ही आधार है।
दुर्गा काली चंडी का अब लेना बस अवतार है।।

महिषासुर की भीड़ जमा जो करती अत्याचार है।
खंडन उठा नारी तू कोई कृष्ण नहीं इस बार है।।

बाहर रौशन जग है लगता भीतर बस अंधकार है।
बहुत बह चुकी अश्रु धारा भरनी अब हुंकार है।।

दुर्योधन के हाथ न काँपे रावण का अधिकार है।
मौन है देखो फिर भी बैठी ये कैसी सरकार है।।

कलम लिखे बस शब्द नहीं यह मेरी यलगार है।
पढ़े जरूरत तब बन जाती है ये ही तो तलवार है।।

संस्कारों में बहुत ढल चुके अब करना बस वार है।
ठान जो ले ये भीतर अपने दो धारी तलवार है।।

मुर्दों की बस भीड़ जमा है कुछ कहना बेकार है।
खंडित यूँ हो मान हमारा न हमको स्वीकार है।।

अपनी खातिर खुद ही उठना हमको तो इस बार है।
जन्म हुआ महिषासुर का तू दुर्गा का अवतार है।।

कर मर्दन बेखौफ सी होकर कहती हर इक नार है।
बोया जो भी काटे वो ही नियम यहाँ हर बार है।।

पूनम शर्मा स्नेहिल