कृष्ण और सुदामा की मित्रता बेमिसाल

मित्रता दिवस

प्रत्येक वर्ष अगस्त महिने के रविवार के दिन दोस्ती का दिन यानी मित्रता दिवस मनाया जाता है। दोस्ती की सबसे बड़ी मिशाल के तौर पर आज भी भगवान श्री कृष्ण और सुदामा को जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने एक राजा होने के बाद भी अपना मित्र धर्म निभाया और सुदामा को अपने बराबर का स्थान दिया। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा से सीख से लेकर हमें भी अपने दोस्त की हर परिस्थिति में उसका साथ देना चाहिए और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

तो चलिए जानते हैं मित्रता दिवस पर श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कथा के बारे में….भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इन्हीं कथाओं में से एक कथा यह है कि जब भगवान श्री कृष्ण सुदामा से कई सालों के बाद मिलते हैं। यह कथा द्वापर युग की है। भगवान श्री कृष्ण उस समय अपनी नगरी द्वारका में राज कर रहे थे और सुदामा एक गरीब ब्राह्मण का जीवन व्यतीत कर रहे थे। सुदामा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भिक्षा मांगकर जीवन व्यतीत कर रहे थे और हमेशा भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लगे रहते थे।

एक बार सुदामा की पत्नी ने अपने पति को भगवान श्री कृष्ण से मिलकर आने को कहा। लेकिन सुदामा ने इनकार कर दिया। क्योंकि सुदामा के पास भगवान श्री कृष्ण को देने के लिए भेंट नही थी। सुदामा की पत्नी यह जानती थी। इसलिए वह पड़ोस में से थोड़े से चावल बांधकर अपने घर लाई और अपने पति को दे दिए और कहा कि आप यह लेकर जाएं और इसे भगवान श्री कृष्ण को भेट कर दें। इसके पश्चात सुदामा जी अपने मित्र द्वारकाधीश श्री कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका नगरी की ओर चल पड़े ,वह जैसे – तैसे भगवान श्री कृष्ण के महल तक पहुंचे,महल के द्वार पर पहुंचते ही द्वारपालों ने उसके बारे में पूछा।

सुदामा ने द्वारपालों को बताया की वह भगवान श्री कृष्ण का मित्र है और वह भगवान श्री कृष्ण से मिलना चाहता है। सुदामा की यह बात सुनकर  बार उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ा ऐसे दीन हीन व्यक्ति को द्वारकाधीश का मित्र बताए जाने पर उपहार से हंस पड़ा।द्वारपाल  उसे पागल कहकर संबोधित करने लगे। सुदामा ने द्वारपालो से भगवान श्री कृष्ण से मिलने की मिन्नत और आज्ञा मांगी और अपना संदेश श्री कृष्ण को देने के लिए कहा। सुदामा का संदेश लेकर द्वारपाल भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचा और उसे सारा किस्सा सुनाया।

जब भगवान को यह पता चला कि सुदामा उनसे मिलने आया है तो श्री कृष्ण बिना मुकुट और नगें पैरों सुदामा से मिलने पहुचें। लेकिन सुदामा को लगा की वह गरीब है और भगवान श्री कृष्ण बहुत अमीर, भगवान अब उन्हें अपना मित्र क्यों मानेंगे। श्री कृष्ण अगर उन्हें अपना मित्र मानेंगे तो उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा। यह सब बातें मन में सोचकर वह वहां से चल दिये। भगवान श्री कृष्ण सुदामा से मिलने के लिए अत्यंत व्याकुल थे।

इसलिए वह सुदामा को ढुंढते हुए  द्वारका नगरी में इधर से उधर घुमने लगे और उन्हें खोजने लगे और जैसे ही सुदामा मिले तो भगवान ने उन्हें अपने गले से लगा लिया। भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र से मिले बिना ही जाने का कारण पूछा तो सुदामा ने उन्हें सारी बात बता दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा कि तुम आज भी मेरे लिए मेरे वही मित्र हो जो पहले भी हुआ करते थे। एक दूसरे की मित्रता प्रेम के भाव में गहरे आलिंगनबद्ध होकर एक दूसरे को प्रेम का आदान प्रदान करने लगे।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”