देश की सभी वीरांगनाओं, माताओं और सच्चे देशभत्तफों को समर्पित

-भारत की 75 वीरांगनायें-

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भारत एक ऐसा देश है, जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था, जिसे संपूर्ण विश्व में आदर और सम्मान हमेशा मिलता आया है। यह सम्मान हम भारतीयों को यूं ही नहीं मिला है बल्कि इसके लिए हमारे देश का हर एक नागरिक जिम्मेदार है। चाहे वह हमारे स्वतंत्राता सेनानी हों या वीर योद्धा हों या फिर वर्तमान में इस देश के रहने वाले नागरिक। भारत वह देश है जिस देश की मिट्टी को माता के समान पूजा जाता है, और इस देश को अपनी मां के समान हर एक भारतीय प्यार और आदर देता है। हम सभी जानते हैं कि अंग्रेजों ने हमारे देश पर करीब 200 वर्षों तक राज किया था। भारत को आजाद कराने में लाखों-करोड़ों लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। आजादी पाने के बाद से लेकर अब तक भी हजारों सैनिक इस पावन ध्रती की रक्षा करने हेतु सीमाओं पर अपने प्राण गवां देते हैं।

भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था, जिसे सन 1947 में स्वतंत्राता मिली। हम सभी भली-भांति जानते हैं कि किसी भी देश को स्वतंत्रा कराने में स्वतंत्राता सेनानी बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं। ये वो व्यत्तिफ होते हैं जो अपना तन-मन-धन सब कुछ देश को आजाद कराने में लगा देते हैं। भारत में महात्मा गाँधी, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, चंद्रशेखर आजाद जैसे बहुत से स्वतंत्राता सेनानी हुए हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुती दे दी थी। देश को आजाद कराने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी व्यत्तिफ, स्त्राी या पुरुष, स्वतंत्राता सेनानी कहलाते हैं।

कुछ स्वतंत्राता सेनानी गर्म स्वभाव के थे और जोश से भरपूर थे, उन्होंने देश को स्वतंत्रा कराने के लिए हिंसा का मार्ग चुना था। वहीं दूसरी तरपफ बहुत से स्वतंत्राता सेनानी शांत स्वभाव के थे और उन्होंने अहिंसा और सत्य के पथ पर चल कर देश को आजाद करवाया था। स्वतंत्राता सेनानियों के कारण ही हमारा भारत आजाद है और हम एक आजाद भारत के नागरिक है। इनके विचारों से ही देश में क्रांति की लहर दौड़ी थी और हर व्यत्तिफ ने पिफर चाहे वो महिलायें हों या पुरुष, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्राता सेनानी की भूमिका निभाई थी।

जिस तरह भारत देश को आजाद कराने में पुरुष स्वतंत्राता सेनानियों का बहुत बड़ा योगदान होता है उसी तरह उस आजादी को पाने के लिए देश की महिला स्वतंत्राता सेनानियों का भी बहुत बड़ा योगदान है। भारत के स्वाध्ीनता संग्राम में आक्रमणकारियों के विरुद्ध सदैव स्त्री शत्तिफ अग्रणी रही। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्राता संग्राम अनेक दौरों से गुजरा। 1857 के इस विद्रोह में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल जैसी वीरांगनाओं का योगदान विशेष उल्लेऽनीय रहा। गांधी युग में राष्ट्रीय आन्दोलन जन आंदोलन में परिवर्तित हो गया। इस युग में सभी धर्मों व सम्प्रदायों के अनुयायियों तथा जनता के प्रत्येक वर्ग ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस कार्य में महिलाएँ भी पीछे नहीं रहीं।

आरंभ से लेकर अंत तक उन्होंने न केवल शांतिपूर्ण आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया अपितु वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय रहीं। गांधी जी भी राष्ट्रीय आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी के पूर्ण पक्षधर थे। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर महिलाओं ने न केवल ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीऽी प्रतिक्रिया व्यत्तफ की बल्कि गिरफ्तार भी हुई। कुल मिलाकर महिलाओं के अंदर इस समय जो राष्ट्रचेतना पैदा हुई थी उसने यह सि( कर दिया कि वे एक ऐसी राष्ट्रीय शत्तिफ है जो राष्ट्र की स्वाधीनता और अधिकारों के लिए सभी बंध्नों से उन्मुत्तफ होकर लड़ सकती है। इस समय जिन स्त्रियों ने इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया था उनमें एक पंत्तिफ उनकी थी जो गांधी जी के अहिंसावादी नीति का अनुसरण कर रही थीं और दूसरी पंत्तिफ उनकी थी जिन्होंने क्रांति का मार्ग चुना था। राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में अपने आप को महिलाओं ने विविध् आयामों के साथ प्रस्तुत किया है।

चेहरे पर मौत का खौफ नहीं, चौड़ा सीना गर्व से होता है,
खुद की परवाह कहाँ उनको, जिन्हें इश्क वतन से होता है।

लेिखका रिंकल शर्मा द्वारा लिखी गई इस पुस्तक भारत की 75 वीरांगनायें में ऐसी ही कुछ 75 वीरांगनाओं की गाथायें हैं जिन्होंने हमारी आजादी पाने और उस आजादी को सुरक्षित रऽने के लिए अपने प्राणों की हँसते-हँसते कुर्बानी दे दी। इस पुस्तक में जहाँ एक ओर उन वीरांगनाओं का जिक्र है जिनकी शहादत से सारी दुनिया वाकिफ है तो साथ ही उन वीरांगनाओं के बारे में भी चर्चा हैं जिनकी शहादत गुमनामी में ऽो गयी। भारत की स्वतंत्राता सेनानियों के साथ-साथ भारत की उन वीरांगनाओं का भी उल्लेऽ है जिन्होंने आजादी के बाद, भारत की रक्षा एवं संविधन निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस पुस्तक के पन्नो के ऽुलने पर आपको पता चलेगा कि वीरांगनाओं ने कितना बड़ा त्याग किया।

देश को आजाद कराने के लिए कितनी लंबी और भयानक लड़ाई लड़ी। इन 75 वीरांगनाओं के शौर्य और बलिदान के परिणामस्वरूप ही हम और आप एक स्वतंत्रा देश में सांस ले रहे हैं और अपने-अपने घरों में सुरक्षित बैठे हुए हैं। इन वीरांगनाओं को सच्ची श्रद्वांजलि अर्पित करने के लिए, हम सबको इन महान महिला स्वतंत्राता सेनानियों का दिल से सम्मान करना चाहिए और देश के लिए दी गई इनकी कुर्बानी को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें इनसे प्रेरित होना चाहिए। इनके समान देशभत्तिफ हर देशवासी के मन में होनी चाहिए। पूरे देश के लोगों को एकता के सूत्रा में बांधना चाहिए। ताकि जब कभी हमारे देश पर कोई मुसीबत आए, तो हम शत्र` का डटकर सामना कर सकें। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक भारत की 75 वीरांगनायें देश की सभी वीरांगनाओं, माताओं और सच्चे देशभत्तफों को एक समर्पित है।

भूल न जाना भारत माँ की बेटियों का बलिदान, इस दिन के लिए जो हुईं थीं हंसकर कुर्बान
आजादी की ये खुशियाँ मनाकर लो ये शपथ, कि बनायेंगे देश भारत को और भी महान…

रिंकल शर्मा
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