1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस पर विशेष –
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत
संपूर्ण विश्व में 1 दिसंबर को “विश्व एड्स दिवस” मनाया जाता है! इसका उददेश्य पूरे विश्व के लोगों को एकजुट होकर इस बीमारी का मुकाबला करना है। इस बारे में बात करें। इसे फैलने से और एडस से पीडित व्यक्ति की देखभाल करें। भारत में एड्स जैसी जानलेवा बीमारी ने एक समय बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया था। इस पर डॉ. कृपा शंकर तिवारी की पुस्तक “एड्स और समाज” में इस खतरे की ओर लोगों का ध्यान खींचा है। पुस्तक के अनुसार भारत में एड्स का पहला मामला 1986 में सामने आया और तबसे लगभग सत्तर लाख लोग एच. आई. वी. संक्रमण की चपेट में आ गये है। पुस्तक के अनुसार कचरा बीनने वाले बच्चे, मजदूर (बाल), असंगठित छोटे उद्योगों में काम करने वाले बच्चे, रेलवे प्लेटफार्मों, बस अड्डों एवं सिनेमा हालों के इर्दगिर्ट जमा होने वाले कम उम्र के बच्चे यौन अत्याचार के शिकार होते है। यौन शोषण करने वाले अधिकतर लोग या तो समलैंगिक होते हैं या किसी न किसी नशे की लत के शिकार होते हैं। पुस्तक में कहा गया है कि भारतीय परिस्थिति में एड्स का इलाज करा पाना व्यवहारिक नहीं है। जिसका मुख्य कारण – स्वास्थ्य के प्रति अपेक्षित गंभीरता न होना एवं निर्धनता। इसलिये इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि एड्स संक्रमित बच्चों और उनके अभिभावकों की समस्याओं के लिये निदान केन्द्र खोले जायें। वहीं अच्छे स्वास्थ्य का वातावरण बनाने हेतु व व्यापक पैमाने पर कदम उठाये जायें, यह भी उतना ही आवश्यक होगा कि सरकार के साथ हम गंभीर होना होगा, एवं आम जन को ही एड्स निदान का सार्थक प्रयास करना पड़ेगा। तभी तो एड्स जड़ मूल से समाप्त हो सकेगा अन्यथा नहीं!