तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे—– भारतरत्न लता मंगेशकर

उमेश कुमार सिंह

गीत-संगीत की स्कर लहरियां मानव-मन ही हृतंत्री का झंकृत कर उसके समाजिक जीवन को सार्थक बनाती हैं। वास्तव में जीवन की राग-द्वेष सांसारिक जीवन को गतिशील भी बनाता है। साथ ही उसका दिशा-निर्देश की करता हैं। 

कला अन्नतकाल से मानव समाज का आीांदित करती रही हैं। लेकिन इसकी साधाना में वर्षों लग जाते हैं। कई बार संयोग या दैवयोग से भी सफलता मिलती हैं। भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर को भी अपने प्रारंम्भिक जीवन में संघर्षों से गुजरना पड़ा, लेकिन उनकी दृढ़ता, सरलता एवं निष्ठा ने उनकी तपस्या को शिखरों का स्पर्श करने में सहायता की। 

धीरे-धीरे उन्होंने छोटे-छोटे पग भरते हुए एकाएक अपने विराट रूप को पा लिया। उनकी आवाज उनकी ध्वनि की लोच, उनकी भावना की मान्यता विश्वभर के संगीत प्रेमियों में व्याप्त हो गई।

जीवन को सुव्यवस्थित ढंग से लिखने में सिद्धहस्त श्री सुरदर्शन भाटिया ने अपनी जीवन संगिनी की अन्तिम इच्छा पूरी करने के लिए दिन-रात लगाकर बडे़े मनोयोग के फ्जिंदा हैं लता मंगेशकरय्, पुस्तक का प्रणयन किया हैं। उन्होंने बड़े श्रमपूर्वक लता मंगेशकर के जीवन कोे अपनी सरल परन्तु सुललित संवादमय भाषा में लिखा हैं। उन्होंने अनेक ऐसे प्रसंगों का भी उल्लेख किया हैं, जिनके कारण स्वर कोकिला को ख्याति मिली। लता मंगेशकर की जादुई आवाज ने लाखों-करोड़ों श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध किया हैं। सन् 1962 में जब स्वर कोकिला ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों—’ गीत गाया तो पंड़ित नेहरू की आंँखे छलछला उठी थी।

यही संगीत का जादू है। यही भावनाओं की क्षमता है, यही अद्भूत परिणति है, जो किसी भी क्षण को अर्थपूर्ण बना देती है। जीवन गाथा घटनाओं का संकलन-संयोजन मात्र नहीं होती परंतु, व्यष्टि से समष्टि की ओर सरक रहे प्रत्यक्ष या परोक्ष अनुभवों का समाहार होती है। विद्वान लेखक ने बड़ी गम्भीरता से लता मंगेशकर के जीवन प्रसंगो का समाधान करते हुए एक ऐसे भावपूर्ण ग्रंथ की रचना की है, जो हर वर्ग के पाठकों के लिए रोचक एवं अर्थपूर्ण सिद्ध होगा। जीवन-माला का पठन-पाठन किसी भी पाठक को, अभेद्य संघर्षों से गुजरने की क्षमता देता है, जीवन के अप्रत्याशित कठिन क्षणों का साहसपूर्वक जीने का बल देता है।

लता मंगेशकर पर अनेक पुस्तक उपलब्ध होंगी परन्तु हर पुस्तक का अपना कलेवर होता है। इसी प्रकार डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक (भारत रत्न लता मंगेशकर) सुदर्शन भाटिया जी की रचना का कलेवर भी निश्चित रूप से अलग है, एक भरा-पूरा अनुभव, चितन एवं उपलब्ध ज्ञान का सांचे-खांचे में फिट करने की ललक स्पष्ट दिखाई देती है, कुछ भी न छूटे ऐसा प्रयत्न भी झलकता है और लेखक की अश्वस्ति इस मत को और भी पुष्ट करती है। जिस प्रकार अन्ना हजारे, प्रणव मुखर्जी, राम की अयोध्या आदि पर लिखी भाटिया जी की पुस्तकें बहुतायत से बिकी और सराही गई, उसी श्रेणी की प्रस्तुत पुस्तक भी आती हैं। 

तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

जब कभी भी सुनोगे गीत मेर

संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे

ऊपर लिखे हजरत जयपुरी के शब्दों को लता मंगेशकर जी ने अमर का दिया। ऐसे ही हजारों गाने हैं जिनको अपनी आवाज देकर उन्होंने जिंदा किया है। इनकी जीवन आपको संगीतमय दुनिया के प्ीछे की दास्तां बताएगी जिन्हें सर्वाधिक गाने के लिए ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड’ भी दिया गया है। 2001 में इन्हें ‘भारत रत्न’ से भी अलंकृत किया गया। लता जी के जीवन को समपन से देखना हो तो सुदर्शन भाटिया द्वारा लिखित यह जीवनी आपको पसंद आयेगी। यह पुस्तक आपको किस्से-कहानियों की तरह गुनगुनाती चली जाएगी, यह आपको पता भी चलने देती कि आप पुस्तक पढ़ रहे है, ऐसा लगेगा मानो आप किस्से सुन रहे हैं। लता जी के बारे में सुनना और पढ़ना हर पाठकगण के लिए सुखदाई हो सकता है क्यों कि इतनी महान हस्ती के बारे में जानना और समझना अपने आपको और समृद्ध करने जैसा है। 

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