इन कहानियों में किस्सागोई है तो इक्कीसवीं सदी की एक नई दुनिया भी! प्रकाश मनु

21 वीं सदी की श्रेश्ठ बाल कहानियां

कहानियाँ बच्चों की पहली दोस्त हैं, जो उन्हें खूब आनंदित करती हैं। वे कहानियाँ पढ़ते हैं तो बिना पंखों के उड़ते हुए किसी और ही दुनिया में पहुँच जाते हैं, जहाँ बहुत कुछ नया-नया सा है। वहाँ उत्फुल्ल करने वाली कल्पनाएँ हैं, जो हमारी इस यथार्थ की दुनिया में ही संभावनाओं के नए-नए कपाट खोल देती हैं, और हम खुद को एक ऐसी जगह महसूस करते हैं, जहाँ उम्मीदों के दीये जल रहे हैं और लगता है, वह सब भी संभव है, जिसे हम करना तो चाहते हैं, पर वास्तव की दुनिया में हमें जिसकी गुंजाइश नहीं लगती। 

मैं समझता हूँ, कहानी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि जिन चीजों की गुंजाइश वास्तव की दुनिया में नहीं है, कहानियाँ अपनी किस्सागोई के जादू से उसकी भी तनिक गुंजाइश पैदा कर देती हैं। और हम सोचते हैं, जो आज संभव नहीं है, वह समय की धरा में बहते हुए, कभी तो संभव होगा। जरूर होगा। और कहानियाँ हमारी इस उम्मीद को बड़ा सहारा देती हैं। यों कहानियाँ हैं तो जीवन है, कहानियाँ हैं तो हमारे जीने में भी रस है, आनंद है, उत्फुल्लता है। इसीलिए कहानियाँ हजारों बरसों से मनुष्य की सहयात्री रही हैं और उनका आनंद कभी किसी युग में कम नहीं हुआ। 

यह लिखते हुए याद आ रहा है कि मेरा बचपन तो कहानियों की छाँह में ही गुजरा। बचपन में माँ, नानी और अड़ोस-पड़ोस के आत्मीय जनों से सुनी कहानियाँ मैं आज भी भूल नहीं पाया। बल्कि सच तो यह है कि वे मेरी सबसे अच्छी दोस्त और हमसफर भी हैं। मेरे सुख-दुख की साथी। उन्हीं के साथ मैंने सबसे पहले बिना पंखों के उड़ना सीखा था और जाना था कि जिस दुनिया में मैं जीता हूँ, उसमें कितने रंग-रूप, कितने नए-नए गवाक्ष और कितनी अचरज भरी विविधताएँ हैं।…

यकीनन मैं आज लेखक न होता, अगर बचपन में मैंने माँ और नानी से इतनी सुंदर कल्पनाओं और आश्चर्यों से भरी वे कहानियाँ न सुनी होतीं। इसलिए कि इन कहानियों से ही मैंने धरती और अंतरिक्ष के पार भी देख पाना सीखा, और यह जाना कि हमारी आँखों से जो दिखाई नहीं पड़ता, वह भी कहीं-न-कहीं होता है, और उसके बिना यह दुनिया पूरी नहीं होती। और उन्हीं से मैंने जाना कि समय का हर पल चलने वाला यह विराट पहिया और उसकी अद्भुत लीला कैसी है। क्योंकि बिना समय के कोई कहानी, कहानी नहीं होती। 

कहानी है तो उजाला भी है। इसलिए कि कहानी अँधेरे में रास्ता टटोलने का ही दूसरा नाम है। डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक ‘इक्कीसवीं सदी की श्रेष्ठ बाल कहानियाँ’ पुस्तक में प्रकाष मनु मेरी चुनी हुई तेईस कहानियाँ शामिल हैं, जिनका मिजाज कुछ बदला-बदला सा है, दुनिया कुछ बदली-बदली सी है, और इनमें नई सदी की दस्तकें बहुत साफ सुनाई देती हैं। खुद मेरे लिए इन कहानियों को लिखना खासा रोमांचक था। 

इनमें परीकथाएँ हैं तो हास्य कथाएँ भी, विज्ञान फंतासी कथाएँ हैं तो हमारे आसपास के जीवन की असलियत को दरशाने वाली कहानियाँ भी। साथ ही देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे से भरी हुई देशराग की बड़ी भावनात्मक कहानियाँ भी हैं। पर इनमें बहुत कुछ नया-नया सा है। फिर इन सभी कहानियों का सुर ऐसा है कि आप एक बार पढ़ना शुरू करेंगे, तो जब तक कहानी पूरी पढ़ न लें, किताब आपके हाथ से छूटेगी नहीं। इनमें से बहुत सी कहानियों में, खुद मैं भी हूँ, और मैंने जाने-अनजाने अपनी हँसी, अपने आँसू, अपने सपने और अपने सुख-दुख की इतनी नाजुक घड़ियाँ इसमें पिरो दी हैं, कि कोई चाहे तो इनमें मुझे और मेरी आत्मकथा को टटोलकर खोज सकता है। अलबत्ता, इक्कीसवीं सदी की ये रोचक और रसपूर्ण बाल कहानियाँ आषा है आप सभी को बहुत पसंद आयेगी।

प्रकाश मनु
प्रकाश मनु
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