जांबाज़ बहादुर सैनिकों से सुरक्षित देश हमारा

-15 जनवरी थल सेना दिवस पर विशेष-

‌हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली में जनवरी का महिना सशस्त्र सेनाओं का होता है। थलसेना, जल सेना, और वायुसेना की सभी इकाइयां इस महीने विविध कार्यक्रमों के लिये दिल्ली में आकर अपनी तैयारियां शुरू कर देती हैं। अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों के पूर्वाभ्यास के लिये सुबह के समय केन्द्रीय सचिवालय- संकुल के आसपास का क्षेत्र सैनिकमय हो जाता है। 15 जनवरी को आखिरकार सेना दिवस के अवसर पर इन अभ्यासों का परिणाम देखने को मिलता है। वही अभ्यास पुनः फिर से प्रारंभ होता है, राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस 26 जनवरी परेड की तैयारी के लिये।

भारतीय थलसेना आज संख्यात्मक दृष्टिकोण से हो या आधुनिक सैन्य संसाधनों की उपलब्धता में, आज विश्व की अग्रगण्य सैनिक प्रतिष्ठानों में प्रतिष्ठ हो चुकी है। तथापि यह  कहा सकता है कि भारतीय सेना को और भी अत्याधुनिक सैन्य संसाधनों से लैस करने की महती आवश्यकता है। तकनीकी रूप से यह कहा जाता है कि आज ‘युद्ध का जीतना सेना की संख्या पर नहीं, बल्कि युद्ध के लिये उपयोग में लाये गये हथियारों को आधुनिक एवं उद्यतन प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित किया जाए तो युद्ध में विजय प्राप्त करना सुगम हो जाता है। परम्परागत हथियारों से युद्ध लड़ना अब कोई अर्थ नहीं रखता। इंग्लैंड, अमरीका, रुस, फ्रांस, इसराइल आदि सभी विकसित देशों के पास अपनी आधुनिक प्रौद्योगिकियां, हैं, और नई प्रकार की अन्य प्रौद्योगिकिया भी निरंतर विकसित की जा रही हैं। विगत  वर्षों की कुल घटनाएं भारतीय सेना के लिये विष उल्लेखनीय रहे हैं। सर्वप्रथम तो भारत द्वारा पोखरण में परमाणु विस्फोट का सिंहनाद करना, सेना के लिये टॉनिक का काम कर गया। नई स्फूर्ति एवं ताजगी का अनुभव किया गया सैन्य क्षेत्रों में। वही मिसाइलों की श्रृंखलाएं वह भी स्वदेशी तकनीक से इजाद की गई, जो अत्यंत हर्ष का विषय रही हैं। पृथ्वी, नाग, आकाश, त्रिशूल और सबसे बढ़कर पांच हजार से दस हजार तक की दूरी तक मार करने वाले महामिसाइल “अग्नि” का अविष्कार तो अच्छे अच्छे देशों के लिये आंख की किरकिटी बन चुका है।

दक्षिण एशिया के लिये खासतौर पर आज भारत के लिये विशेष रूप से यह चिंता का विषय है कि कब पाकिस्तान आतंकवादियों के जरिये या बिलावजह युद्धों के द्वारा इस क्षेत्र को महाविनाश के गर्त में ठकेल दे। वैसे भी उसने दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को भारत के पीछे लगाने में. अथक प्रयत्न किया। अमेरिका के द्वारा मारे जाने के बाद पाकिस्तान का वह तीर भी न निष्फल हो गया। बस उसे मौके का इंतजार है भयंकर विनाश एवं तबाही माने की। पर हमेशा की तरह उसके मंसूबों पर पानी फिर जाता है। भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों को इसका पूरा श्रेय जाता है। जिन्होंने अपनी जान देकर भी देश पर कभी आंच नहीं आने दी है।

विगत वर्ष में भारत में जोर देकर कहा जा चुका है कि चीन और अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही संप्लाई से अधिक चिंतित होने की जरूरत नहीं है, न हीं भारत को उनकी बराबरी करने की जरूरत है, लेकिन फिर भी यह जरूरी है कि एक दीर्घकालिक कवच बनाकर उसे लागू किया जाए। दुर्भाग्य वैसा हुआ नहीं है। आज के परिदृश्य में पाकिस्तान से ज्यादा शत्रुत पूर्ण रवैया चीन दिखा रहा है लेकिन हमारे देश की सेना और सैनी का मनोबल इतना कुछ है उनका प्रदर्शन उनकी ताकत उनकी क्षमता इतनी अपरिमित हो चुकी है कि हमारे सेनाध्यक्ष भी यह कहते नहीं झुकते हैं कि हम चीन और पाकिस्तान के दोनों मोर्चों पर एक साथ युद्ध कर सकते हैं। भारत के सैन्य बड़े में अनेकानेक आधुनिक और स्वदेशी और नई नई टेक्नोलॉजी के साथ अनेकों हथियारों का बेड़ा शामिल किया जा रहा है। अब तो भारत में उन्नत और अत्याधुनिक हथियार मिसाइल टैंक बंदूकें आदि निर्मित किए जाने लगे हैं और तो और कुछ देशों को हमारे यहां निर्मित हथियारों का निर्यात भी किया जाने लग गया है। आज देश में सेना के पास अर्जुन टैंक और 155 एम. एम. बंदूक, टी 90 भीष्म,टी 72 अजेय,टी 55 एबीटी, बोफोर्स सहित पूर्ण रूप से स्वदेशी व अत्याधुनिक टैंक जोरावर शामिल है।

बेशक भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों के कंधों पर भारत की सुरक्षा सुदृढ एवं अभेद्य दीवार की तरह है और भारत अजेय है। फिर भी हमें अपनी सुरक्षा योजना पर ताजा नजर डालनी होगी। क्योंकि दिन प्रतिदिन वैश्विक परिदृश्य में आधुनिकतम सैन्य हथियार निर्मित एवं उपयोग में लाये जा रहे हैं। कहीं हम उसी पुराने एवं जंग लगे हुवे हथियारों पर ही निर्भर ना रह जाएं। साथ ही देखना होगा कि मशीन के मुकाबले कर्मी यानी सैन्य कर्मियों का कल्याण भी सबसे महत्वपूर्ण है। अभी हाल मैं सरकार ने दो बार संवर्ग पुनरीक्षण हैं। इससे स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ फिर केंद्र सरकार ने परीक्षण करके वन रैंक वेतन एवं पेंशन प्रणाली लागू करी है जिससे की स्थिति में काफी सुधार आया है।

सैन्य कर्मियों की और भी समस्याएं हैं, जिनके दीर्घकालिक हल ढूंढने जरुरी हैं, ताकि सैन्य बलों का  नैतिक बल ऊंचा रहे। उन्हें स्वस्थ्य रखना भी जरुरी है, ताकि वह गणतंत्र दिवस परेड में गौरवमय ढंग से प्रदर्शित परिष्कृत और महंगी मशीनों का उपयोग कुशलता पूर्वक कर सकें।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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