शैक्षिक संवाद मंच की कार्यशाला में कविता के कथ्य और रूप पर हुआ मंथन

कविता लोकतांत्रिक एवं मानव मूल्यों की पक्षधर हो : महेश चंद्र पुनेठा

अतर्रा (बाँदा)। “केवल तुकांतता ही कविता नहीं हो सकती है। किसी भी कविता में कथ्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, रूप का प्रयोग तो कथ्य को बेहतरीन ढंग से कहने के लिए किया जाता है। कविता वही बड़ी है जिसमें विचार, भाषा और इंद्रिय बोध की नवीनता हो। यह नवीनता आती है जीवन के अनुभव और अवलोकन की क्षमता से। मितभाषिता कविता को गद्य से अलग करती है।

गद्य जहां सब कुछ साफ-साफ कह देता है वहीं कविता कहती कम छुपाती ज्यादा है और पाठक के लिए नए अर्थों के संधान की गुंजाइश छोड़ जाती है। कविता लोकतांत्रिक एवं मानव मूल्यों की पक्षधर होनी चाहिए।” उक्त बातें वरिष्ठ कवि और शैक्षिक दखल पत्रिका के संपादक महेश चंद्र पुनेठा द्वारा शैक्षिक संवाद मंच द्वारा गत दिवस आयोजित आनलाइन गोष्ठी “कविता पर एक संवाद” में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित शिक्षक-शिक्षिका रचनाकारों को संबोधित करते हुए कही गईं।

उक्त जानकारी देते हुए शिक्षक साहित्यकार दुर्गेश्वर राय ने बताया कि शैक्षिक संवाद मंच द्वारा प्रमोद दीक्षित मलय के संपादन में प्रकाशित होने वाले काव्य संग्रह “बेसिक शिक्षक रचनावली” में लेखन हेतु देश भर के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए आयोजित इस ऑनलाइन प्रशिक्षण गोष्ठी में महेश चंद्र पुनेठा ने अज्ञेय की साँप, हरिश्चंद पाण्डेय की मां और देवता, बैठक का कमरा, मोहन नागर की अब कूद जाओ, शमशेर बहादुर की ऊषा, शेखर जोशी की धान की रोपाई आदि कविताओं के माध्यम से कविता के विभिन्न पक्षों को सहजता के साथ स्पष्ट करते हुए कहा कि कविता को मनुष्यता के पक्ष में समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज बनकर सत्य और न्याय की बात करनी चाहिए।

शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक और वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि मंच की पुस्तक प्रकाशन योजना विद्यालयों को आनंदघर बनाने की मुहिम का ही एक हिस्सा है। मंच चाहता है कि हमारे शिक्षक-शिक्षिकाएं शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नित नवीन परिवर्तनों से अद्यतन रहें। मंच द्वारा 2012 में स्थापना के बाद से कविता, संमरण, जीवनी, यात्रा वृत्तांत आदि विभिन्न विधाओं पर दर्जन भर पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। इस वर्ष शिक्षकों की शैक्षिक यात्रा, मेरा कमरा मेरा जीवन और बेसिक शिक्षक रचनावली का विभिन्न खण्डों में प्रकाशन प्रस्तावित है। मंच प्रत्येक संग्रह के प्रकाशन के पूर्व विधागत प्रशिक्षण हेतु कार्यशाला आयोजित करता है। आज की कार्यशाला इसी श्रृंखला की अगली कड़ी है।

कार्यक्रम के अंत में आमंत्रित अतिथि, आयोजक, प्रतिभागियों संचालक और मंच के प्रति आभार व्यक्त करते हुए शिक्षक दुर्गेश्वर राय (गोरखपुर) ने कहा कि यह कार्यशाला एक तरफ कवियों की कविता के प्रति समझ को संवर्धित करेगी तो वहीं दूसरी तरफ नए शिक्षक रचनाकारों को बेहतर कविता लिखने के लिए प्रेरित भी करेगी। कार्यक्रम का प्रभावी और अनुशासित संचालन प्रीति भारती (उन्नाव) ने किया। कार्यक्रम में आभा त्रिपाठी, अलका शुक्ला, अमित कुमार, अमिता सचान, अनीता मिश्रा, अनीता यादव, अनुष्का शुक्ला, आरती तिवारी, डॉ. अरविंद कुमार द्विवेदी, अर्चना वर्मा, अनुष्का जड़िया, बाल विनोद उईके, दाऊदयाल वर्मा, धर्मेंद्र त्रिवेदी, डॉ. चैताली यादव, फरहत माबूद, गुंजन भदौरिया, हरियाली श्रीवास्तव, जितेंद्र द्विवेदी सरस, शंकर रावत, कमलेश कुमार पांडेय, कमलेश त्रिपाठी, राघव, मंजू वर्मा, मनमोहन सिंह, मीरा रविकुल, पंकज निगम, पवन कुमार तिवारी, मीरा, पूनम दीक्षित, प्रदीप गौतम, प्रीति भारती, प्रियंका त्रिपाठी, मनीष रिया, राजेंद्र प्रसाद राव, रामजी शर्मा, रितिका मिश्रा, रेनू त्रिपाठी, रीता पांडेय, सरस्वती देवी, शालिनी सिंह, श्रवण कुमार गुप्ता, सृष्टि चतुर्वेदी, सुधा रानी, सुमन कुशवाहा, सुरेशचंद्र अकेला, सुनीता वर्मा, रुखसाना बानो, रश्मि त्रिपाठी, वैशाली मिश्रा, वंदना श्रीवास्तव, विभाष श्रीवास्तव, विन्ध्येश्वरी प्रसाद विन्ध्य, विवेक पाठक, विवेक कुमार, विनीत कुमार मिश्रा, वत्सला पाठक, दुर्गेश्वर राय सहित 80 से अधिक शिक्षक एवं शिक्षिकाओं ने प्रतिभाग किया।

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