श्रमिक कल्याण के लिए अब अपरिहार्य सार्थक पहल की जरूरत

1 मई श्रमिक दिवस के अवसर पर विशेष-

जी हाँ आज “मई दिवस ‘है। मई माह की शुरुआत एक मई यानी मई दिवस या श्रमिक दिवस से होतीं है।  यह श्रमिक मजदूरों के लिये महत्वपूर्ण दिवस हैं। श्रमिक दिवस (मई दिवस) मनाने का भी एक अपना इतिहास है! कई वर्षों पूर्व अमेरिका के शहर शिकागो में श्रमिकों और उनके प्रबंधकों के बीच बड़ा भयानक खून खराबा हुआ था! इसी दिन हजारों मजदूरों को हताहत कर उनके खून से सरजमीं को लाल कर दिया गया। सेवा योजकों ने अपने काम के घंटे तय करने की माँग को लेकर जुलूस प्रदर्शन करते श्रमिकों पर – गोलियाँ चलवा दी थी। इन गोलियों से प्रदर्शनकारी श्रमिकों के कपड़े खूनी रंग से सराबोर लाल रंग से रंग गये। इसी कारण श्रमिक संगठनों के झंडे लाल रंग के होते हैं।

भारत वर्ष में श्रमिकों के लिये आज अनेक संगठन कार्यरत हैं, जो श्रमिकों के हितों एवं सेवा योजकों के अन्यायपूर्ण कार्यों पर नज़र रखकर अपना कार्य कर रहीं हैं, यहाँ की संगठनों में वामपंथ की विचारधारा ज्यादा हावी है। अधिकांश वामपंथी संगठनों के झण्डे लाल रंग के है। और इनका अभिवादन भी “लाल सलाम” होत है। हमारे यहाँ सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिक ज्यादा संगठित है। क्योंकि उनके पास ज्यादा से ज्यादा वेतन, बोनस, अवकाश आदि की माँगे ही रहती है, ठीक इसी तरह इन्हें सरकार से कम अपने नियोक्ताओं से ही ज्यादा मतलब होता है। वैसे इनकी ज्यादातर माँगे प्रायः पूरी भी हो जाती है, अभी हाल ही में अनेक सार्वजनिक क्षेत्रों जैसे डाक सेवा, बैंक, दूरसंचार आदि क्षेत्रों में आंदोलन हुये हैं ,और प्राय: उनकी सभी बातें लगभग मान ली गई है। कारण उनका संगठन हर दृष्टिकोण से मजबूत व संगठित हो चुका है, उनमें जागरुकता की भावना भरी हुई है, अब उनके हितों की अवहेलना कोई भी नियोक्ता ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकता।

कोरोना काल के बाद अगर कहीं सबसे ज्यादा किसी वर्ग विशेष की कमर टूटी है तो वह है श्रमिक वर्ग और उसमें भी असंगठित श्रमिक वर्ग। देखिए सन 2019 में जब पहले पहल कोरोना ने सारे देश को अपने कुप्रभाव में लेकर देश की अर्थव्यवस्था और लोगों के काम धंधे को बुरी तरह से चौपट कर दिया था। यहां तक कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को जगह जगह लॉकडाउन के तहत लोगों को घर के अंदर सीमित किया गया। स्वाभाविक है यह महामारी से बचने के लिए एक बहुत बड़ा हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया उपाय था। और यही उपाय ठेले वाले रेहडी वाले चाय दुकान, दर्जी ,सब्जी दुकान तरह-तरह के श्रमिक दुकानों में काम करने वाले छोटे कर्मचारी होटलों में काम करने वाले कर्मचारी और घूम घूम के फेरी लगाने वाले मेहनतकश मजदूर वर्ग के अधिकांश श्रमिकों व ऐसे वर्ग के लोगों को दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी दूभर हो गया था। अनेक लोगों के घर बिक गए।

सारे सामान बिक गए, और ऐसे वर्ग के लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए। हालांकि प्रदेश की सरकारों व केंद्र सरकार ने अपनी ओर से आम जन के साथ साथ इस तरह के श्रमिक वर्ग के लोगों की हर संभव सहायता पहुंचाने का प्रयास किया फिर भी इस महामारी ने काफी नुकसान लोगों को पहुंचाया। कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर बहुत बड़ा चोट पहुंचाया है। जो अब धीरे-धीरे संभाल रही है। संगठित वर्ग के श्रमिकों को तो निश्चित ही नुकसान पहुंचा लेकिन असंगठित वर्ग के श्रमिकों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा, कोरोना वायरस महामारी की वजह से।

वहीं अभी भी निजी क्षेत्रों में:

अभी भी बहुत से श्रमिक असंगठित हैं। विडम्बना की बात यह है कि इन असंगठित श्रमिकों में बाल श्रमिक एवं महिला श्रमिको की ही संख्या ज्यादा है। यद्यपि असंगठित मजदूरों की समस्यायें अधिक है। कोरोना महामारी के बाद अब तो इनको और भी काम धंधे और सहायता की जरूरत है। जिसके लिए श्रमिक संगठनों को विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों के समक्ष अपनी समस्याओं को रखकर श्रमिक वर्ग के कल्याण के लिए जुझना होगा। आज स्थिति यह है कि श्रमिकों के लिए बहुत कठिन स्थिति पैदा हो गई है कारोबार फिर से जमाने के लिए पूंजी नहीं है। महंगाई चरम पर पहुंचते चली जा रही है, फिर भी कोई संगठन इनके लिये आगे नहीं आ रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन अपने तक ही सीमित हैं। यदि कभी राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन होता है तो अवश्य इनकी सुनवाई हो जाती है। इसलिये कि पिछले वर्षों में कुछेक बार “भारत बंद” के आयोजक श्रमिक संगठनों की अगुवाई रही हैं। फिर भी निजी क्षेत्रों के श्रमिकों ने भारत बंद के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। और देश भर में निज़ी औद्योगिकसंस्थानों में पूरी तरह काम ठप्प कर दिया गया। 

     ऐसी भी बात नहीं है कि निजी क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये कुछ नहीं किया जा रहा हैं। समूचे देश में लगभग सभी राजनीतिक दलों से संबद्ध श्रमिक संगठन कार्यरत हैं। और नियमित तथा निरंतर रुप से श्रमिकों के लिये कार्य हो रहा है। उनके वेतन, बोनस, अवकाश की ढेरों समस्याओं के निदान के लिये श्रमिक संगठन कार्यरत है, किंतु उनमें अभी भी सुधार की गुंजाईश हैं। स्थानीय स्तर पर श्रमिकों की समस्यायें खासतौर से औद्योगिक जैसे मामलों को ये श्रमिक संगठन सुलझाते हैं।, श्रमिक न्यायालयों में श्रमिक व सेवा योजकों के बीच परस्पर समझौते कराने का कार्य भी ये संगठन ही करते हैं। भारत सरकार अब देश में बाल मजदूरी प्रथा समाप्त करने के लिये कठोरता से काम ले रही हैं जो प्रशंसनीय है। वहीं वह जोखिम भरे कारखानों के कार्य और बीडी काँच, कालीन उद्योगों के मालिकों की इस संबंध में बैठक आयोजित कर रही है वह भी एक अवश्यम्भावी कदम है सरकार का। क्योंकि ज्यादातार बाल एवं महिला श्रमिक इन्ही उद्योगों में कार्य करते हैं। 

आज बाल मजदूर प्रथा विश्व भर में चिंता का विषय बनी हुई हैं। इंतज़ार हैं बस अब सरकार एवं नियोक्ता – सेवायोजकों की समुचित पहल का, जिससे श्रमिक वर्ग का कल्याण हो सकें।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

 

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