ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत इंस्टीट्यूट फॉर व्हाट वर्क्स टू एडवांस जेंडर इक्वैलिटी के सहयोग से नई दिल्ली में लैंगिक मुख्यधारा पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया

ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) ने दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के अंतर्गत इंस्टीट्यूट फॉर व्हाट वर्क्स टू एडवांस जेंडर इक्वैलिटी (आईडब्ल्यूडब्ल्यूएजीई) के सहयोग से कल नई दिल्ली में लैंगिक मुख्यधारा पर राष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन किया। सम्मेलन में लैंगिक संवेदनशील सामुदायिक संस्थाओं को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया और डीएवाई-एनआरएलएम ढांचे के भीतर महिला-पुरुष समानता को आगे बढ़ाने की रणनीतियों पर चर्चा की गई।

ग्रामीण विकास सचिव श्री शैलेश कुमार सिंह ने बताया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरकार की भागीदारी का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक समावेशन और सशक्तिकरण के जरिए लोगों के जीवन और उनकी आजीविका को बदलना है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि डीएवाई-एनआरएलएम ने अंतर-मंत्रालयी सहयोग के माध्यम से ‘सरकार के समग्र दृष्टिकोण’ को अपनाया है। अब, हमें जमीनी स्तर पर लोगों और विशेषज्ञों से सीखकर अपनी लैंगिक रणनीति को और बेहतर बनाने की जरूरत है।

भारत सरकार के पूर्व सचिव श्री नागेंद्र नाथ सिन्हा ने कहा कि डीएवाई-एनआरएलएम संरचनात्मक असमानताओं को दूर करके और महिलाओं के समूह, आवाज और एजेंसी को मजबूत करके महिलाओं को सशक्त बनाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि श्रम के असमान विभाजन, अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ और महिलाओं के अधिकारों और पात्रताओं की कमी को समझने के लिए विवेचनात्मक जागरूकता आवश्यक है। उन्होंने देश भर में प्रत्येक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की अनूठी चुनौतियों के अनुरूप अनुकूलित, संदर्भ-विशिष्ट समाधानों का आह्वान किया और अनुभव के साथ सीखने के लिए नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी को मजबूत करने की सिफारिश की।

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ग्रामीण विकास मंत्रालय में अतिरिक्‍त सचिव श्री चरणजीत सिंह ने बताया कि क्षमता निर्माण एक अनवरत प्रक्रिया है। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों, ग्राम संगठनों (वीओ), क्लस्टर स्तरीय संघों (सीएलएफ) और सामाजिक कार्य समितियों (एसएसी) की क्षमताओं को बढ़ाने का आह्वान किया, ताकि वे अपने कार्य को पूरा कर सकें। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों के लिए बेहतर कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता की जरूरत पर बल दिया। साथ ही उन्होंने महिलाओं के लिए उपलब्ध कानूनी उपायों के बारे में जानकारी का प्रसार करने के लिए न्याय विभाग के साथ सहयोग करने का सुझाव दिया।

इस कार्यक्रम में लिंग संवेदनशील सामुदायिक संस्थाओं, सम्मिलन मार्गों, कार्यक्रम बनाने में महिला-पुरुष को जोड़ने और गठबंधन तथा वकालत सहित विषयों पर चार पैनल चर्चाएं हुईं। प्रतिभागियों में पंचायती राज मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, एसआरएलएम, स्वयं सहायता समूहों के सदस्य, जेंडर विशेषज्ञ और नागरिक समाज से जुड़े लोग थे।

मुख्य चर्चाएं महिला सशक्तिकरण में आने वाली बाधाओं पर केंद्रित रहीं, जिनमें अवैतनिक कार्य, लिंग आधारित श्रम विभाजन, वेतन में भेदभाव और कृषि में स्वामित्व की कमी शामिल है। वैश्विक एडवोकेसी कार्यक्रम ‘नई चेतना पहल’ को सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से इन मुद्दों पर काम कर रही है। इसमें एक खास बिंदू पर फोकस गया जिसमें एनआरएलएम मिशन के  कर्मचारियों, पंचायत प्रतिनिधियों और संस्थागत हितधारकों के लिए व्यापक लिंग प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया गया ताकि इन चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके।

यह भी ध्यान दिया गया कि जेंडर एक ऐसा मुद्दा है जिसे सभी क्षेत्रों में एकीकृत करने की आवश्यकता है, जिसमें आजीविका और संस्थागत तंत्र शामिल हैं। चर्चाओं में पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती देने और समावेशी स्थान बनाने के लिए पुरुषों, लड़कों और युवाओं को शामिल करने के महत्व पर जोर दिया गया। घरों में महिला-पुरुष समानता को बढ़ावा देने और खेती तथा स्थानीय उद्यमों में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने में एसएचजी की भूमिका का भी जश्न मनाया गया।

सम्मेलन का समापन संस्थागत तंत्र को मजबूत करने, सहयोगी प्रयासों का विस्तार करने और न केवल एनआरएलएम के भीतर बल्कि उससे परे भी महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए एक मजबूत रणनीति विकसित करने की साझा प्रतिबद्धता के साथ हुआ, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत भर में ग्रामीण महिलाओं को संतुष्ट और हिंसा मुक्त जीवन जीने के लिए सशक्त बनाया जाए।

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