– ललित गर्ग –
हम पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में वृद्धों को सम्मान दें, इसके लिये सही दिशा में चले, सही सोचें, सही करें। इसके लिये आज विचारक्रांति ही नहीं, बल्कि व्यक्तिक्रांति की जरूरत है और इसी के लिये एक अक्टूबर को सम्पूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है। समाज और नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने और मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ नागरिकों के योगदान को सम्मान देने के लिए इस आयोजन का फैसला संयुक्त राष्ट्र ने 1990 में लिया था। इस दिन पर वरिष्ठ नागरिकों और बुजुर्गा का सम्मान किया जाता है। वरिष्ठों के हित के लिए चिन्तन भी होता है। प्रश्न है कि दुनिया में वृद्ध दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां बनी हुई है? चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि हम पतन के इस गलत प्रवाह को रोके। क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है। वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, उसकी आंखों में भविष्य को लेकर भय है, असुरक्षा और दहशत है, दिल में अन्तहीन दर्द है। इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलानी होगी। सुधार की संभावना हर समय है।
वृद्ध व्यक्तियों को सुखद एवं खुशहाल जीवन प्रदत्त करने के लिये हमें सर्वप्रथम तो उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनाने पर ध्यान देना होगा। बेसहारा वृद्ध व्यक्तियों के लिए सरकार की ओर से आवश्यक रूप से और सहज रूप मे मिल सकने वाली पर्याप्त पेंशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसे वृद्ध व्यक्ति जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ हैं, उनके लिए समाज को कम परिश्रम वाले हल्के-फुल्के रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए। वृद्धों के कल्याण के कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए, जो उनमें जीवन के प्रति उत्साह उत्पन्न करे। अधिकांश युवाओं की सोच इस रूप में पुख्ता हो जाती है कि संयुक्त परिवार व्यक्तिगत उन्नति में बाधक होते हैं। चीजों की ललक में स्वहित इतने हावी हो जाते हैं कि संवेदनहीनता मानवीय रिश्तों की महक को क्षण में काफूर कर देती है और तन्हा बुढ़ापा घुटनभरी सांसों के साथ जीने को बाध्य हो जाता है। हमें समझना होगा कि अगर समाज के इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहा तो हम उस अनुभव से भी दूर हो जाएंगे, जो इन लोगों के पास है। वृद्ध दिवस मनाना तभी सार्थक होगा जब हम उन्हें परिवार में सम्मानजनक जीवन देंगे, उनके शुभ एवं मंगल की कामना करेंगे।