-रोमांचक संस्मरण-
यह बात उन दिनों की है, जब मैं करीब बीस वर्ष का था। ये उम्र किशोरावस्था पार कर युवावस्था में कदम रखने की होती है तो स्वाभाविक है उमंग, जोश उत्साह कमोबेश हर युवा में कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है। मेरा दोस्त भी मेरे ही उम्र का था अतः हम दोनों स्वाभाविक रूप से उमंग में और उत्साहित थे। हममें जोश और उमंग, उत्साह का सागर हिलोरे ले रहा था।
उस जमाने में हम लोगों ने अभी अभी ही गाड़ी चलाना सीखा था। स्वाभाविक तौर पर(स्कूटर – मोटर सायकिल) में घूमने के बहुत शौकिन भी थे। हालांकि घर में दो दो गाडियां थीं लेकिन अक्सर पड़ने वाली डाटों की वजह से मैं उन्हें चलाने कतराता था। उन दिनों मेरा-एक प्रिय दोस्त था रजनीश। जिसके साथ मेरा काफी समय बितता। हम दोनों का साथ में काफी घूमना फिरना और गहरी दोस्ती थी। एक दिन वह अचानक जिद करने लगा कि यार चल न तेरे यहां तो गाडी है ही, उसे लेकर आज कहीं घूमने निकलते हैं। मैं उसे बहुत मना करता रहा कि मुझे गाड़ी छुना अच्छा नहीं लगता। मैंने उसे यहां तक कहा कि मुझे स्कूटर चलाना भी नहीं आता है। लेकिन वह नहीं माना। आखिर मुझे उसकी जिद के सामने झुकना पड़ा। और मैंने घर से इजाजत लेकर एक स्कूटर ले ली। फिर हम लोग निकल पड़े सैर सपाटे के लिए।
स्कूटर मेरा दोस्त ही चला रहा था। वह भी शायद फिर चलाने मिले या ना मिले, यह सोचकर मस्ती और फर्राटे से स्कूटर भगाये जा रहा था। मैं जानता था कि वह नौ सिखिया है और एक्सीडेंटकर सकता है। इसलिए मैंने उसे कई बार टोका कि गाडी धीरे चलावे। पर वह नहीं मान रहा था। साठ पैंसठ की गति से वह स्कूटर चलाये जा रहा था। अब तो इसी स्पीड में हम मॉडल कालेज की ओर बढ़ रहे थे। सड़क पर लोगों की आवाजाही चल रही थी ऐसी स्थिति में इतने स्पीड में चलना खतरनाक हो सकता था। उसी समय शायद कालेज की छुट्टी हुई थी। कालेज के लड़के, लड़कियों की भीड़ सायकल,कुछ पैदल ही जा रहे थे, किं तभी उनमें से एक सायकल सवार लड़का सड़क के बीचों बीच आड़ा होकर सायकल समेत गिर पड़ा। वो हमसे आगे कुछ दूरी पर ही गिरा था। इधर हम भी स्कूटर में फर्राटे से सडक के बीचों बीच तेजी से चले जा रहे थे। आगे लड़के को गिरते देखकर मैने रजनीश को सावधान करते हुये कहा कि…देखना आगे एक लड़का सड़क में गिर पड़ा है, उसको बचा के निकलना।
लेकिन मेरी बात पूरी होने के पहले ही हम सेकेण्डों में वहां तक पहुंच चुके थे, और तब तक तब स्कुटर चला रहा रजनीश,एकदम ही हडबडा उठा था। फिर भी जैसे तैसे लड़के को बचाकर स्कूटर को संभाल ही रहा था, वैसे भी हमारे स्कूटर की स्पीड तो खैर पहले से थी। इसी बी हमारे आगे एकदम सामने में अंधा मोड़ भी आ चुका था कि अकस्मात सामने मोड से एक बस तेजगति से आती हुई नजर आई। सामने मोड होने के कारण बस पहले नजर नही आई थी। तुरंत ही अचानक बस सामने नजर आ गई, यह देख हम दोनों बुरी तरह से घबरा कर चकरा गये। अगर जल्दी ही रजनीश स्कूटर को साइड नहीं लेता तो कुछ भी हो सकता था ऐसा महसूस हुआ। मैं यह देखकर घबरा उठा! हे भगवान… क्या होगा…?मैंने रजनीश को बदहवासी में ही चिल्ला कर कहा कि कि सामने बस है देखना। लेकिन मुझे उसका चेहरा देखकर महसूस हुआ कि वह कुछ सुन ही नहीं रहा है!
वह भाव शून्य सा सामने बस को ही देखे जा रहा था। वह ना ही साइड ले रहा था। न हीं गाड़ी में ब्रेक लग रहा था लगा जैसे वह पूरी तरह से घबरा उठा है। यही देखकर मुझे सीधे मौत नजर आने लगी थी। हमारी स्कूटर और बस दोनों काफी तेजी से चले आ रहे थे, और हमारे बीच का फासला तेजी से ही कम हो चुका था। रजनीश था कि सिर्फ सामने की ओर अपलक देखे जा रहा था, और पीछे से मैं कभी उसे देखता कभी बस को ।