-31 अक्टुबर सरदार पटेल जयंती के अवसर पर विशेष-
स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल अपने नाम अनुरूप ही फौलादी इरादों वाले, दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति थे, इनकी इसी विशेषता ने भारत जैसे विशाल संघ को जन्म लेने में प्रमुख भूमिका निभाई। 1947 में जब, भारत स्वतंत्र हुआ तब भारत के अनेक प्रांतों व रजवाड़ों ने भारतीय संघ में मिलने से असहमति जता दी। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अथक प्रयासों के उपरांत आखिरकार इसके इसके लिये तात्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल को कहा। तब सरदार पटेल के दृढ इरादों के आगे इन रियायतों की दाल नहीं गल पाई और अधिकांश राज्यों ने अपने विलय की घोषणा करते हुए अपनी हामी भर दी, एवं भारत की संप्रभुता को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया। सरदार पटेल की इस सफलता पर उस समय की संसद में बहुत चर्चा थी। यह तो निर्विवाद सत्य है कि भारत के नव निर्माण में जवाहरलाल नेहरू के साथ साथ सरदार जी की भी बड़ी अहम भूमिका रही।
स्वतंत्रता पूर्व सन् 1946 की ही बात है। अंग्रेजी कुशासन के विरोध में भारतीय नौ सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। बाद में यही विद्रोह बढ़कर देशव्यापी स्वरूप ले लिया। बंबई , कलकत्ता, मद्रास, करांची, कोचीन, विशाखापटनम तथा अंडमान में लगभग सभी नौ सैनिक प्रतिष्ठान विद्रोह की घोषणा कर चुके थे। स्थिति बहुत विस्फोटक होती जा रही थी। विद्रोह का केन्द्रस्थल बंबई था। अंग्रेज सरकार अपने ‘शक्ति प्रर्दशन की धमकी दे चुकी थी व अपनी ओर से विद्रोह को कुचलने के लिये बल प्रयोग करने की सोच रही थी, तब “विद्रोहियों की ओर से भी हर प्रकार की परिस्थितियों में मरने मारने की प्रतिज्ञाएं की जा रही थी। कोई समझौते की राह नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसे विकराल और भयंकर परिस्थितियों में इसके हल के लिये पूरे प्रकरण की कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई। इस समय सारा देश भयभीत और विचलित हो उठा था। लोगों की निगाहें अब सरदार पटेल की ओर टिकी हुई थीं। पर सरदार पटेल अचल और मौन बैठे हुये थे। बंबई के गवर्नर से उनकी बातचीत के दौरान वे यह स्पष्ट कर चुके थे कि वह अपनी सरकार से सिर्फ इतना पूछें कि अंग्रेजों को भारत से मित्रों के रूप में विदा होना है या लाशों के रूप में। इस चेतावनी को सुनकर जब गवर्नर ने सरदार पटेल के साथ सख्ती से पेश आना चाहा, तब सरदार पटेल ने उससे गरज कर कहा- “आप मेरा वक्त खराब न कीजिये मै अपनी बात आप से कह चुका हूं। अगर आपकी तरफ से गोली ‘चली तो जो नतीजा होगा, उसके जिम्मेदार आप खुद होगे”। जैसे जैसे स्थिति बिगडती जा रही थी। बंबई के निवासी विचलित होते जा रहे थे। उन्होंने सरदार जी से कहा- कुछ करिए, अंग्रेजों के जहाज बंबई की ओर चल पड़े हैं। मगर सरदार ने अपना मौन नही तोड़ा।
सारे देश में तहलका मच गया, चारो ओर से सरदार के पास दबाव और मिन्नतें आने लगीं कि बंबई बारुद के ढेर पर खड़ा हैं, अंग्रेज इसे उडा ‘देंगे। मगर सरदार पटेल ने अपनी आग उगलती आंख तरेरने के सिवाय एक शब्द भी मुंह से नही निकाला। ऐसे तनावपूर्ण’ तनातनी भरे माहौल के समय हर पल आशंकाओ में गुजरने लगे. प्रत्येक बीतते पलों के साथ कुछ अनहोनी की आशंका ने अपना साम्राज्य बना लिया। ऐसी विकट स्थिति से पंडित जवाहर लाल नेहरू घबराकर बंबई पहुंचे। सरदार पटेल थोडे बिगड़े। बोले घबराने की बात क्या है इसमें ? मैं अंग्रेजी की ताकत जानता हूं और वे मेरी ताकत जानते हैं।
सरदारजी की पकड़ और परख आखिरकार सही निकली। गवर्नर ने जिद छोड़ सरदार से सहयोग मांगा और तब स्थिति काबू में आ गई। उसी शाम को सरदार पटेल ने चौपाटी पर सभा में कहा- “मैं अपने मुल्क की ताकत जानता हूँ, जो इसे कमजोर कहते हैं, वे खुद कमजोर हैं। हम किसी की आजादी छीनना नहीं चाहते किंतु हमारी आजादी छीनने के लिये अगर सारी दुनिया भी हम पर हमला करेगी तो हम उसके टुकड़े बिखेर देंगे।
26 फरवरी 1946 को चौपाटी पर एक दूसरी जन सभा में बोलते हुए सरदार पटेल ने नौसेना के इस विद्रोह के लिये अंग्रेजी सरकार को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया और कहा कि जिन अमानवीय एवं पक्षपात पूर्ण परिस्थितियों में भारतीय नौसैनिकों को नौकरी करनी पड़ रही थी। तो उसका परिणाम ‘विद्रोह के रूप में तो होना ही था।” ‘विद्रोही नौसैनिकों ने यह कदम उठाने से पूर्व अपनी शिकायतें प्रत्येक वैधानिक तरीके से कई बार अंग्रेजी सरकार के सामने रखी थी। लेकिन सरकार केवल उनकी उपेक्षा करती रही, अपितु उनको बेइज्जत और प्रताड़ित भी करती रही। इस सबसे क्षुब्ध होकर मजबूरन इन नौसैनिकों को यह कदम उठाना पड़ा। स्थिति को स्पष्ट करते हुये सरदार पटेल ने आगे कहा कि सरकार इन लोगों को सजा नहीं दे सकती, क्योंकि उसकी जातीय भेदभाव की नीति के कारण ही आज यह हालत पैदा हुई है।
अंततः सरदार पटेल के नेतृत्व में किया गया यह विद्रोह भारत में अंग्रेजी राज्य के ताबूत के लिये अंतिम कील बन गया। इस विद्रोह को चारों ओर से, भारतीय जनता तथा सेनाओं का जिस तरह समर्थन मिला उसने अंग्रेजी सरकार की आखें खोल दी, और उसे इस बात का पूरा एहसास करा दिया कि अब वे किसी भी सूरत में अपने को भारत में कायम नहीं रख पाएंगे, इसलिये अच्छा यही है कि जितनी जल्दी हो वे यहां से अपना बिस्तर गोल कर लें। सरदार पटेल की दृढ़ता और अटल स्वभाव, साहस और क्षमता ने आखिरकार अंग्रेजों को भारत से राजपाट छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया।