– अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र को समझाते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा था, “जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन”, जहाँ जनता अपने बीच से ही एक व्यक्ति को नेता चुनती है और वही नेता जनता के हित में काम करते हैं। यह नेता जनता के प्रतिनिधि होते हैं और जनता का विश्वास उनके कंधों पर होता है। जब कोई नेता किसी पद पर आसीन होता है, तो उसके कार्य और निर्णय का असर सीधे तौर पर जनता के जीवन पर पड़ता है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जनता को यह जानकारी हो कि उसके नेता ने क्या काम किया है, किस प्रकार के फैसले लिए हैं, और इन फैसलों का क्या प्रभाव पड़ा है।
जिस तरह किसी प्राइवेट ऑफिस में कर्मचारियों से उनके काम का हिसाब माँगा जाता है कि किसने कितना काम किया, कितनी प्रोडक्टिविटी दिखाई, और कौन कितनी छुट्टियां लेकर आराम करता रहा। और उसी के आधार पर उनकी तनख्वाह में बढ़ोतरी, नौकरी की निरंतरता, पदोन्नति और अन्य पहलुओं पर निर्णय लिया जाता है। उसी तरह हमारे देश के नेताओं से भी हर महीने, तिमाही, या छमाही रूप से उनके किये कामों का हिसाब भी माँगा जाए। संभवतः नेतागण अक्सर अपने पार्टी के सीनियर लीडर्स को लेकर जवाबदेह होते हैं लेकिन उनकी असल जवाबदेही जनता के प्रति है। दूसरा, काम का हिसाब मांगने पर नेताओं में न केवल जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि वे अधिक गंभीरता और प्रतिबद्धता के साथ काम करेंगे। साथ ही वे यह भी अच्छी तरह समझ सकेंगे कि उनका पद सिर्फ दो चार भाषण या सभाएं करने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी जिम्मेदारी है कि वे देश और जनता की भलाई के लिए ईमानदारी से काम करें।