पुस्तक जिनके उर बसे

पुस्तक उर पैदा करे, नीर क्षीर सत्बुद्धि।
नाम, काम धन जग मिले, सहज सुखद उपलब्धि।।

पुस्तक पढ़ पंडित बनें, खल कामी शठ चोर।
जीवन उपवन सा खिले, सुखद सुनहरी भोर।।

पुस्तक सुयश पराग है, सुरभित सकल समाज।।
वे नर शोभित सभा में, ज्यों सोहे मृगराज।

पुस्तक जिनके उर बसे, खिलते कमल नवीन।
ताल छंद नव ज्ञान दे, करती गुणी प्रवीन।।

पुस्तक संबल है बने, उर उपजे विश्वास।
घने अँधेरे पंथ पे, परिमल मृदुल प्रकाश।।

 
प्रमोद दीक्षित मलय
 शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

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