राम का नाम : सभी दुखों का नाशक

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत” 

 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की उपासना अनमोल निधि है यह योग वेदांत और सभी शास्त्रों का सार है। पुराणों, उपनिषदों और स्मृतियों में इसकी महिमा का बखान किया गया है। राम की उपासना करने वाले भक्तों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है। वह चारों पुरुषार्थ को आसानी से सुलभ कर सकता है। राम की उपासना सहज है इस नाम की महिमा के बारे में ऋषि जनों ने इतना कहा और लिखा है ,कि इसे समझने में विद्वानों को कई जन्म लग सकते हैं। कन्याकुमारी से कश्मीर तक और आसाम से गुजरात तक हर हिंदू किसी ना किसी रूप में राम का पूजन करता है। सूर्यवंशी राम महा विष्णु के अवतार थे। त्रेता युग में तामसी शक्तियों के विनाश हेतु उन्होंने अवतार लिया था। वे समाज में सतोगुण के प्रसार के लिए महाराजा दशरथ के जेष्ठ पुत्र के रूप में दुनिया में जन्म लिए, और अपने प्रगट होने का प्रयोजन पूरा करने के बाद उन्होंने सरयू के पवित्र जल में समाहित हो कर अपनी लीला समेट ली थी।

       श्री राम जी की उपासना जिन मंत्रों से की जा सकती है उनमें कम से कम पचास अति प्रसिद्ध हैं। विष्णु और नारायण की उपासना का सबसे सहज रूप यह है कि आप राम भक्ति में लीन हो जाएं। इन तीनों देव शक्तियों की उपासना में कोई अंतर नहीं है। राम का नाम सहज है, सरल है और इसे हमेशा हर दशा में जपने से आपके सभी अभीष्ट काम पुरे होते रहते हैं। राम नाम अग्नि (र ), अनंत (अ ), और इंदु (म ) का सहयोग है। इन अक्षरों में  “रा”बीज बनता है। इसके बाद रामाय नमः पद जोड़ने से छह अक्षरों वाला मंत्र —“रा रामय नमः”बनता है। विद्वानों ने कहा है कि यह मंत्र साधना की सभी कामनाएं पूरी करता है। यह एक ऐसे रत्न के समान है जिससे साधक की सारी इच्छाएं पूरी होती है। यह भक्तों के लिए कामधेनु और कल्पतरु के समान है। इस मंत्र की साधना बहुत आसान है। सवेरे उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें। “ओम नमो नारायणाय नमः”मंत्र का जाप करें स्मरण करें। यह आठ अक्षरों वाला विष्णु मंत्र साधक का तन मन पवित्र करता है।

       भगवान श्रीराम का एक अमोघ मंत्र है–“हूं जानकी वल्लभाय  स्वाहा”! इस मंत्र में भगवान के साथ जगदंबा सीता की शक्ति का स्मरण किया गया है। शक्ति के बिना साधना पूरी नहीं होती। इसलिए इस मंत्र को बहुत प्रभावशाली माना जाता है। इस मंत्र के जनक ऋषि वशिष्ठ हैं। इसका छंद विराट है। इसके देवता भगवान राम हैं। इसका बीज “हूं” और इसकी शक्ति “स्वाहा” है। पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए–“मनोहर अयोध्या नगरी में रत्नों से जुड़ा हुआ एक सुंदर मंडप है। इस मंडप में मदार के फूल खिले हुए हैं ! इसके चारों ओर सुंदर तोरण हैं। इसमें एक सिहासन रखा हुआ है। सिहासन पर फूल बिछे हुए हैं। उस पर भगवान श्री राम  विराजमान हैं। उनके चारों ओर दिव्यमानों पर विराजमान राक्षस, वानर, देवता और मुनि उनकी वंदना कर रहे हैं। उनके बाएं ओर जगत माता सीता विराजमान हैं। प्रभु लक्ष्मण उनकी सेवा कर रहे हैं। भगवान राम श्याम वर्ण हैं। उनका दिव्य शरीर आभूषणों से शोभायमान है। वे प्रसन्न मुख मंडल से भक्तों को निहार रहे हैं। इस तरह ध्यान करने के साथ ही इस स्तुति का पाठ भी करना चाहिए।

 “”अयोध्या नगर रम्ये रत्न सौंदर्य मंडपे मंदार पुष्प बध्द वितान तोरणानिवते सिहासन समारूढ़ पुष्प कोटी रघुवंम् !!

रक्षोभिहरि मिदैवैं दिव्यम यान गतै: शुभ:!!

संहयूय मानं मुनिभि: सर्वझै: परि शोभितमं।

सीतालंकृत वामांग लक्ष्मणेनोप से वितम।

श्यामं प्रसन्ना वदनम सर्वाभरण भूषितमं ।।””

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत” 

     भगवान राम अखंड ब्रह्मा के रूप हैं। उनकी उपासना योगी जन इसी रूप में करते हैं। उनका सगुण रूप भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करता है। जो साधक उनकी पूजा में ज्यादा समय नहीं दे सकते उन्हें भक्ति भाव से राम की महिमा का बखान करने वाले स्रोतों का पाठ करना चाहिए। स्रोत और कवच की यह खासियत है कि इनका पाठ करने में ज्यादा समय नहीं लगता, ज्यादा साधन भी खर्च नहीं करने होते और आराध की उपासना भी हो जाती है। इनका पाठ करने में सिर्फ भक्तों के मन की एकाग्रता चाहिए। जो फल मंत्र ,जप ,यज्ञ और बड़े पैमाने पर पूजन का हो सकता है। वैसा ही लाभ स्रोतों और कोचों के पाठ से भी हो जाता है। भगवान राम की उपासना का एक अचूक तरीका है राम रक्षा स्त्रोत का पाठ। वज्र पंजर कवच के नाम से भी यह स्रोत प्रसिद्ध है। दरअसल दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है। दोनों के ऋषि बुध कौशिक हैं । दोनों का छंद गायत्री है । यह कहा भी गया है कि–

    रामरक्षां पठेत प्राज्ञ: पापहनीं सर्व काम दामा यशवत पापों का नाश करने वाला और सभी मनोकामना को पूरा करने वाला माना जाता है। राम रक्षा स्त्रोत का पाठ ध्यान के बाद एकाग्र अभाव से करना चाहिए। पाठ के समय साधक को कोई दूसरा विचार मन में नहीं लाना चाहिए पूर्णविराम उसे तन मन से प्रभु राम के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए।

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