कहानी: बौना बालक

जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही बेसिक ढंग से होती है | कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है | चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है |

एक बार हमारे विद्यालय में कक्षा छठी में एक बच्चे हर्ष का नया दाखिला हुआ | वह दिखने में आम बच्चों की तरह नहीं था | उसका कद बौने जैसा था | कक्षा के दूसरे बच्चे उसको परेशान करते, उसका मज़ाक बनाते और उसपर हँसते | कहते- “और भई छोटू, जा-जा दूसरी कक्षा में बैठ तू हमारे टाइप का नहीं |” हर दिन एक नया कारनामा कर डालते | वह मुसकुरा कर कहता “और दोस्तों ! मैं तुम्हें हमेशा अदब से ऊंचा सर करके देखता हूँ,मुसकुराता हूँ पर जब तुम मुझे  देखते हो तो तुम्हें झुकना पड़ता है |” वह भी नए माहौल में आया था, अंदर से थोड़ा तो सहमा-डरा सा रहता था | वह पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार था, कक्षा में आने वाली सभी विषयों की अध्यापिकाएँ उसका काम देखकर बहुत खुश थीं | उसपर किसी की बुरी बातों का कोई असर नहीं होता था | 

धीरे-धीरे कक्षा के अन्य बच्चे तो उसके सरल स्वभाव के कारण उसके दोस्त बन गए लेकिन राजेश कुमार को उससे जलन होती थी | वह उसकी शिकायत लगाने के मौके खोजता रहता | उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर हर्ष को परेशान करना चाहा पर किसी ने भी उसका गलत काम में साथ नहीं दिया | तो उसने अकेले ही एक योजना बनाई और मन ही मन सोचने लगा –“इसकी सारी अकड़ निकालूँगा और इसे मज़ा चखाऊंगा |” 

शाम के समय राजेश कुमार ने विद्यालय के पार्क में एक गहरा गड्ढा खोदा और उसको मिट्टी से ढक दिया | सुबह-सुबह हर्ष खेल के मैदान में रनिंग कॉम्पटिशन की प्रैक्टिस के लिए जा रहा था, राजेश कक्षा की खिड़की से उत्साहित हो सब देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि “बस अब ये गिरेगा और मिलेगा भी नहीं किसी को हाहाहा !” अभी वह यह सोच ही रहा था कि तभी अचानक न जाने कहाँ से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया और एकदम से मैदान में सरपट भागता-भागता धम्म से उस गड्ढे में जा गिरा | वह पें पें पें कर बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था तभी हर्ष ने देखा, सब बच्चे तमाशा देखने के लिए वहाँ आ गए और शोर करने लगे | बच्चों का शोर सुनकर प्रिन्सिपल सर वहाँ आए, जैसे ही बच्चों ने उन्हें देखा सब खामोश |

हर्ष ने तबतक उस गड्ढे में उतरकर उस कुत्ते को बाहर धकेला, वह बिलकुल नहीं डरा कि उसे कुछ हो गया तो …..उसका हौंसला और बहादुरी देखकर प्रिन्सिपल सर ने उसको शाबाशी देते हुए कहा –“सदा खुश रहो तुमने एक जानवर की मदद की है |” पीछे मुड़कर उन्होने सभी बच्चों की ओर देखकर कहा – “किसने किया ये सब ? बोलो जल्दी |”बच्चे बड़ी-बड़ी गुस्से वाली आँखें देखकर डर गए और चुपचाप खड़े हो गए, कोई कुछ नहीं बोला | प्रिन्सिपल सर – “दोपहर को छुट्टी से पहले मेरे ऑफिस में आकर अपनी गल्ती मान लोगे तो अच्छा है, नहीं तो सोच लो ?” सभी बच्चे सोच में पड़ गए कि ये सब राजेश ने किया होगा | ( एक-दूसरे की  तरफ देखते हुए )राजेश यह सब ऊपर से देख रहा था उसकी घबराहट बड़ गई कि क्या करूँ? तभी किसी बच्चे ने उसकी पैंट खींची तो वह डर गया कि कौन है ! दाएँ-बाएँ देखने के बाद उसने नीचे देखा तो हर्ष उसके पास खड़ा था | वह मुस्कुराकर बोला कि मैं जानता हूँ कि यह सब तुमने किया था मुझे नुकसान पहुंचाने के लिए | 

पर मैंने सर से इस बारे में कोई बात नहीं की क्योंकि हम एक ही कक्षा में हैं, तो एक परिवार के मेम्बर जैसे हैं | मैं नहीं चाहता कि मेरे भाई जैसे दोस्त पर कोई आंच आए | क्या तुम मुझे अपना दोस्त बनाओगे ? राजेश कुमार (मन ही मन में सोचता है ) – एक इतने छोटे कद के बावजूद भी उसका दिल तो कहीं ज़्यादा बड़ा था | राजेश शर्मिंदा होकर उसके बराबर बैठकर उसको गले लगाता है और कहता है कि “मैं खुद जाकर प्रिन्सिपल सर को सच्चाई बताऊंगा |”कक्षा के दरवाजे पर क्या देखते है कि प्रिन्सिपल सर खड़े थे और उन्होने सब सुन लिया | राजेश आगे बढ़ता है वैसे ही सर कहते हैं –” बेटा इंसान का रूप-रंग, कद मायने  नहीं रखता उसका व्यक्तित्व और उसका हौंसला ही उसकी असली पहचान हैं |”

भावना 'मिलन'
भावना ‘मिलन’
एडुकेशनिस्ट, लेखिका एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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