कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर विशेष-
कहते हैं जब जब धरती पर अत्याचार और पाप बढ़ जाते हैं ,अधर्म का बोलबाला बढ़ जाता है। तब तब अवतारी पुरुष इस धरा पर जन्म लेते हैं, और वे ही पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों और पाप को खत्म करते हैं, धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करते हैं। ठीक ऐसे ही द्वापर युग में घोर अत्याचारी राजा कंस का दूराचार और अधर्म अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका था। जन जन में त्राहि-त्राहि मची हुई थी।, यह सब देखकर पृथ्वी इतनी ज्यादा व्यथित हुई कि वह व्याकुल हो उठी, तब उसने अपनी समस्या निदान की भगवान विष्णु से प्रार्थना की, विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि – “हे पृथ्वी तू चिंतित हो रही है मैं बहुत जल्दी ही तेरी छाती का भार हल्का कर दूंगा। जा तू निश्चिंत रह मैं शीघ्र ही अवतार लेकर कंस का वध कर दूंगा। पृथ्वी पर बढे पाप अधर्म और चारों ओर मचे हाहाकार को खत्म करूंगा।” पृथ्वी यह सुनकर बड़ी प्रसन्नचित वापस लौटती है।
उधर कंस की राजधानी इस समय मथुरा थी। उसने अपने न्यायप्रिय पिता को बेड़ियों में जकड़कर काल कोठरी में डाल दिया था और स्वयं जबरदस्ती राजा बन बैठा था। कंस के इस कदम से किसी को जरा भी प्रसन्नता नहीं हुई उल्टे हर कोई बहुत दुखी हुआ, पर किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि वह उसके विरुद्ध कोई भी टिका टिप्पणी कर सके। सो सभी ने मुंह सी लिया था। कंस की एक बड़ी लाड़ली बहिन देवकी थी, उसने उसका विवाह अपने ही दरबार के उच्चाधिकारी वसुदेव से कराया था। एक दिन भविष्यवाणी होती है कि – “हे कंन्स अब तेरा विनाश होने का समय निकट आ गया है, तेरा काल शीघ्र ही तेरी ही बहन देवकी के कोख से जन्म लेगा”। कंस ने जब यह सुना तो उसने तत्काल अपनी प्यारी बहिन और अपने बहनोई देवकी वासुदेव को करागार में डाल दिया। कंस भविष्यवाणी से इतना ज्यादा डर गया था कि उसने कृष्ण जन्म के पूर्व ही देवकी के सात नवजात शिशुओं को मौत के घाट उतार दिया। वहीं उसने राज्य में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चों को भी मार डाला। उस कालखंड में जन्मे सहस्त्रों शिशु आने वाली क्रांति के लिये बलि हो गये। लेकिन जो होना है वह तो होकर ही रहेगा, जो विधाता ने लिख दिया है वह तो किसी के मिटाए मिट ही नहीं सकता, कंस चाहे कितना भी शक्तिशाली रहा पर वह भी विधि की रचनाओं में बाधा नहीं डाल सका।