परिजन से नित सीखते, भाषा का व्यवहार। बच्चे रचने हैं लगे, शब्दों का संसार।।
Search Results for: प्रमोद दीक्षित मलय
सुखद मनोहर धूप
जो जन तपता धूप में, छोड़ छाँव की आस। चढ़े सफलता सीढ़ियाँ, मन में दृढ़ विश्वास।।
पुस्तक जिनके उर बसे
पुस्तक उर पैदा करे, नीर क्षीर सत्बुद्धि। नाम, काम धन जग मिले, सहज सुखद उपलब्धि।।
पुस्तक जिनकी हैं सखा
हरे अँधेरा राह का, भरे उजाला रेख। सुगम बनाती पथ सदा, देख सको तो देख।।