आगरा – उत्तर प्रदेश : ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में हाल के वक्त काफी प्रगति हुई है, जिसके कारण न सिर्फ इसके मामलों में कमी आई है, बल्कि इसके कारण होने वाली मृत्यु दर भी घटी है. हालांकि, इस सबके बीच चिंता की बात ये है कि जो कैंसर मरीज हैं, उनमें इलाज के नए-नए मॉड्यूल को लेकर जानकारी का अभाव है. भारत में कैंसर केस पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं और चाहे पुरुष हो या महिला, ये प्री-मैच्योर डेथ का एक अहम कारण रहा है. इसके अलावा, कई रिपोट्र्स के मुताबिक, भारत में डायग्नोज होने वाले कैंसर केस में ब्रेस्ट कैंसर टॉप पर है. देश में लगभग 8 में से 1 महिला को ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क रहता है.
इन तमाम रिस्क के बीच पूरी दुनिया का मेडिकल कैंसर के खिलाफ एकजुट है और इसके इलाज के नए-नए मेथड्स लाए जा रहे हैं. आज जो तकनीक मौजूद है, उसकी मदद से हर उम्र, स्टेज, प्रकार और जैनेटिक बैकग्राउंड के ब्रेस्ट कैंसर का इलाज किया जा रहा है जिससे पिछले तीन दशक में ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली मौतों में लगभग 40 फीसदी की गिरावट आई है. दिल्ली स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल साकेत में मैक्स इंस्टिट्यूट ऑफ कैंसर केयर के चेयरमैन डॉ.हरित चतुर्वेदी ने कहा, एक वक्त था जब ब्रेस्ट कैंसर के हर मरीज का इलाज एक ही तरह की सर्जरी के माध्यम से किया जाता था, जिसे रेडिकल मास्टेक्टोमी कहा जाता है. इस प्रक्रिया में लिम्फ नोड्स के साथ पूरी ब्रेस्ट को रिमूव कर दिया जाता था. ऐसा इसलिए था क्योंकि इस बात समझ नहीं थी कि ब्रेस्ट कैंसर सेल्स कैसे रिएक्ट करते हैं. लेकिन नए ट्रीटमेंट मॉड्यूल जैसे टारगेटेड थेरेपी, हॉर्मोन थेरेपी, रेडिएशन तकनीक के साथ इम्यूनोथेरेपी जैसे टोमोथेरेपी, डीप इंस्पिरेशन ब्रीथ होल्ड (डीआईबीएच) ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों के लिए फायदेमंद साबित रही हैं. स्तन संरक्षण के साथ कॉस्मेटिक परिणामों की ओर लक्षित अन्य सर्जरी में भी सुधार हुआ है, जिससे पूरी ब्रेस्ट का रिकंस्ट्रक्शन होता है और ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों के लिए स्तनों या बाहों का कोई विरूपण नहीं हुआ है. तकनीक की इन तरक्कियों ने सभी प्रकार के ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में मदद की है, यहां तक कि उन्नत और अधिक आक्रामक सब-टाइप जैसे एचईआर 2 और ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर में भी मदद की है.
ऑन्कोलॉजी के फील्ड में हुई प्रगति से इलाज के बाद मरीजों की जिंदगी बेहतर हुई है. लिहाजा, अच्छी टीम के साथ पूरी प्लानिंग करके बेहतर रिजल्ट की उम्मीद की जा सकती है. डॉ.हरित चतुर्वेदी ने कहा, 3 डी मैमोग्राम, एमआर मैमोग्राम और वैक्यूम-असिस्टेड बायोप्सी जैसे उपकरणों के आने से, रोग की शुरुआती पहचान संभव हो गई है, ताकि रोगियों को बेहतर इलाज दिया जा सके. आनुवंशिक परीक्षण के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है, जिससे परिवारों में उच्च जोखिम वाले कैंसर म्यूटेशंस का पता लगाने में मदद मिली है. कैंसर के इलाज के बाद मरीज अपनी फैमिली भी प्लान कर सकती है.