हिंसा को ना बनाओ यारों जीवन का हिस्सा।

हिंसा को ना बनाओ यारों जीवन का हिस्सा।

वर्ना बिखर जाओगे जैसे टूट कर शीशा।

हिंसा को न बनाओ यारों जीवन का हिस्सा।।

१- आग में उसकी डाल के पांव

जल गए कितने शहर और गांव।

आंच से उसकी जहां भी लगे ताव

सूख गई धरती रहे न अब छांव।

हिंसा को ना बनाओ यारों जीवन का किस्सा।।

वर्ना बिखर जाओगे जैसे टूट कर शीशा।

हिंसा को न बनाओ यारों जीवन का हिस्सा।।

२- सह नहीं पाता कोई उसकी मार

छूट गए कितने घर-परिवार।

रह नहीं पाता कोई साथी-रिश्तेदार

लोग समझने लगते बेकार।

हिंसा को ना बनाओ यारों जीवन का इंशा।।

वर्ना बिखर जाओगे जैसे टूट कर शीशा।

हिंसा को न बनाओ यारों जीवन का हिस्सा।।

रौनक द्विवेदी (करथ, आरा)