पंचतंत्र की कहानी हर किसी ने अपने बचपन में कभी न कभी तो ज़रूर पढ़ी होगी और उससे एक अच्छी सीख भी हासिल की ही होगी बच्चा हो या बड़ा हर किसी को पंचतंत्र की कहानियां पढ़ने का काफी शौक होता है और पढने के बाद उत्साहित भी महसूस करतें हैं। पंचतंत्र का लेखन संस्कृत के लेखक विष्णु शर्मा पंचतंत्र पंचतंत्र की कहानी संस्कृत की नीति पुस्तक के लेखक माने जाते हैं। जब यह ग्रंथ बनकर तैयार हुआ तब विष्णु शर्मा की उम्र 40 साल थी। विष्णु शर्मा दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे। एक राजा के 3 मूर्ख पुत्र थे, जिनकी जिम्मेदारी विष्णु शर्मा को दे दी गई। विष्णु शर्मा को यह पता था कि यह इतने मूर्ख हैं कि इनको पुराने तरीकों से नहीं पढ़ाया जा सकता तब उन्होंने जंतु कथाओं के द्वारा पढ़ाने का निश्चय किया। पंचतंत्र को पांच समूह में बनाया गया जो 2000 साल पहले बना। महामहोपाध्याय पं. सदाशिव शास्त्री के अनुसार पंचतन्त्र के रचयिता विष्णुशर्मा चाणक्य का ही दूसरा नाम था। इसके आधार पर उनके अनुसार पंचतंत्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ही हुई है।
डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक पंचतंत्र की कहानियां इसी श्रृंखला जुड़ने वाली एक और पुस्तक है जिसके लेखक अशोक कौशिक हैं। पंचतंत्र की कहानियां, जानवरों और पक्षियों को पात्र बनाकर, जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे मित्रता, विश्वासघात, लोभ, ईर्ष्या, और विवेक का चित्रण करती हैं। इन कहानियों के माध्यम से नीतिगत शिक्षा तो दी ही जाती है, साथ ही मनोरंजन का भी भरपूर साधन प्रदान करती हैं।
पंचतंत्र की विशेषताएं:
कहानियों का संग्रहः प्रत्येक भाग में अनेक रोचक और शिक्षाप्रद कहानियां शामिल हैं। पशु-पात्रः जानवरों और पक्षियों के माध्यम से मानवीय व्यवहार का चित्रण। नीतिशास्त्रः जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नीतिगत शिक्षा। मनोरंजनः रोचक कथा शैली, जो पाठक को बांधे रखती है।
पंचतंत्र का महत्वः
सर्वकालिक प्रासंगिकताः सदियों बाद भी, पंचतंत्र की शिक्षाएं उतनी ही प्रासंगिक हैं। विश्व साहित्य में प्रभावः पंचतंत्र का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ है और इसका प्रभाव विश्व साहित्य पर भी देखा जा सकता है। जीवन-शिक्षाः बच्चों और बड़ों दोनों के लिए जीवन-शिक्षा का स्रोत। नैतिक मूल्यों का विकासः नीतिशास्त्र और नैतिक मूल्यों को समझने में सहायक।