लघुकथा: मच्छर

मुंबई शहर की एक बिल्डिंग में मच्छरों का आतंक था। सबने मिलकर पेस्ट कंट्रोल कराया। सारी बिल्डिंग की साफ सफाई अच्छे से हुई किंतु बिल्डिंग के एक फ्लैट में एक व्यापारी रहते थे और उनके घर में मच्छर कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। लगातार रोज फिनायल डालने से रोज साफ सफाई के बावजूद भी कहीं ना कहीं से मच्छर निकल आते और भिन्न-भिन्न की आवाज के साथ सारी रात परेशान करते। 

व्यापारी को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है ? यह मच्छर है कि आफत की पुड़िया!जाने का नाम ही नहीं लेते! दिन और रात बस खून पी रहे हैं मस्तक पर चिंता की लकीरें लिए व्यापारी बहुत ही परेशान हो गया और उसने निश्चय किया कि कुछ उपाय तो करना ही होगा इन मच्छरों को घर से भगाने का। दो-चार दिन छुट्टी करता हूं और देखता हूं कि क्या किया जा सकता है दिन रात इन बेवड़ों पर नजर रखता हूं, लगता है इनके मुंह मेरे खून के साथ मदिरा भी लग गई है।

खूब दवाइयां डालता हूं तभी नशा उतरे इनका संख्या बढ़ती है या घटती है कुछ तो फर्क पड़ेगा मेरे घर पर रहने से बाकी घर वाले तो सुरक्षित रहेंगे।  दिमाग में मच्छर के अलावा कुछ नहीं घूम रहा था मिस्टर खमीरचंद को। परेशान होने के कारण उन्हें नींद ना आती। एक दिन मच्छर मारने का पंप हाथ में लिए हुए वह सोफे पर टेक लगा कर बैठा और उसे पता ही ना चला कि उसे कब नींद आ गई तीन दिनों से वह मच्छरों का लगातार पीछा कर रहा था आंखों में बहुत थकावट थी और डर था कि आंख लगते ही कहीं मच्छर उसे पर आकर बैठ ना जाए और उसे फिर ना काट ले और फिर उसका खून पर आखिरकार थकावट जीत गई और व्यापारी को नींद आ गई वह गहरी नींद में अभी गया ही था कि तभी एक मोटा सा मच्छर उसके सपने में आया और उसकी छाती पर बैठकर बोला ‘क्यों भाई ? क्या हाल है ! कैसी कट रही है जिंदगी !

आजकल तो मैं ही तुम्हारे घर का राजा हूं, तुम्हें हर वक्त मुझसे डर लगा रहता है कि कहीं मैं घर में किसी सदस्य को काट ना लूं ! घबराओ मत कम से कम मैं तुम्हारी त्वचा पर बैठता हूं फिर डंक मारता हूं और तुम्हें पता लग जाता कि मैं मच्छर हूं और तुम्हें काट लूंगा तुम्हारा खून पी लूंगा यह जानकारी तुम्हें अच्छे से है और तुम तुरंत उठा करके एक चांटा जोर से मुझे मारते हो परवाह भी नहीं करते कि मेरे मरने के साथ-साथ पर चांटा तुम्हें भी लग सकता है पर पूरी ताकत के साथ तुम मुझ पर वार करते हो क्योंकि तुम जानते हो कि मुझे खत्म करने से तुम सुरक्षित हो किंतु उस मच्छर का क्या जिसके वार का तुम्हें एहसास तक नहीं होता कि कब उसने तुम्हें डंक मारा, कब वह तुम्हारे ऊपर हावी हुआ, कब उसने तुम्हारा खून पिया! नजर आती है तो सिर्फ मौत भावनाओं की, इंसानियत की।

भावना ‘मिलन’ अरोड़ा एडुकेशनिस्ट, लेखिका मोटिवेशनल स्पीकर
भावना ‘मिलन’ अरोड़ा
एडुकेशनिस्ट, लेखिका
मोटिवेशनल स्पीकर

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