धर्म और सत्य के लिए वीर बालकों ने जान निछावर कर दिया

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-26 दिसंबर वीर बाल शहीदी दिवस पर विशेष-

बता दें कि केंद्र सरकार ने हर साल 26 दिसंबर को माता गुजरी और चार साहिबजादों की शहादत की याद में वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की है। इन चार साहिबजादों की शहादत इतिहास के पन्नों पर अमर है क्योंकि इन्होंने छोटी उम्र में मुगलों को धूल चटाते हुए अपनी ताकत का लोहा मनावाया था और किसी के आगे झुके नहीं थे। दोनों सिख साहिबजादों को हेटे माग्घित्तारे (गुरुमुखी)) के रूप में याद किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि वे 26 दिसंबर 1704 को क्रमशः 5 और 9 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे। चारों साहिबजादों को 19 वर्ष की आयु से पहले मुगल सेना द्वारा मार डाला गया था। उनकी शहादत का सम्मान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

वीर बाल दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार सुपुत्रों- साहिबज़ादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह, व फतेह सिंह को सामूहिक रूप से संबोधित करने हेतु किया जाता है।

सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार से जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते।साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी, दोनों की उम्र उस समय क्रमशः नौ साल और सात साल थी।दोनों को मुगलों ने 26 दिसम्बर 1705 को दीवार में जिंदा चुनवा दिया था।

सिख इतिहास में पौष का महीना बेहद उदासीनता भरा होता है। श्री गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार का बिछड़ना, चार साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहादत, ये सभी दुखद घटनाएं इस महीने में ही घटे थे। जब मुगल सैनिकों ने सम्राट औरंगजेब के आदेश पर आनंदपुर साहिब को घेर लिया था और गुरु गोविंद सिंह के दो पुत्रों को पकड़ लिया था,तब मुगलों के जेल में बंद माता गुजरी ने अपने दोनों पोतों को धर्म और ज्ञान की बातें बताई। आने वाली विपदा के सामने धर्म की लड़ाई कैसे लड़नी है, इसकी भी शिक्षा दी थी।

26 दिसंबर 1704 के दिन गुरु गोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था । और माता गुजरी को सरहिंद के किले के बुर्ज से गिराकर शहीद किया कर दिया था। इस तरह देश और धर्म की रक्षा में गुरु गोविंद सिंह महाराज का सारा परिवार शहीद कर दिया गया। इन शहीदों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बदले मृत्यु को प्राथमिकता दी।

धर्म की रक्षा के लिए श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना सबकुछ न्योच्छावर कर दिया। इस कारण उन्हें सरबंस दानी भी कहा गया।बात वर्ष 1705 की है। मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए जब सरसा नदी पर हमला किया तो गुरु जी का परिवार उनसे बिछड़ गया था। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी अपने रसोईए गंगू के साथ उसके घर मोरिंडा चले गए। रात को जब गंगू ने माता गुजरी के पास मुहरें देखी तो उसे लालच आ गया। उसने माता गुजरी और दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के नवाब वजीर खां के सिपाहियों से पकड़वा दिया।

वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी को पूस महीने की तेज सर्द रातों में तकलीफ देने के लिए ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। यह चारों ओर से खुला और उंचा था। इस ठंडे बुर्ज से ही माता गुजरी जी ने छोटे साहिबजादों को लगातार तीन दिन धर्म की रक्षा के लिए सीस न झुकाने और धर्म न बदलने का पाठ पढ़ाया था। यही शिक्षा देकर माता गुजरी जी साहिबजादों को नवाब वजीर खान की कचहरी में भेजती रहीं। 7 व 9 वर्ष से भी कम आयु के साहिबजादों ने न तो नवाब वजीर खां के आगे शीश झुकाया और न ही धर्म बदला। इससे गुस्साए वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दिवार में चिनवा दिया था।

जब छोटे साहिबजादों की कुर्बानी की सूचना माता गुजरी जी को ठंडे बुर्ज में मिली तो उन्होंने भी शरीर त्याग दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में दो अन्य चमकौर की जंग में शहीद हुए थे। गुरु गोबिद ने अपने दो पुत्रों को स्वयं आशीर्वाद देकर जंग में भेजा था। चमकौर की जंग में चालीस सिखों ने हजारों की मुगल फौज से लड़ते हुए शहादत प्राप्त की थी। 6 दिसंबर, 1705 को हुई इस जंग में बाबा अजीत सिंह (17) व बाबा जुझार सिंह (14) ने धर्म के लिए बलिदान दिया था। इसी स्थान पर आज गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब बना है। इसमें बना ठंडा बुर्ज सिख इतिहास की पाठशाला का वह सुनहरी पन्ना है, जहां साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए शहादत दी थी। मासूम साहिबजादों की इस शहादत ने सभी को हिला कर रख दिया था। कहा जाता है छोटे साहिबजादों की शहादत ही आगे चलकर मुगल हकूमत के पतन का कारण बनी थी। अंत में‌ सुप्रसिद्ध साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी जी की यह पंक्तियां वीर साहिबजादों को समर्पित करते‌ हुए विनम्र श्रद्धांजलि —

मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक !
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक…….!

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
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