भारत और जर्मनी के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग को नई दिशा देने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल के तहत, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह और जर्मन राज्य बवेरिया के मंत्री-राष्ट्रपति डॉ. मार्कस सोडर के बीच उच्चस्तरीय वार्ता हुई। इस कूटनीतिक और वैज्ञानिक संवाद ने दोनों देशों के संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित किया।
इस अवसर पर दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक के बाद प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक भी हुई, जिसमें विज्ञान, तकनीक और नवाचार जैसे अहम विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया गया।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बैठक के दौरान भारत-जर्मनी के दीर्घकालिक वैज्ञानिक सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम टेक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, साइबर-फिजिकल सिस्टम और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत मिशन-मोड में वैज्ञानिक नवाचारों के ज़रिए टिकाऊ समाधान तलाश रहा है और इस दिशा में जर्मनी एक स्वाभाविक सहयोगी है।
डॉ. सिंह ने भारत-जर्मनी के ‘2+2 सहयोग मॉडल’ की विशेष रूप से सराहना की, जो शिक्षाविदों और उद्योग जगत के संयुक्त प्रयासों का बेहतरीन उदाहरण है। उन्होंने इसे एक भविष्य उन्मुख और नवाचार प्रेरित इको-सिस्टम की दिशा में निर्णायक कदम बताया। उनके अनुसार, यह मॉडल दोनों देशों के विश्वविद्यालयों और उद्योगों को सह-विकास और व्यावसायीकरण के ज़रिए वैश्विक समस्याओं के समाधान में भागीदार बनाता है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने 2024 में भारत-जर्मनी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी साझेदारी की 50वीं वर्षगांठ का स्मरण करते हुए बताया कि हाल ही में जर्मनी में आयोजित द्विपक्षीय बैठक में इस साझेदारी को और सशक्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई थी। उन्होंने मैक्समुलर के उल्लेख के साथ भारत और यूरोप के विद्वानों की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को भी रेखांकित किया।
भारत के बायोटेक सेक्टर की उल्लेखनीय प्रगति की चर्चा करते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि देश में 3,000 से अधिक स्टार्टअप्स हैं और भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक बन चुका है। उन्होंने हाल ही में लागू की गई बायोई3 नीति का भी ज़िक्र किया, जो जैव नवाचारों के माध्यम से ऊर्जा, अर्थव्यवस्था और रोजगार को गति देने का कार्य करेगी।
अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी का ज़िक्र करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि भारत अब इन क्षेत्रों को लेकर वैश्विक साझेदारी के लिए पूरी तरह तैयार है। साथ ही उन्होंने बताया कि स्टार्टअप्स और यूनिकॉर्न्स के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है, जो इसे तकनीकी सहयोग के लिए अत्यंत अनुकूल बनाता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भारत-जर्मनी सहयोग की बात करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि वर्तमान में 50,000 से अधिक भारतीय छात्र जर्मनी के विश्वविद्यालयों में अध्ययन कर रहे हैं, जिनमें अधिकांश एसटीईएम विषयों से संबंधित हैं। उन्होंने इस संबंध में उल्लेखनीय वृद्धि पर संतोष व्यक्त किया और जर्मन छात्रों को भारत आकर प्राच्य अध्ययन, भारतीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली का अनुभव लेने का आह्वान किया।
बर्लिन की अपनी यात्रा को याद करते हुए डॉ. सिंह ने वहां भारतीय संस्कृति और खानपान की लोकप्रियता पर प्रसन्नता जताई और कहा कि जर्मन जनता भारतीय व्यंजनों को खुले दिल से अपना रही है।
इस बैठक में जर्मन प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व डॉ. मार्कस सोडर ने किया। उनके साथ भारत में जर्मन राजदूत डॉ. फिलिप एकरमैन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। वहीं भारतीय पक्ष से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. अभय करंदीकर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रमुख डॉ. प्रवीण सोमसुंदरम और जैव प्रौद्योगिकी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अलका शर्मा ने भाग लिया।
यह उच्चस्तरीय संवाद भारत-जर्मनी के बीच वैज्ञानिक, शैक्षणिक और तकनीकी साझेदारी को और मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।