गिरती घरेलू बचत एवं बढ़ती महंगाई से त्रस्त अर्थव्यवस्था

आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के मध्यनजर महंगाई का लगातार बढ़ते रहना चिंता का विषय है। घरेलू बचत, महंगाई, बढ़ता व्यक्तिगत कर्ज, बढ़ते व्यक्तिगत खर्चे आदि को लेकर निम्न एवं मध्यम वर्ग परेशान है। इस परेशानी के समाधान की बजाय सत्ता एवं विपक्ष दल एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा मासिक बुलेटिन में माना है कि खाद्य मुद्रास्फीति को काबू करना कठिन साबित हो रहा है। आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की घरेलू बचत दर वित्त वर्ष 2022-23 में पांच दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गई। 18 सितंबर को जारी इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में देश की शुद्ध घरेलू बचत पिछले साल की तुलना में 19 फीसदी कम रही है। 2021-22 में देश की शुद्ध घरेलू बचत जीडीपी के 7.2 फीसदी पर थी जो इस साल और घटकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 5 दशक के निचले स्तर 5.1 प्रतिशत पर आ गई है।

अनेक मोर्चों पर भारत की तस्वीर आशा का संचार कर रही है, लेकिन आर्थिक मोर्चें पर चिन्ता का सबब लगातार बना हुआ है, हालांकि समूची दुनिया में आर्थिक असंतुलन बना हुआ है, भारत ने फिर भी खुद को काफी संभाले हुए हैं। किसी देश की अर्थव्यवस्था इस पैमाने पर भी आंकी जाती है कि उसकी घरेलू बचत, प्रति व्यक्ति आय और क्रयशक्ति की स्थिति क्या है। भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत में करीब पचपन फीसद की गिरावट आई और यह सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसद पर पहुंच गई। वित्त मंत्रालय ने घरेलू बचत में गिरावट पर सफाई देते हुए कहा है कि लोग अब आवास और वाहन जैसी भौतिक संपत्तियों में अधिक निवेश कर रहे है। इसका असर घरेलू बचत पर पड़ा है। मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि संकट जैसी कोई बात नहीं है। सरकार ने यह भी कहा है कि पिछले दो साल में परिवारों को दिए गए खुदरा ऋण का 55 फीसद आवास, शिक्षा और वाहन पर खर्च किया गया है।

परिवारों के स्तर पर वित्त वर्ष 2020-21 में 22.8 लाख करोड़ की शुद्ध संपत्ति जोड़ी गई थी। 2021-22 में लगभग सत्रह लाख करोड़ और वित्तवर्ष 2022-23 में 13.8 लाख करोड़ रुपये की वित्तीय संपत्तियां बढ़ी हैं। इसका मतलब है कि लोगों ने एक साल पहले और उससे पहले के साल की तुलना में इस साल कम वित्तीय संपत्तियां जोड़ी हैं। सरकार के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वे अब कर्ज लेकर घर और वाहन जैसी भौतिक संपत्तियां खरीद रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो साल में आवास और वाहन ऋण में दोहरे अंक में वृद्धि हुई है।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी के बाद से लोग काफी सचेत हुए हैं। वे जोखिम वाले निवेश से बच रहे हैं। दूसरी बात बचत खातों पर ब्याज पर दर बहुत आकर्षक नहीं हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित बी-20 बैठक में बोलते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा भी कि ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई नियंत्रित करने की कीमत आर्थिक विकास को चुकानी भारी पड़ सकती है। सरकार चाहे जो तर्क दे पर घरेलू बचत गिरना कोई शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। घरेलू बचत सामान्य सरकारी वित्त और गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए कोष जुटाने का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रभावी जरिया होती है। देश की कुल बचत में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाली बचत का लगातार गिरना निम्न और मध्यमवर्ग ही नहीं, पूरी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है।

लगातार महंगाई का बढ़ना भी न केवल आमजन के लिये बल्कि सरकार के लिये चिन्ता का कारण है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुमानों से पता चलता है कि जुलाई (7.4 प्रतिशत) की तुलना में अगस्त में यह घटकर 6.8 फीसदी हो गई है। यहां तक कि खाद्य वस्तुओं की महंगाई भी जुलाई के उच्चतम स्तर पर 11.5 फीसदी से घटकर अगस्त में 9.94 प्रतिशत हो गई। इन संकेतों से भले ही राहत की सांसें मिली हो, बावजूद इसके यह अब भी ज्यादा है। यह गिरावट मुख्यतः सब्जियों की कीमतों में कमी के कारण आई है, जो जुलाई की 37.4 फीसदी की तुलना में अगस्त में 26.1 प्रतिशत थी। हालांकि अनाज और दालों में महंगाई दोहरे अंकों में बनी हुई है, जिनमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के मद्देनजर गिरावट की संभावना फिलहाल नहीं दिख रही। आरबीआई ने स्वीकारा है कि खाद्य मुद्रास्फीति को काबू करना कठिन साबित हो रहा है।

मगर अधिकारियों को महंगाई कम करने का महत्वपूर्ण काम सौंपा गया है। स्पष्ट है कि दबाव और प्रतिबंधों के माध्यम से महंगाई को काबू में करने के प्रयास काफी हद तक नाकाम रहे हैं। घरेलू आपूर्ति में कमी के कारण कई खाद्य वस्तुओं, विशेषकर अनाज व दालों में महंगाई रूकने का नाम नहीं ले रही है। गेहूं का उत्पादन गरमी और बेमौसम बारिश के कारण प्रभावित है। यही कारण है कि मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। चावल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दालों का भी यही हाल है।

महंगाई अक्सर सत्तापक्ष के लिये राजनीतिक चुनौती बनती रही है, चुनावों में हार-जीत को बहुत गहराई से प्रभावित करने में महंगाई आधार बनती रही है। महंगाई कम करने के लिए हमें वैकल्पिक रास्ते तलाशने होंगे, जो आर्थिक विकास या किसानों के हितों को प्रभावित किए बिना उपभोक्ताओं की रक्षा करें। विकृत एवं असंतुलित बाजार व्यवस्था ने भी अनेक आर्थिक विसंगतियों को जन्म दिया है। एक आदर्श व्यवस्था का चिन्तन ही वर्तमान की आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकता है। वर्तमान सरकार ने गरीबी दूर करने में सफलता पाई है, लेकिन उसकी सोच अमीरी बढ़ाने की भी रही है। छोटे उद्योग, सबके पास अपना काम, हर व्यक्ति के लिये रोजगार की सुनिश्चितता, कोई भी इतना बड़ा न हो कि जब चाहे अपने से निर्बल को दबा सके। एक आदमी के शक्तिशाली होने का मतलब है, कमजोरों पर निरन्तर मंडराता खतरा। एक संतुलन बने। सबसे बड़ी बात है मानवीय अस्तित्व और मानवीय स्वतंत्रता की। इस पर आंच न आये और आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो जाये, ऐसी अर्थव्यवस्था की आज परिकल्पना आवश्यक है। तभी बढ़ती महंगाई, आय असंतुलन एवं घटती बचत पर काबू पाया जा सकता है।

आय असमानता, महंगाई, बेरोजगारी एक कल्याणकारी राज्य की सबसे बड़ी विडंबना है। यह जब गंभीर रूप से उच्चतम स्तर पर पहुंच जाती है तो उदार आर्थिक सुधारों के लिए सार्वजनिक समर्थन कम हो जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में नव उदारवादी नीतियों से आर्थिक वृद्धि दर को जरूर पंख लगे हैं, लेकिन इससे अमीरों की जितनी अमीरी बढ़ी है, उस दर से गरीबों की गरीबी दूर नहीं हुई है। परिणामस्वरूप आर्थिक असमानता की खाई साल दर साल चौड़ी होती जा रही है।

इसलिए हमारे नीति निर्माताओं तथा योजनाकारों को इस बात पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि सर्व समावेशी विकास के लक्ष्य को कैसे हासिल करें? ताकि हाशिये पर छूटे हुए वंचितों, पिछड़ों तथा शोषितों को विकास की मुख्यधारा में लाया जा सके। वर्तमान में आर्थिक असमानता से उबरने का सबसे बेहतर उपाय यही होगा कि वंचित वर्ग को अच्छी शिक्षा, अच्छा रोजगार उपलब्ध कराते हुए सुदूरवर्ती गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। इसके लिए सरकार को अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर कहीं ज्यादा खर्च करना होगा। स्वास्थ्य और शिक्षा पर कहीं ज्यादा राशि आवंटित करनी होगी। अभी इन मदों पर हमारा देश बहुत ही कम खर्च करता है। भारत में वह क्षमता है कि वह नागरिकों को एक अधिकारयुक्त जीवन देने के साथ ही समाज में व्याप्त असमानता को दूर कर सकता है।

सच्चाई यह भी है कि कोई भी देश तेज आर्थिक विकास के बिना बड़े पैमाने पर गरीबी के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब नहीं रहा है। अतः आर्थिक सुधारों की रूपरेखा कुछ ऐसे तय करनी होगी, जिससे कि महंगाई, घटती बचत, आय असमानता को कम किया जा सके तथा देश में ऐसा नया आर्थिक माहौल विकसित किया जा सके, जो रोजगार, आम आदमी और गरीबों की खुशहाली पर केंद्रित हो। देश की अर्थव्यवस्था का ढांचा मजबूत करने और विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में स्थान बनाने के लिए देश में महंगाई, बेरोजगारी, घरेलू बचत, आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में प्राथमिकता के आधार पर काम किया जाना चाहिए। एक ऐसा परिवेश तैयार करने की आवश्यकता है, जिसमें बेहतर जीवन-निर्वाह, स्वास्थ्य और शिक्षा, यथोचित रोजगार, न्याय और उन्नत व उत्कृष्ट तकनीक तक देश के सभी लोगों की पहुंच बनाई जा सके।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »