रमजान माह कुरआन की साल गिरह होती है। इस माह मुस्लिम समाज “गंज” रखकर “ईद” का त्योहार मनाता है। रमजान में तीस रोज होते हैं और कुरआन में तीस पाद रोज को अरबी में “सौम ” कहते हैं जिसका अर्थ है “रुकना”। रोजे में निश्चित समयावधि लगभग बारह से चौदह घंटे के लिये अपने आपको खाने पीने तथा शारीरिक संबंधों से रोकना पड़ता है। इन प्रतिबंधों से ही गंज का मकसद पूरा नहीं होता, बल्कि दर नाजायज और बुरे काम से अपने आपको बचाये रखना ही हकीकत में रोजा है। सिर्फ रोजा तोड़ने वाली चीजें चानी खाने पीने और ख्वाहिशात नफ्स (इच्छाओं) को पूरा करने से बचे, मगर जिस्म के दूसरे हिस्सों से गुनाह होता रहे तो वह रोजा नहीं। वह तो यही हुआ न कि सामने दुआ करो और पीठ पीछे बुराई करना। अल्लाह के खास बंदों का रोजा यह है कि जिस्म के हिस्सों के साथ राजदार का दिलो दिमाग भी गलत किस्म की सोच और वसवसी से बचा रहे। “गुनाहों से अगर तौबा करे इस माह में कोई तो जहनो की तन्हीर हो रहमन मे के गुनाहगारों से यह एलान किया जाता है कि तुम अपनी गल्तियों और गुनाहाँ से माफी मांग लो।
इस माह मुबारक में तुम्हारी दुआएँ रद्द न की जायेगी। गुनाहों के एहसास से दपके हुये तुम्हारी आँखों के ओस खुदा के पास माफी दिलाने वाल साबित होंगे। तीन आदमियों की दुआ रद नहीं होती एक गंजेदार की इफ्तार के समय दूसरे इंसाफ करने वाले बादशाह की, तीसरे मजलूम की। रोज से पैदा होने वाला सब इंसान को इंसान की तरह जिंदा रहने लायक बना देता है जो अपनी अच्छाइयों और खूबियों के साथ मलामती के गहवारे (दरवाजे तक पहुँचने की कोशिश करता है, अपन रब की जन्नत (स्वर्ग) में दाखिल होता है। इंसान को बुराईयों से बचाने एन्द्रीय इच्छाओं पर नियंत्रण रखने ईमान वालों पर राजे फर्ज किये गये। कुरान शरीफ के द्वितीय भाग की 183 और 184 वी आयात में लिखा भी है ” ईमान वालों। तुम पर रोजे फर्ज किये गये जैस कि अगली पर कर्ज किये गये थे, ताकि तुम परहेजगार बन जाओ।” इन्द्रीय इच्छाओं के नियंत्रण और दिल की हिफाजत के साथ आपसी संबंधों में चरित्र की जिस बुलंदी की बात इस्लाम चाहता है फर्ज उसके लिये मजबूत तरीन बुनियाद का काम देते हैं। रोजा इन्हीं बुनियादों में से एक है। इससे इंसान इच्छाओं की बेड़ियों से आजाद हो जाता है। रोजा आत्मा की बीमारियों का इलाज है और आत्मा को पाक व साफ करता है। रोजे से मेंदे की खराब रतूबतें जल जाती हैं। हर पीज की जकात होती है। उसी तरह बदन की जकान गंजा है।
रमजान के महिने का पहला • दस दिन रहमत दूसरा दस दिन बरिशस और तीसरा दस दिन नके में आजादी का माना जाता है। कोई दूसरा आदमी बदले में किसी के लिये न रोजा रख सकता है और न नमाज पढ़ सकता है। इफ्तार के लिये खजूर को उत्तम माना गया है। अगर खजूर न मिले तो पानी से इफ्तार किया जाना चाहिये, क्योंकि पानी पाक करने वाला है। जो जान बूझकर रमजान का एक गंजा छोड़ देता है तो वह सारी उम्र के रोजों से भी इसका बदला नहीं चुका सकता। रमजान महिने में एक रात ऐसी भी बताई गई है जिसे हजार महीनों की रातों से बेहतर बताया गया है। यह रात रमजान की 21 वीं, 23 वीं, 25 वीं, 27 वी और 29 वीं रात में तलाश की जा सकती है।
रमजान के महिने का हर लम्हा इबादत के लिये होता है। रोजे के बाद कलामे पाक की तिलावत, पाँचों वक्त की नमाज और तराबीह गोया की इंसान का दिल आईने के मानिंद साफ और जल की माफिक स्वच्छ रहता है। इसमें गुनाहों और बुराईयों के बारे में विचार ही पैदा नहीं होता है। रमजान को हमदर्दी और सब्र का महिना कहते हैं। रमजान के रोज और इबादत के दौर के बाद कुंदन की तरह निखरे हुये लोगों के सामने ईद का चाँद खुशियों और नेमतों का पैगाम लेकर आता है। चाँद के नजर आते ही आदमो अल्लाताला के आगे हाथ उठाकर रमजान के माह में अपना फर्ज अदा करने को कुवत अता करने तथा इंद्र की खुशियाँ कसाब करने के लिये अल्लाह का शुक्र करता है।
ईद का दिन बहुत मुबारक और खुदा की मेहमानी का दिन होता है। इस दिन सभी लोग खुदा के मेहमान होते हैं। ईद के दिन रोजा हराम होता है। जब ईद के दिन खुदा ने लोगों को मेहमान बनाकर खाने पीने का हुक्म दिया है तो उस दिन का रोजा रखना गोया, खुदा की मेहमानी को रद्द करना है।
रमजान के कठोर सब्र और इबादत के बाद खुशी के उपहार स्वरुप ईद का मुबारक दिन रोजादारों को मिलता है। इस दिन तमाम लोग खुली जगह में इकट्ठा होकर ईद की नमाज अदा करते हैं और अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि उसने हमें रोजे के रूप में नेमत अता की। ईद के दिन अमीर लोगों के लिये औरों के दुखों को समेटना अहम फर्ज है। वह अपने घर के खुशबुदार और लज्जत वाले खाने को उस वक्त तक नहीं छूता जब तक कि उसे अपने गरीब पड़ोसी के घर में उठता हुआ धुंआ नजर न आ जाये इसीलिये अल्लाताला ने उस पर सदकर फित्र वाज़िब की है। ईद की नमाज के पहले सदकर फित्र अदा कर देना बेहतर है। फित्र लेने का उन्हें ही अधिकार है जिन्हें जकात लेने का है। रमजान के बाद फित्रा अपने पास पड़ोस के गरीबों, बेवाओं और जरुरतमंदों को देना चाहिये।
ईद की नमाज़ के बाद से आने वाले तीन दिन तक ईद की खुशियाँ सभी जगह मनाई जाती हैं। हर घर में ईद की सेवईयों के कटोरे खाते हुये लोग दिख जाते हैं। हमारे देश में ईद साम्प्रदायिक सदभाव का अनूठा दिन होता है। इस मुबारक दिन में क्या हिंदू, सिक्ख, ईसाई सभी मजहबों के लोग मुसलमान भाईयों को मुबारकबाद देने उनके घरों पर जाते हैं और सभी से गले मिलते हैं। ईद धार्मिक ही नहीं एक सामाजिक पर्व बन चुका है।