हर साल 14 जनवरी को सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश और दक्षिणायन से उत्तरायण में परिवर्तन के साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विभिन्न नामों से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में त्योहारों, उत्सवों और मेलों का अत्यधिक महत्व है। भारत ऐसा देश है जहां हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। यहां यह कहना उचित होगा कि हमारे जीवन में दिन कम और त्योहार अधिक हैं।
त्योहार हमारे जीवन में नई ऊर्जा भरते हैं, परस्पर प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। मकर संक्रांति ऐसा ही पर्व है, जो “तमसो मा ज्योतिर्गमय” यानी अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का संदेश देता है। यह पर्व विविधताओं में एकता की भावना को मजबूत करता है। गुजरात में इसे ‘उत्तरायण’, महाराष्ट्र में ‘तीळ गुळ’ और असम में ‘माघ बिहू’ के नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में लोग तिल-गुड़ के लड्डू खिलाकर कहते हैं, “तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला” जिसका अर्थ है “तिल-गुड़ खाइए और मीठा बोलिए।”
खिचड़ी और मेले का महत्व
प्रयागराज के प्रसिद्ध माघ मेले और गंगा सागर मेले में यह पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा है। जनश्रुतियों के अनुसार, सर्दियों में खिचड़ी शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं
मकर संक्रांति के दिन से जुड़ी कई धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं हैं। यह दिन सूर्य और शनि की मुलाकात का प्रतीक है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे पिता सूर्य का पुत्र शनि से मिलने का समय माना जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन गंगा नदी भागीरथ के नेतृत्व में कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में विलीन हुई थीं। इसे गंगा सागर मेले के रूप में मनाया जाता है।
महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और इस शुभ समय पर प्राण त्यागे। मान्यता है कि उत्तरायण के समय देह त्यागने वाली आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है।
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने असुरों के सिर मंदार पर्वत के नीचे दबा दिए, जिससे यह दिन बुराई और नकारात्मकता के अंत का प्रतीक बन गया।
माता यशोदा द्वारा कृष्ण जन्म के लिए रखा गया व्रत भी मकर संक्रांति के दिन से संबंधित है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति हमारी परंपराओं, मान्यताओं और सामाजिकता का ऐसा उत्सव है जो अंधकार से प्रकाश और नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह पर्व न केवल हमारे मन को उल्लास से भरता है, बल्कि समाज को जोड़ने का भी कार्य करता है।