
-13 जनवरी छेरछेरा पर्व पर विशेष –
छत्तीसगढ़ राज्य में माघ पूर्व की पूर्णिमा के दिन हर्ष और आनंद के साथ मनाए जाने वाला छेरछेरा पर्व यहां की सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व को दर्शाने वाला एक लोकप्रिय त्यौहार है। मुख्य रूप से यह पर्व कहा जाये तो ग्रामीण व गांव देहातों में अपने पूरे चरमोत्कर्ष पर देखा जाता है। इसका कारण है इस त्यौहार का धान के फसल व खेत खलिहानों से घनिष्ट संबंध होना, शहरों में भी इसे मनाया जाता है, पर जो उल्लास और माहौल गांवों में देखने को मिलता है वह अब शहरों में नहीं रह गया हैं। इस दिन भोर से ही बच्चों की टोली “छेरछेरा कोठी के धान ला हेरते हेरा।” इस पंक्ति को दोहराते हुए बाल सुलभ आवाज के साथ पूरे गांव का भ्रमण करते हैं। “छेरछेरा” पर्व वास्तव में ईश्वर और अन्न की देवी की कृपा के प्रतिफल में किसानों द्वारा कृतज्ञता प्रकट करने वाला त्यौहार हैं। अन्नपूर्णा देवी की उदारता से किसान के खेत में धान की सुनहरी फसल जब उसके कोठार में पहुंचती हैं तो एक किसान ही उस क्षणों के अनुभूतियों को समझ सकता हैं।

जब उसके अथक परिश्रम के माध्यम से ईश्वर बदले में उसकी कोठी धान्य से भर देते हैं। और ऐसे समय में जबकि किसान को उसके खेतों से प्रतिसाद प्राप्त हो जाता है, तो वह उसे कुछ लोककल्याण की भावना के तहत अन्न दान करता है। हालांकि अब तक मेहनत के बाद एक कृषक अपने फसल के दाने दाने पर इतना ज्यादा आसक्ति रखता हैं, जैसे एक माँ अपने शिशु पर। किसान मां की तरह ही अपने शिशु रुपी फसल को जैसे दुलारने पुचकारने पर मां प्रफुल्लित हो उठती है। ठीक उसी तरह किसान भी अन्न को दूसरो को बांटकर आनंद का अनुभव करता है। और अपने संचित किये गये फसल के कुछ अंश को बांटने के लिये आने वालों ( छेरछेरा में धान्य मांगने वालों ) की उत्सुकता और खुशी से प्रतीक्षा करता है। इस दिन प्रातः से ही बच्चों बूढ़ों की टोलियां छेरछेरा मांगने निकल पड़ती हैं। हर घर के दरवाजे इनके लिये खुले रहते हैं ,और मांगने वाला साधिकार वाणी में कहते हैं कि “छेरछेरा कोठी के धान हेरते हेरा” इन बाल भावनाओं को अन्नदान करके किसान न केवल आनंदित होते हैं बल्कि ऐसा कर वे ईश्वर प्रति अपना आस्था भी प्रकट करते हैं।

