मां सरस्वती के आशिर्वाद से चराचर जगत में गूंज रही ध्वनियाँ

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विद्या की देवी मां सरस्वती की वंदना हमारी प्राचीन परंपरा रही है। बंगाल में इस दिन सरस्वती पूजा विशेष धूमधाम से संपन्न की जाती है। मां सरस्वती की जयंती पर्व होने के साथ-साथ वसंतोत्सव का पर्व भी आज ही के दिवस में मनाया जाता है। वसंत ऋतु अर्थात ऋतुओं का राजा आज ही के दिन से प्रारंभ हो जाता है। सर्वत्र चहुंओर भीनी भीनी सुगंधित हवाएं विस्तारित होने लगती हैं। पेड़ों में नए नए पत्ते व कोंपले दिखने लगती हैं। पंछियों का खुशनुमा चाहचहाट और रंगीन फूलों की छटा बिखर जाती है। विद्या और कला की अधिष्ठत्री देवी सरस्वती से संबंधित इस पर्व पर शिशुओं को अक्षर ज्ञान कराने की भी परंपरा है।

स्कूल कॉलेज और शिक्षा मंदिरों में आज के दिन विशेष रूप से शिक्षार्थियों शिक्षकों के द्वारा विशेष कार्यक्रम एवं सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। सरस्वती के वाग्देवी, श्वेत पद्मासना, वीणापाणि शारदा, हंस वाहिनी, आदि तमाम नाम हैं। यह भगवती‌ चार भुजाओं वाली हैं। ये श्वेत कमल पर विराजती हैं। प्रमुख वाहन हंस है। कभी-कभी मोर पर भी आरुढ़ रहती हैं। भगवती सरस्वती का श्रद्धा से पूजन करने वाले विद्या और सद्बुद्धि पाते हैं यशस्वी होते हैं और मोह माया के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। स्कूल और महाविद्यालयों में इस शुभ दिवस को मां सरस्वती की पूजा का विशेष विधान रहता है छात्र गण नारियल अगरबत्ती धूप चंदनपुर पत्र आदि लेकर पीले वस्त्रों में विद्यालय में जा कर पूजा की क्रिया संपन्न करते हैं।

विद्या ददाति विनियम;
विनयम ददाति पायताम;
पात्रत्वाद धनमाप्नोति
धनाद धर्म: ततोसुखम:

इस दिन मां सरस्वती जी की पूजा का कोई विशेष विधान नहीं है! इस दिन व्रत आदि भी नहीं रखा जाता है !सरस्वती पूजन कुछ इस प्रकार की जाती है! पूजन सामग्री है:-सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद कमल धूप दीपक गुलाल सफेद चंदन, सफेद फूल, और फूलों की माला, पान की पत्ती, पूजा की सुपारी,नारियल, पंचामृत ,कपूर, मौली, सिंदूर, कुमकुम किताब, कमल और सरस्वती पूजन यंत्र की आवश्यकता पड़ती है! पूजा के पूर्व प्रथम रूप से स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहने पवित्र भाव से पूर्व दिशा की ओर आसन लगाकर बैठे ,फिर यंत्र और चित्र रखें! भक्ति पूर्वक कलश की स्थापना करें! तत्पश्चात विनायक गणेश, विष्णु ,सूर्य आदि देवों की विधिवत पूजा करें ,और अंत में अभीष्ट फल दायक भगवती सरस्वती का पूजन अर्चन करें !फिर स्रोत ,आरती प्रदक्षिणा आदि कार्य संपन्न करें ,भगवती सरस्वती की प्रार्थना का एक अत्यंत सुगम मंत्र है!

सरस्वती महाभागे विद्ये कमल लोचने!!
सरस्वती विद्या रुपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते!!

एक अन्य शास्त्रीय विधि के अनुसार इस तिथि को लक्ष्मी और विष्णु का पूजन करना चाहिए। प्रातः काल उबटन तेल आदि लगाकर स्नान करना चाहिए ।फिर पीला वस्त्र धारण कर लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जाकर अबीर, गुलाल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए ,वहीं कहीं कहीं इस तिथि को पित्र तर्पण और ब्राह्मण भोज का भी विधान है । इस दिन सभी खासकर छात्र वर्ग प्रातः उठकर स्नान कर मां सरस्वती की पूजा करते हैं। विद्यार्थी अपने कलम, कॉपी ,पुस्तकों की भी पूजा करते हैं, बंगाल और उड़ीसा में देवी सरस्वती के आदमकद मूर्ति बसंत पंचमी के दिन स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना की जाती है। पूजा स्थल के पास संगीत, नृत्य, नाटक आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। इसके पश्चात मूर्ति को तालाब अथवा नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। वैसे आजकल छत्तीसगढ़ सहित हमारे बिलासपुर शहर में भी अनेक स्थानों पर मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित की जाती है।और सभी स्कूल व महाविद्यालयों में धूमधाम से बसंत पंचमी और मां सरस्वती की जयंती पर्व को मनाया जाता है।

इस दिन प्रायः लोग मिष्ठान आदि बनाकर भगवती सरस्वती को भोग लगाते हैं। फिर प्रसाद के रूप में सभी को बांटते हैं। आम के पेड़ों पर लगने वाले मौर यानी फूल की भी इस अवसर पर विशेष रूप से पूजा की जाती है। विद्यार्थी इस दिवस को पढ़ते लिखते नहीं हैं। वह विद्या प्राप्ति के लिए सरस्वती की आराधना करते हैं । एक संयोग यह भी है कि महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला “बसंत पंचमी के दिन ही पैदा हुए थे! फिर तो सरस्वती पुत्र को उनकी आराधना तो करनी ही है!

वर दे वीणावादिनी वर दे ।
प्रिय ज्वतंम रव अमृत मंत्र
नव भारत में भर दें
वर दे वीणावादिनी वर दें।।

भगवती मां सरस्वती के जन्म का वृतांत सृष्टि के जन्म के काल की है । जब ब्रह्मा सृष्टि की रचना कर रहे थे तब सृष्टि की रचना करने के उपरांत ब्रह्मा जी ने अखिल विश्व की ओर दृष्टिपात किया। सभी दिशाओं में अजीब सी उदासी छाई थी। सारा वातावरण एकाकी और मूक बना था ।वाणी हीन एकरसता की मूक नीरसता विद्यमान थी। विकट भयावह स्थिति थी। ऐसे में यह सृष्टि कैसे चलेगी…? सृष्टि कब तक रहेगी ? ऐसी जड़ता और मूकता पर ब्रह्मा जी ने सोचा और फिर उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का ।अरे …यह क्या ? जल छिड़कते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई। अनूप सौंदर्य शालिनी मंद मंद मुस्कान बिखेरते जिनके अंग अंग से उज्जवल प्रकाश की किरण फूट रही थी । जो चार भुजाओं वाली थीं। जो दो हाथों से वीणा बजा रही थीं। और अन्य दो हाथों से पुस्तक व माला धारण किए थीं। अब ब्रह्मा जी ने उस अनादि अनंत शक्ति से निवेदन किया कि वह अपनी वीणा बजा कर विश्व की मूकता और मलीनता को दूर भगाने में सहभागी हों। तदनंतर भगवती ने अपनी वीणा के मधुर नाद से जीवों को वाणी प्रदान की। इसीलिए इस शक्ति को सरस्वती कहा गया।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
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