चूंकि कीमोथेरेपी की गर्मी कैंसरग्रस्त ट्यूमर के ऊतकों में सीमित दूरी तक ही पहुंच पाती है, इसलिए यह अनिवार्य हो जाता है कि एचआईपीईसी से पहले सभी कैंसरग्रस्त ऊतकों को हटा दिया जाए। सीआरएस एक जटिल सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें कुछ अंगों को हटाकर पेट के अंदर मौजूद ट्यूमर को खत्म किया जाता है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख सर्जरियां शामिल होती हैं:
- टोटल एबडॉमिनल हिस्टेरेक्टोमी (टीएएच) – गर्भाशय और सर्विक्स को हटाने की प्रक्रिया, विशेष रूप से कैंसर के गंभीर मामलों में।
- बाइलेटरल सैपलिंगो ऊफेरेक्टोमी (बीएसओ) – अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब दोनों को हटाने की प्रक्रिया।
- लिम्फैडेनेक्टोमी – कैंसर के प्रसार को रोकने के लिए लिम्फ नोड्स को हटाना।
- ओमेनटेक्टोमी – ओमेंटम (वसायुक्त परत) को हटाना, जो आंतों की सुरक्षा करता है।
- पेरिटोनेक्टोमी – पेट की अंदरूनी परत को हटाना, विशेष रूप से पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा के मामलों में।
- एक्सटेंडेड राइट हेमिकोलेक्टोमी – बड़ी आंत और सीकम के प्रभावित हिस्सों को हटाना।
सीआरएस की प्रक्रिया में कितना समय लगता है?

यह जटिल सर्जरी आमतौर पर 10-12 घंटे तक चलती है, जो इस पर निर्भर करता है कि कैंसर कितना फैला हुआ है। सीआरएस का मुख्य उद्देश्य पेट के सभी ट्यूमर ग्रस्त ऊतकों को हटाना और पीछे बची हुई सूक्ष्म कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को रोकना है।
हाइपरथर्मिक इंट्रा-पेरिटोनियल कीमोथेरेपी (एचआईपीईसी), एक ऐसी नवीनतम प्रक्रिया है, जिसमें कीमोथेरेपी दवा को 42 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म कर पेट की गुहा में डाला जाता है। 60-90 मिनट तक चलने वाली यह प्रक्रिया कैंसर कोशिकाओं को प्रभावी रूप से नष्ट कर देती है।
एचआईपीईसी की विशेषताएं
- यह कैंसर कोशिकाओं पर सीधा प्रभाव डालता है, जिससे स्वस्थ ऊतकों को कम नुकसान होता है।
- शरीर में सामान्य कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स (जैसे बाल झड़ना, उल्टी, कमजोरी) कम होते हैं।
- यह प्रक्रिया कुछ चुनिंदा कैंसर सेंटरों में ही उपलब्ध है, जिसमें बीएलके कैंसर सेंटर अग्रणी है।
ऑपरेशन के बाद मरीज की सेहत में लगातार सुधार हुआ और सिर्फ दो हफ्तों में उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। इसके बाद वे कीमोथेरेपी के बचे हुए चक्र पूरे कर सकती हैं। इस नवीनतम तकनीक ने उनकी जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया और उनके जीवित रहने की संभावना को बढ़ा दिया।
किन बीमारियों के लिए उपयोगी है यह तकनीक?
सीआरएस और एचआईपीईसी तकनीक का उपयोग विभिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
- सुडोमायक्सोमा पेरिटोनीई
- मेसोथेलियोमा
- आंत और मलाशय का कैंसर
- अपेंडिक्स का कैंसर
- गैस्ट्रिक कैंसर
- अंडाशय का कैंसर
- प्राइमरी पेरिटोनियल कैंसर
अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि जब सीआरएस और एचआईपीईसी को संयुक्त रूप से अपनाया जाता है, तो कैंसर रोगियों के जीवित रहने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
अगर कैंसर को हराना है, तो नई तकनीकों को अपनाना होगा!
(यह लेख सिर्फ जानकारी के लिए है डॉक्टर से सलाह अवश्य ले।)