-21 फरवरी जानकी जयंती-
राजा जनक की पुत्री जानकी जयंती फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन प्रातः स्नान और संकल्प कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।पूजन की तैयारीः पूजा स्थल पर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें।इस प्रकार मंत्रोच्चारण करें।

ॐ श्रीसीता नमः ऊँ श्री रामचन्द्र
ॐ जानकीवल्लभाय नमः
ऊँ श्री सीता-राम, ऊं श्री सीता राम।।
इस पावन दिन माता जानकी की पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह पर सशक्तिकरण का प्रतीक है, जो माता सीता के आदर्शचरित्र और उनके द्वारा स्थापित उच्च मानवीय मूल्यों को दर्शाता है। जानकी जयंती के दिन व्रत और मंत्र जाप करने से भगवान श्रीराम और माता सीता की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्री जानकी जयंती पर माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को सफल और समृद्ध बनाएं। प्रायः सभी ने बचपन से चंद्रमा को मामा कह कर पुकारा है। वास्तव में श्री लक्ष्मी जी और चंद्रमा दोनों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। हम लक्ष्मी जी को मां कहते हैं इसीलिए उनके भाई चंद्रमा मामा हुए। इसी तरह हम अगर सीता को माता कहते हैं तो मंगल भी हमारे मामा हुए। क्योंकि मंगल ग्रह पृथ्वी पुत्र माने गए हैं और पृथ्वी की पुत्री सीता जी हैं इस तरह दोनों परस्पर भाई-बहन होते हैं।
भगवान श्रीराम की प्राणवल्लभा सीता जी के भाई हैं- मंगल ग्रह, चंद्रमा और राजा जनक के पुत्र लक्ष्मीनिधि। भगवान् श्रीराम की अर्धांगिनी श्री सीता जी संपूर्ण जगत् की जननी हैं, किंतु कुछ ऐसे भी सौभाग्यशाली प्राणी हैं, जिन्हें अखिल ब्रह्मांड का सृजन, पालन और संहार करने वाली श्री सीता जी के भाई होने का, उन्हें बहन कहकर पुकारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यद्यपि वाल्मीकी रामायण, श्रीरामचरितमानस आदि प्रसिद्ध ग्रंथों में सीता जी के किसी भी भाई का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता, किंतु कई ग्रंथों में सीता जी के भाई का परिचय प्राप्त होता है।
माता सीता का जन्म फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मिथिला नरेश राजा जनक और रानी सुनयना जी को सीता की प्राप्ति हुई थी। रामायण ग्रंथ के अनुसार एक बार मिथिला में भयानक अकाल पड़ा, उसे दूर करने के लिए राजा जनक को ऋषियों के कहने पर खेत में हल चलाते समय हल के नीचे एक घड़ा मिला, जिसमें एक कन्या मिली। उस समय राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए राजा ने कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर जानकी, सीता नाम देकर पालन पोषण किया। बाद में देवी सीता का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्रीराम के साथ संपन्न हुआ। सीता माता लक्ष्मी का अवतार थीं। वे त्याग, तपस्या और धर्म की प्रतीक हैं। उनका जीवन कर्म और ज्ञान के बीच के समन्वय का उदाहरण बनकर एक अनुपम मर्यादा स्थापित करता है।
जानकी जयंती सबसे महत्त्वपूर्ण दिनों में से एक है और इस दिन को माता सीता की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जो देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। माता सीता उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जिन्होंने अपना जीवन बहुत ही सादगी से जिया है। वह पवित्रता और असीम भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। वह एक महिला के संघर्ष का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सीता जयंती का व्रत करने से वैवाहिक जीवन से जुड़े सभी कष्टों का नाश होकर उनसे मुक्ति मिलती है। जीवनसाथी दीर्घायु होता है। साथ ही इस व्रत को करने से समस्त तीर्थों के दर्शन करने जितना फल भी प्राप्त होता है।
जानकी जयंती के दिन सीता चालीसा का पाठ विशेष रूप से करें। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस चालीसा का पाठ विधिवत रूप से करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और मनचाहे वर की भी प्राप्ति होती है। इसके अलावा अगर आपके वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी आ रही है तो इस दिन सीता चालीसा का पाठ करने से लाभ हो सकता है।
राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥
जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥
सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥
