नदियों को विवाद नहीं, विकास का माध्यम बनाये

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-नदियों के लिये अन्तर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस- 14 मार्च, 2025-

नदियां मानव अस्तित्व का मूलभूत आधार है और देश एवं दुनिया की धमनियां हैं, इन धमनियों में यदि प्रदूषित जल पहुंचेगा तो शरीर बीमार होगा, लिहाजा हमें नदी रूपी इन धमनियों में शुद्ध जल के बहाव को सुनिश्चित करना होगा। नदियों के समक्ष आने वाले खतरों, जैसे प्रदूषण, आवास की क्षति और जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये हर साल 14 मार्च को, ‘नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस’ मनाया जाता है, जो नदियों और उनके संरक्षण के लिए एक वैश्विक मंच है, ताकि नदियों और समुदायों की एकजुटता बढ़ाई जा सके और नदियों के महत्व के बारे में जागरूकता लाई जा सके। इस दिवस की 2025 की थीम ‘हमारी नदियाँ, हमारा भविष्य’ है।

इस दिवस की शुरुआत 14 मार्च 1997 को कुर्टिबा, ब्राजील में बांधों से प्रभावित लोगों की पहली अंतर्राष्ट्रीय बैठक में हुई थी। नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किये जाने की जरूरत है। बढ़ते नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिये उनमें को अपशिष्ट या सीवेज, कारखानों से निकलने वाले तेल, कैमिकल, धुंआ, गैस, एसिड, कीचड़, कचरा, रंग को डालने से रोकना होना, हमने जीवनदायिनी नदियों को अपने लोभ, स्वार्थ, लापरवाही के कारण जहरीला बना दिया है। दुनियाभर में नदी जल एवं नदियों के लिए कानून बने हुए है, आवश्यक हो गया है कि उस पर पुनर्विचार कर देश एवं दुनिया के व्यापक हित में विवेक से निर्णय लिया जाना चाहिए। हमारे राजनीतिज्ञ, जिन्हें सिर्फ वोट की प्यास है और वे अपनी इस स्वार्थ की प्यास को इस पानी से बुझाना चाहते हैं। नदियों को विवाद बना दिया है, आवश्यकता है तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर व्यापक मानवीय हित के परिप्रेक्ष्य मंे देखा जाये। जीवन में श्रेष्ठ वस्तुएं प्रभु ने मुफ्त दे रखी हैं- पानी, हवा और प्यार। और आज वे ही विवादग्रस्त, दूषित और झूठी हो गईं।

 नदियों के लिए 28वें अंतर्राष्ट्रीय कार्य दिवस पर ताजा पानी उपलब्ध कराने, जैव विविधता को बढ़ावा देने से लेकर जलवायु को नियंत्रित करने और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने तक स्वस्थ, निर्मल एवं पवित्र मुक्त बहने वाली नदियाँ इंसानी जीवन के साथ प्रकृति, कृषि के लिये महत्वपूर्ण हैं। यह दिन व्यक्तियों और संगठनों को नदी संरक्षण की दिशा में कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान में भारत सहित दुनिया की तमाम नदियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। नदियों के सामने जहां प्रदूषण व अतिक्रमण जैसी भयावह चुनौतियां खड़ी हैं, वहीं उनमें निरंतर घट रही पानी की मात्रा भी गंभीर चिंता में डालने वाला है। कस्बों व शहरों के घरेलू, औद्योगिक कचरे एवं गन्दगी के बहिस्राव के कारण नदियों ने गंदे नाले का रूप लेना प्रारंभ कर दिया है। सैकड़ों बरसाती नदियां बहुत पहले ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।

आज जब नदियां प्रदूषित हो रही हैं तो किनारे बसा समाज भी उस प्रदूषण के असर से बच नहीं पा रहा है। हमारी कृषि व्यवस्था का कुछ हिस्सा भी उससे प्रभावित हो रहा है। आज गंदे पानी को नदी जल से अलग रखने के विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस गंदे पानी को उपचारित करके उसे कृषि कार्यों व उद्योगों में उपयोग में लाया जा सकता है। हमारी जिन नदियों ने नालों का रूप धारण कर लिया है, उन्हें पुनः नदी बनाने की जरूरत है, नदियों के प्रति मित्रवत व्यवहार रखना तथा उनकी चिंता करना जरूरी है।

समूची दुनिया में पीने का शुद्ध पानी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। पानी अत्यधिक जहरीला हो चुका है। इस कारण पीने के पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर नदी प्रबंधन, नदी प्रदूषण और नदी संरक्षण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करके विश्व स्तर पर लोगों को नदियों को बचाने के बारे में बात करने के लिए अग्रसर करना एवं उनमें जागरूकता पैदा करना है। नदियाँ भी अत्यधिक ख़तरे में हैं, विश्व की 10 प्रतिशत से भी कम नदियां सुरक्षित हैं। इस दिवस की उपयोगिता एवं सार्थकता तभी है जब हम नदियों की रक्षा में अग्रणी समुदायों और नागरिक समाज के आंदोलनों को मजबूत करें।

मजबूत डेटा और साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए खोजी अनुसंधान को बल दे। विनाशकारी परियोजनाओं का पर्दाफाश करने और उनका विरोध करने के अभियानों को स्वतंत्र और निडर बनाये। इस दिवस के माध्यम से एक ऐसी दृष्टि विकसित करना जो नदियों और उन पर निर्भर समुदायों की रक्षा करे। अगर इस ग्रह पर कोई जादू है तो वह पानी में है। यह हमें अपनी अर्थव्यवस्था के एक हिस्से के रूप में व्यापार और वाणिज्य के लिए सस्ता और कुशल अंतर्देशीय परिवहन भी प्रदान करता है। यह पृथ्वी पर सबसे विविध और लुप्तप्राय वन्यजीवों में से कुछ का घर भी है।

भारत नदियों का एक अनोखा देश है जहां नदियों को पूजनीय माना जाता है लेकिन दुर्भाग्य से प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु (सिंधु), और कावेरी जैसी नदियों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में बनाया गया जल शक्ति मंत्रालय, नदी घाटियों में आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार और संरक्षण और नदी प्रदूषण के खतरनाक स्तर से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है। देश के समक्ष वाटर विजन 2047 प्रस्तुत किया गया है यानी आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक देश को प्रत्येक वह कार्य करना है, जो देश को पानी के मामलों में सबल बना सके। इसमें हमारी नदियां भी शामिल हैं। हमें अपनी नदियों को 2047 तक निर्मल व अविरल बनाने के संकल्पित लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना होगा। भारत की नदियों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत एवं बढ़ते प्रदूषण पर पिछले चार दशकों से लगभग हर सरकार कोरी राजनीति कर रही है, प्रदूषणमुक्त नदियों का कोई ईमानदार प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दिया है।

नदियां हमारे जीवन की जीवन रेखा है, गति है, ताकत है। ये पानी, बिजली, परिवहन, मछली और मनोरंजन के लिए स्रोत हैं। नदियां पर्यावरण के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद हैं। नदियों के किनारे बसे शहरों की वजह से ये आर्थिक रूप से भी अहम हैं, इनसे ताज़ा पीने का पानी मिलता है, बिजली बनती है, खेती के लिए ज़रूरी उपजाऊ मिट्टी मिलती है। नदियों से जल परिवहन होता है। घरेलू और औद्योगिक गंदा पानी बहकर जाता है, जलवायु नियंत्रण में मदद करती हैं। नदियां प्राकृतिक संपदा हैं। नदियां आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रमुख स्रोत हैं, जिनके किनारे कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। नदियों के किनारे ही कई प्रमुख शहर, शैक्षिक और पर्यटन से जुड़े शहर बसे हैं। नदियों की साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैं, लेकिन लगता है सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये।

आधुनिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के अद्भुत और चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, किन्तुु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है। गंगा ने अपनी विभिन्न धाराओं से, विभिन्न स्रोतों से भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया, गंगा विश्व में भारत की पहचान है। वह मां है, देवी है, प्रेरणा है, शक्ति है, महाशक्ति है, परम शक्ति है, सर्वव्यापी है, उत्सवों की वाहक है। एक महान तीर्थ है। पुराण कहते हैं कि पृथ्वी, स्वर्ग, आकाश के सभी तीन करोड़ तीर्थ गंगा में उपस्थित रहते हैं। गंगाजल का स्पर्श इन तीन करोड़ तीर्थों का पुण्य उपलब्ध कराता है। गंगा का जल समस्त मानसिक एवं तामसिक दोषों को दूर करता है। यह जल परम पवित्र एवं स्वास्थ्यवर्धक है, जिसमें रोगवाहक कीटाणुओं को भक्षण करने की क्षमता है। गंगा का दर्शन मात्र ही समस्त पापों का विनाश करना है। 140 सालों में आने वाला महाकुंभ हाल ही में प्रयासराज में संगम पर 66 करोड़ लोगों का साक्षी बना, जिस गंगा का इतना महत्व है, उपयोगिता है तो फिर क्यों उसके प्रति उपेक्षा एवं उदासीनता बरती जाती रही है?

ललित गर्ग
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