दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा हाल ही में सुर्खियों में आ गए हैं, जब होली के अवकाश के दौरान उनके बंगले से बड़ी मात्रा में बेहिसाब नकदी बरामद हुई। इस घटना के बाद पूरे न्यायिक तंत्र में हड़कंप मच गया और अब इस मामले की जांच की जा रही है।

न्यायाधीश यशवंत वर्मा कौन हैं?
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त हुए थे। इससे पहले वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उन्होंने 8 अगस्त 1992 को वकालत शुरू की थी और विभिन्न संवैधानिक एवं श्रम कानूनों से जुड़े मामलों को संभाला। अक्टूबर 2014 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए और फरवरी 2016 में स्थायी न्यायाधीश बने।
उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया और मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की।
कैसे उठा विवाद?
होली के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट बंद था, तभी न्यायमूर्ति वर्मा के बंगले में आग लगने की घटना सामने आई। जब दमकल कर्मियों ने आग बुझाने के लिए घर में प्रवेश किया, तो वहां बड़ी मात्रा में नकदी देखी गई। इस जानकारी के बाहर आते ही पूरे न्यायिक तंत्र में भूचाल आ गया।
इसके तुरंत बाद, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने उन्हें उनके मूल हाईकोर्ट, यानी इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने का फैसला किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह स्थानांतरण नकदी बरामदगी मामले से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से एक अलग प्रशासनिक प्रक्रिया है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा के स्थानांतरण को नकदी मामले से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने यह भी बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और रिपोर्ट जल्द ही सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने अफवाहों पर रोक लगाने और गलत जानकारी फैलने से बचने के लिए स्पष्ट किया कि यह स्थानांतरण एक नियमित प्रक्रिया है, न कि किसी जांच का परिणाम।
वरिष्ठ वकीलों और नेताओं की प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले पर वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा है, जिसे रोकने के लिए नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
न्यायपालिका की छवि को लेकर चिंता
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया और कहा कि न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखना आवश्यक है। वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने भी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं से न्याय प्रणाली की साख को नुकसान पहुंच सकता है।
क्या होगा आगे?
अब जब इस मामले की जांच चल रही है, तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार ही आगे की कार्रवाई होगी। रिपोर्ट आने के बाद तय किया जाएगा कि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी या नहीं।
इस मामले ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। क्या इस घटना से न्यायपालिका की छवि प्रभावित होगी या फिर इस जांच से सच्चाई सामने आएगी? यह देखना दिलचस्प होगा।
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