जहां नीला आकाश समुद्र से मिलता है, वहीं नवघर के तट पर लहरें अपनी मधुर ध्वनि से नई सुबह का स्वागत कर रही हैं। नम रेत पर वंदना पाटिल के कदम ठहरते हैं। उनकी आंखों में अतीत की झलक है—वह समय जब समुद्र उदार था, जब लहरों के साथ ढेरों केकड़े और मछलियां किनारे तक आती थीं। लेकिन अब, वह उदारता बीते दिनों की बात हो चुकी है।
वंदना के शब्दों में वर्षों के संघर्ष की अनुगूंज है। “पहले, हमें इतनी मछलियां और केकड़े मिलते थे कि किसी और आय का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी,” वे कहती हैं। मगर अब हालात बदल चुके हैं।

मैंग्रोव का विनाश: संकट की जड़
समस्या का कारण स्पष्ट था। वर्षों से मैंग्रोव जंगलों का अंधाधुंध कटाव हो रहा था। यह विशाल हरा रक्षक धीरे-धीरे गायब हो रहा था। उसकी जड़ें अब तटों को संभाल नहीं रही थीं, उसकी छत्रछाया अब समुद्री जीवन को आश्रय नहीं दे रही थी। हर कटते पेड़ के साथ, स्थानीय समुदायों की आजीविका भी ढह रही थी।
लेकिन नवघर में बहुत से लोग इस गहरे संबंध से अनजान थे—मैंग्रोव केवल पेड़ नहीं हैं, वे समुद्री जीवन और मानव अस्तित्व की डोर को जोड़ने वाली कड़ी हैं।
परिवर्तन की लहर: सरकार और समुदाय की पहल
इस गिरते परिदृश्य को बदलने के लिए भारत सरकार ने यूएनडीपी और ग्रीन क्लाइमेट फंड के सहयोग से एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की। यह पहल आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा के तटीय समुदायों में जलवायु अनुकूलन को मजबूत करने और मैंग्रोव इको-सिस्टम को पुनर्जीवित करने के लिए थी।
2021 में नवघर में मैंग्रोव सह-प्रबंधन समिति का गठन किया गया। इसमें ग्राम पंचायत, स्थानीय नागरिक और महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) एक साथ आए। लक्ष्य स्पष्ट था—मैंग्रोव की रक्षा और स्थानीय लोगों की आजीविका को पुनर्जीवित करना।
महिलाओं की भूमिका: समुद्री संरक्षण की अग्रणी योद्धा
इस पहल में सबसे आगे थीं गांव की महिलाएं, जिन्हें पहले सीमित रोजगार के अवसर मिलते थे। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के तहत उन्होंने केकड़ा पालन तकनीक सीखी। इसके परिणामस्वरूप हेल्दी हार्वेस्ट और वाइल्ड क्रैब एक्वा फार्म जैसे आजीविका समूह बने।
आज, ये समूह दो एकड़ तटीय भूमि पर मड क्रैब पालन कर रहे हैं। साथ ही, वे अवैध कटाई को रोककर मैंग्रोव की रक्षा भी कर रहे हैं।
समिति के अध्यक्ष रोहन पाटिल बताते हैं, “अब लोग मैंग्रोव को सिर्फ एक पेड़ के रूप में नहीं देखते, बल्कि इसे अपनी आजीविका और सुरक्षा के रूप में समझने लगे हैं।”
नतीजा: नवघर की नई पहचान
2023 तक नवघर का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था। जहां पहले बंजर तट था, वहां अब हरे-भरे मैंग्रोव खड़े थे, जो भूमि को कटाव और तूफानों से बचा रहे थे। समुद्री जीवन फिर से फलने-फूलने लगा।
वंदना पाटिल कहती हैं, “इस परियोजना ने हमारी बहुत मदद की। पहले महिलाओं को केवल खास मौसम में ही काम मिलता था, लेकिन अब पूरे साल रोजगार के अवसर हैं। पहले केकड़ा पालन के लिए दूर जाना पड़ता था, लेकिन अब यह हमारे अपने गांव में ही संभव हो गया है।”
मैंग्रोव: प्रकृति के अद्भुत रक्षक
मैंग्रोव वे अनोखे पौधे हैं जो नमक-सहिष्णु होते हैं और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये पौधे मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, समुद्री जीवों को आश्रय देते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हैं।
भारत ने मैंग्रोव संरक्षण में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत में कुल 4,991.68 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव वन हैं। पिछले दो दशकों में इसमें 509.68 वर्ग किलोमीटर (11.4%) की वृद्धि दर्ज की गई है।
भारत में मैंग्रोव संरक्षण के लिए प्रमुख पहलें
1. मिष्टी योजना (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes – MISHTI)
- 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 540 वर्ग किमी मैंग्रोव पुनर्स्थापन परियोजना।
- आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी में पुनर्स्थापन के लिए 17.96 करोड़ रुपये आवंटित।
2. राष्ट्रीय तटीय मिशन
- 38 मैंग्रोव स्थलों और 4 प्रवाल भित्ति स्थलों के संरक्षण के लिए 60:40 लागत साझाकरण योजना।
- 2021-23 में 7 राज्यों को 8.58 करोड़ रुपये जारी किए गए।
3. ग्रीन क्लाइमेट फंड – ईसीआरआईसीसी परियोजना
- 2019 से आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में संचालित।
- 10,575 हेक्टेयर मैंग्रोव संरक्षण का लक्ष्य।
- 2024 तक 3,114.29 हेक्टेयर भूमि सफलतापूर्वक पुनर्जीवित।
मैंग्रोव: कार्बन भंडारण के चैंपियन
मैंग्रोव जंगल उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5-10 गुना अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं। ये तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी के सबसे बड़े कार्बन सिंक में से एक हैं। यदि 1.6 मिलियन एकड़ लुप्त हो चुके मैंग्रोव वनों को पुनर्जीवित किया जाए, तो लगभग 1 गीगाटन कार्बन को वातावरण में जाने से रोका जा सकता है।
समुद्री संरक्षण और समुदाय का भविष्य
नवघर का यह बदलाव केवल एक गांव की कहानी नहीं है। यह पूरे भारत के तटीय समुदायों के लिए सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक है। यह दिखाता है कि जब समुदाय, सरकार और विज्ञान एक साथ आते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
जहां कभी लोग समुद्री पारिस्थितिकी की उपेक्षा करते थे, वहीं अब वे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षक बन रहे हैं। वंदना पाटिल जैसी महिलाएं अब सिर्फ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समुद्री संरक्षण की नायिका बन चुकी हैं।
यह बदलाव केवल आज के लिए नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित, हरित और समृद्ध तटीय जीवन की नींव रख रहा है।