राणा के बहाने पाकिस्तान का पूरा आतंकी सच उजागर हो

मुंबई में भीषण, खौफनाक एवं दर्दनाक आतंकी हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने में सक्रिय रूप से शामिल रहने वाले पाकिस्तान मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से भारत लाया जाना किसी उपलब्धि से कम नहीं है, यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीतिक जीत एवं भारत की कानून की बड़ी सफलता है। लगभग 170 लोगों की दर्दनाक मौत, क्रूरता एवं अमानवीयता का डरावना मंजर एवं देशवासियों की आंखों को गमगीन करने वाले इस आतंकी हमले के मास्टरमाइंड राणा का अमेरिका से प्रत्यर्पण भारत के लिये एक उजली किरण बनकर प्रस्तुत हुई है। 26-11-2008 एक ऐसी डरावनी तारीख है जिसे याद करके देशवासी सिहर जाते हैं। दहशत की तस्वीरें आंखों के सामने आ जाती हैं। यह तारीख मुम्बई के पुराने घाव को न केवल कुरेदती है बल्कि टीस भी पैदा करती है कि 150 करोड़ का यह देश अब तक क्यों नहीं राणा का प्रत्यर्पण कराकर उसे दर्दनाक सजा दे पाया। अब राणा के भारत के शिकंजे में आ जाने से 26-11 के घावों पर कुछ मरहम लगेगा क्योंकि मुम्बई एवं देश आज भी जख्मों का हिसाब मांगती है।

देर आये दुरस्त आये की कहावत को चरितार्थ करते हुए अब देश का खतरनाक दुश्मन हाथ आ गया है तो उसे ऐसी सजा दी जाये कि न केवल पाकिस्तान, पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन एवं दुनिया में आतंक फैलाने वाले सहम जाये कि भविष्य में ऐसी घटना करने का दुस्साहस न कर सके। यह तो तय है कि राणा से पूछताछ में कई राज खुलेंगे, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या उसे फांसी की सजा देना संभव होगा? भारत सरकार को ऐसे कूटनीतिक एवं साहसिक प्रयत्न करने होंगे, जिससे उसे फांसी की सजा देना संभव हो सके और वह भी कम से कम समय में। मुंबई हमले के दौरान पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को सजा देने में चार साल लग गए थे। इतनी देरी राणा के मामले में नहीं होनी चाहिए। यह ऐसा मामला है, जिस पर देश के साथ दुनिया की भी निगाह होगी। राणा की सजा से ही भारत के न्यायतंत्र की त्वरता एवं तत्परता सामने आयेगी। क्योंकि खूंखार आतंकियों को सजा देने में देरी से आतंक से लड़ने की प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न टंकते है।

17 साल बाद आज भी महानगर मुम्बई की वह काली रात एवं गोलियों की गंूज से सब दहल उठते है, सहम जाते हैं। उस दिन पाक प्रशिक्षित लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने एक साथ कई जगहों पर हमला किया। लियो पोर्ल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से शुरू हुआ मौत का दर्दनाक तांडव ताजमहल होटल में जाकर खत्म हुआ। जिसमें आतंकवाद निरोधक दस्ते यानि एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, मुम्बई पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त अशोक कामटे और पुलिस इंस्पैक्टर विजय सालस्कर शहीद हुए। आतंकवादी कसाब को जिन्दा पकड़ने वाले साहसी सब इंस्पैक्टर तुकाराम को कौन भुला सकता है, जो एक दूसरे आतंकवादी की गोलियों का शिकार होकर भी, जान की बाजी लगाकर कसाब को पकड़ने में सफलता पायी, भले ही इस एकमात्र पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब को सजा-ए-मौत दी गई लेकिन इस हमले ने क्रूरता के जो निशान छोड़े वे आज भी मुम्बई में मौजूद हैं, भारत के जन-जन के हृदय पटल पर अंकित है।

कौन नहीं जानता कि तहव्वुर राणा ने दाऊद सईद गिलानी यानि डेविड कोलमैन हेडली के साथ मिलकर हमले की साजिश रची थी। डेविड हेडली ने अपनी पहचान छिपाने के लिए मुम्बई में फर्स्ट वर्ल्ड इमीग्रेशन सर्विसिज के नाम से एक कम्पनी का कार्यालय खोला और खुद को बिजनेसमैन के रूप में पेश किया। धीरे-धीरे उसने फिल्म जगत में नामी-गिरामी हस्तियों से जान-पहचान बढ़ाई। भारत यात्रा के दौरान उसने मुम्बई एवं देश के अन्य हिस्सों की रेकी की जहां पर हमला किया जाना था। पाकिस्तानी पिता और अमरीकी माँ की औलाद हेडली अमरीका में एक समय रंगीन ज़िन्दगी गुज़ार चुका था जिसके दौरान ड्रग्स की तस्करी के लिए उसे जेल भी हुई थी। भारत ने हेडली के प्रत्यर्पण के लिए भी अनुरोध किया था, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया, क्योंकि कई मामलों और डेनमार्क में एक हमले की नाकाम साजिश सहित 12 आतंकवाद से संबंधित आरोपों में दोषी होने की बात स्वीकार की थी।

उसने लश्कर, आईएसआई और अलकायदा के राज अमेरिका को बताए तब से ही हेडली अमेरिका की सम्पत्ति बन गया है। फिलहाल हेडली का अमेरिका में सुरक्षित रहना बड़े सवाल खड़े करता है। इस बीच भारत ने राणा को मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर दिया और 28 अगस्त 2018 भारत के खिलाफ आतंकी साजिश रचने, युद्ध छेड़ने, हत्या, जालसाजी और आतंकवादी हमले के आरोपों पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया। अब सवाल यह है कि अमेरिका ने राणा को तो भारत के हवाले कर दिया लेकिन वह डेविड हेडली के मामले में क्यों खामोश है?

राणा को भारत लाया जाना, भारत के शिकंजे में आना भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत है। राणा पाकिस्तानी सेना का पूर्व अधिकारी है। चूंकि उसने आतंकी संगठन लश्कर एवं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से मिलकर मुंबई हमले की साजिश रची थी, इसलिए उससे गहन पूछताछ करके पाकिस्तान को नए सिरे से न केवल बेनकाब करना होगा, बल्कि उस पर इसके लिए दबाव भी बनाना होगा कि वह मुंबई हमले के अन्य गुनहगारों को भी दंडित करे। इस हमले के गुनहगार पाकिस्तान में खुले घूम रहे हैं। अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा को भारत भेजने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। हालांकि राणा ने कई हथकंडे अपनाए लेकिन अमेरिकी अदालतों में उसकी सारी याचिकाएं ठुकरा दी गईं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की यह आज तक की सबसे बड़ी जीत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इसके लिए कूटनीतिक प्रयास करते रहे हैं। सर्वविदित है कि भारत विश्व के सर्वाधिक पाकिस्तान पोषित आतंकवाद प्रभावित देशों में से एक है। 26-11 के मुंबई हमलों के अलावा 2008 में ही जयपुर विस्फोट, काबुल में भारतीय दूतावास के अलावा अहमदाबाद, दिल्ली और असम के विस्फोट भी शामिल थे। यह संतोषजनक तो है कि अमेरिका ने देर से सही, राणा को भारत को सौंप दिया। यदि ट्रंप फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बनते तो शायद राणा को भारत लाना और मुश्किल होता। जो भी हो, भारत को केवल इतने से ही संतोष नहीं करना चाहिए कि अंततः एक बड़ा आतंकी उसके हाथ लग गया। भारत को देश के अन्य शत्रुओं एवं आतंकियों को भी दंडित करने-कराने के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा। उन्हें और पाकिस्तान सरीखे उनके आकाओं को यह संदेश नए सिरे से देना होगा कि भारत अपने दुश्मनों को न तो भूलता है और न माफ करता है।

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण आतंकवाद के खिलाफ भारत की एक बड़ी जीत है, लेकिन इसे आतंकवाद के खिलाफ एक छोटा पडाव मानते हुए अभी कई मोर्चें पर आतंकवाद के खिलाफ कमर कसनी होगी, अब भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का असली बड़ा काम यहां से शुरू हुआ है। मुंबई सहित देश के अन्य हिस्सों और विशेषतः जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले की पूरी प्लानिंग के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई व उसकी जमीन पर सक्रिय आतंकवादी संगठनों का हाथ न केवल था, बल्कि आर्थिक एवं अन्य तरह का सहयोग भी शामिल है। राणा के बहाने पाकिस्तान के मनसंूबों को बेनकाब करना ज्यादा जरूरी है, इससे कई राज खुलने और जांच को नई दिशा मिलने की उम्मीद है। तमाम सबूत होने के बाद भी पाकिस्तान इस हमले के पीछे अपनी कोई भूमिका होने से इनकार करता रहा है। हालांकि वह आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकवादी सरगनाओं को बचाता भी रहा है। राणा के माध्यम पाकिस्तान का पूरा सच देश भी जाने एवं दुनिया भी समझे, तभी राणा का भारत आना सफल एवं सार्थक होगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »