गर्मी का मौसम कई प्रकार की बीमारियां साथ लाती है

हमारे देश में गर्मी का मौसम कई प्रकार की बीमारियां साथ लाता है। हैजा टाइफाइड और गंदे पानी से फैलने वाले रोग अपनी चरम अवस्था पर पहुंच जाते हैं। वैसे गर्मी का मुख्य रोग शरीर में पानी की कमी और लू लगना है। पानी की कमी मुख्य रूप से जरूरत से ज्यादा पसीना बहने और पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने के कारण होती है। इस दशा की डिहाइड्रेशन कहा जाता है। देह में पानी की कमी होने से पहली चोट खून पर पड़ती है, क्योंकि खून में काफी मात्रा में पानी मौजूद होता है। परंतु शरीर खून की मात्रा में कमी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए असंख्य कोशिकाओं से पानी खींचकर खून की मात्रा पूरी करने की कोशिश करता है। पंरुत यह सिलसिला भी ज्यादा देर तक नहीं चल सकता। व्यक्ति का रक्तचाप गिरने लगता है।

गर्मी


इसके बाद शरीर में थकान आने लगती है और सिर दर्द शुरू हो जाता है। इस दशा में यदि व्यक्ति को आराम मिल जाए और तुरंत शरीर में पानी की पूर्ति कर दीजाए तो हालत संभल सकती है। परंतु यदि पानी की कमी हो जाए तो जी मिचलाने लगता है और मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है और व्यक्ति पर धीरे-धीरे बेहोशी छाने लगती है। हो सकता है कि इस हालत में बुखार न चढ़े पर रक्तचाप इतना गिर जाए कि जान पर बन आए। डिहाइड्रेशन से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने के अलावा चाय, काफी और अल्कोहल आदि का सेवन कम से कम कर देना चाहिए। साथ ही कैफीनयुक्त शीलत पेयों से भी परहेज करना चाहिए। क्योंकि इसके सेवन से मूत्र अधिक बनता है। गर्मियों में शरीर से पानी का निष्कासन जिनता कम हो, उतना अच्छा। पसीना अधिक बहने से शरीर में पानी की कमी तो होती ही है साथ ही सोडियम क्लोराइड (नमक) और पोटेशियम जैसे लवणें की भी कमी हो जाती है। ये लवण शरीर के कामकाज को दुरुस्त रखने के लिए आवश्यक होते हैं। लवणों की कमी से जी मिचलाने लगता है। उल्टी होने लगतीहै, मांसपेशियों में ऐंठन शुरू हो जाती है, नब्ज बहुत तेज चलने लगती है और बुखार भी चढ़ जाता है। ऐसे रोगियों को तुरंत नमकीम शीतल पेय पिलाया जाता है। यदि हालत ज्यादा खराब हो गई हो तो धूप में लगातार मेहनत करने वालों की मांसपेशियों में रह-रहकर जबरदस्त ऐंठन होने लगी है। शुरू में यह ऐंठन एक या दो मिनट के लिए ही होती है पर बाद में जल्दी-जल्दी और अधिक समय के लिए होने लगती है। इसे चिकित्सक हीट क्रैंप कहते हैं। ऐसे रोगियों को नारियल पानी पिलाने से बहुत जल्दी लाभ होता है क्योंकि इसमें पानी के साथ आवश्यक लवण भी घुले होते हैं।
गर्मियों के मौसम में परेड करते हुए सिपाही अचानक बेहोश होकर गिरने लगते हैं। ऐसा ही अक्सर स्कूलों में बच्चों के साथ भी होता है। इसे हीट कोलैप्स से लडने के लिए चमड़ी में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है तो रक्त वाहिकाएं भी फूल जाती है। ऐसे में अक्सर रक्त की अधिक मात्रा पैरों में इकट्ठा हो जाती है। दिल की ओर वापस नहीं जा पाती। इससे रक्तचाप गिर जाता है और दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं मिल पाता है। नतीजतन व्यक्ति का सिर चकराने लगता है और वह जल्द बेहोश होकर गिर जाता है। कभी-कभी बुखार भी चढ़ जाता है। ठंडी जगह पर आराम करने से रोगी की हालत सुधर जाती है। गर्मियों में सबसे ज्यादा मामले लू लगने के आते हैं। यह स्थिति दरअसल शरीर की गर्मी से लड़ाई में हार के कारण पैदा होती है। जब शरीर सारे उपाय अपनाने के बावजूद गर्मी को बाहर नहीं निकाल पाता है तो हथियार समेट कर आत्मसमर्पण कर देता है। इसलिए लू लगे व्यक्ति के शरीर से पसीना बहता नहीं दिखाई देता। खास बात यह है कि लू का प्रकोप अचानक होता है। इसमें तेज बुखार चढ़ता है और केन्द्रीय तंत्रिका का काम गड़बड़ाने लगता है। रोगी मातिभ्रम का शिकार हो जाता है। दौरे पड़ने लगते हैं बेहोशी छाने लगती है। ऐसे में रोगी को जल्दी अस्पताल पहुंचाना चाहिए। प्राथमिक चिकित्सा के रूप में रोगी के शरीर पर पानी छिडक कर हवा करनी चाहिए ताकि बुखार हद पार न कर जाए। अन्यथा ताकि बुखार से व्यक्ति की मौत हो सकती है। गर्मी के मौसम में हमें अपनी खुराक और उसकी प्रवृत्ति के बारे में भी सचेत रहना चाहिए। अधिक मसालेदार और गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए। ऐसा भोजन शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है, जिससे ज्यादा प्यास लगने लगती है और पेट में जलन भी होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि गर्मी के दौरान हमें अपनी खुराक से थोड़ा कम खाने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि ऊंचे तापमान के कारण पाचन दुरुस्त नहीं रहता। इसके अलावा जहां तक संभव हो और लू में निकलने से बचना चाहिए। ज्यादातर कामकाज सुबह और शाम में निपटाएं तो बेहतर होगा। गर्मी हम पर मुकाबला करने के लिए तैयार है। हमें भी मुकाबला करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। वैसे कुदरत ने हमारे शरीर में हर अच्छे-बुरे मौसम से निपटने का बंदोबस्त कर रखा है। कड़ाके की सर्दी हो या प्रचंड गर्मी दोनों को ही हमारा शरीर बखूबी झेल सकता है। श्हारी की खास खूबी है कि यह चार डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान आसानी से झेल सकता है। हमारे शरीर में 37 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ही जिन्दगी के सारे कार्य भली प्रकार संपन्न होते हैं। इससे अधिक या कम तापमान होने पर शरीर को कुछ खास क्रियाए करके तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास बनाए रखना पड़ता है।

गर्मी के मौसम में शरीर को बाहर से फालतू गर्मी या ऊष्मा प्राप्त होती है। इसे बाहर निकालने के लिए हमारी देह को जो मुख्य रास्ता अपनाना पड़ता है वो है वाष्प यानी पसीने को भाप बनाने का। अधिक ऊष्मा होने पर शरीर से पसीना बहने लगता है। जब यह पसीना भाप बनकर उड़ता है तो वाष के लिए जरूरी ऊष्मा शरीर से ही प्राप्त करता है। इस तरह शरीर में ऊष्मा की मात्रा कम हो जाती है और शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही बना रहता है। शरीर में जरूरत से ज्यादा गर्मी इकठ्टा होने की खबर फटाफट दिमाग तक पहुंचाई जाती है, क्योंकि दिमाग के हाइपोथैलैमस नामक हिस्से में ही वह केन्द्र है जो शरीर को गर्मी बाहर निकालो, का हुक्त देकर आपातकाली प्रणाली चालू करवाता है। इस केन्द्र को शरीर गर्माने की सूचना दो रास्तों से मिलती है। पहला रास्ता हमारी चमड़ी के रोम-रोम में बिखरी असंख्य संवेदी तंत्रिकाएं है। ये तुरंत बिजली की रफ्तार से दिमाग को खबरदार करती है। दूसरा रास्ता हमारी देह में निरंतर प्रभावित होता रक्त है, जो दिगाम में भी पहुंचता है. परंतु यह रास्ता पहले रास्ते की तुलना में काफी सुस्त है. शरीर के भीतरी अंग भी इन्हींदोनों रास्तो से दिमाग को संदेश भेजते हैं। गर्मी की खबर मिलते ही दिमाग द्वारा शरीर की गर्मी को लडने का हुक्म प्रसारित कर दिया जाता है। हमारी देह के पास गर्मी से लड़ने के दो मुख्य हथियार है। पहले अस्त्र के रूप में चमड़ी में रक्त का प्रवाह अधिक और तेज कर दिया जाता है। इससे रक्त के साथ-साथ शरीर के भीतरी अंगों की गर्मी भी चमड़ी के पास आ जाती है। ऐसी दशा में दिल जोर से धडकने लगता है जिससे रक्त का तेज प्रवाह बना रहे। शरीर के पास दूसरा अमोघ, अस्त्र पसीना बनाने वाली ग्रंथियां है जिन्हें स्वेद ग्रंथिया कहा जाता है।

उमेश कुमार सिंह

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