प्रचण्ड ग्रीष्म ऋतु के बाद गर्मी से आकूल व्याकूल पृथ्वी के प्राणियों को ठंडकता और बरखा की शबनमी फुहारों की सौगात देने आती है वर्षा ऋतु। इन दिनों खेत-खलिहान भी लहलहा उठते हैं। मन भी प्रफ्फुलित रहता है। सावन के महिने में जिधर देखो वानस्पतिक दुनिया का साम्राज्य दिखने लगता है। सर्वत्र पेड़ पौधों की हरियाली छाई रहती है। कहते हैं भारतीय त्यौहारों का सिलसिला सावन अमावस्या को पड़ने वाले हरेली त्यौहार से ही शुरु होता है। इसीलिये हरेली को त्यौहारों का दरवाजा भी कहते हैं।
इसी प्रकार आगामी माह भादों में पड़ने वाली अमावस्या को खेती बाड़ी की जुताई बुआई से थके हारे किसान व ग्रामीण जन अपने जानवरों (बैलो आदि) के साजसंवार और उनकी देखभाल के लिये पोला का त्यौहार मनाया जाता है। अगले कुंवार माह की अमावस्या से पित्रमोक्ष के पाक्षिक दिन की शुरुआत होती है।
इन दिनों हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा अपने मृत परिजनों पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु – उनका आव्हान एवं धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। इसके बाद कार्तिक माह में पड़ने वाली अमावस्या को हिन्दूओं के ही सबसे बड़े त्यौहार दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। यह क्रम कई त्यौहारों के साथ खत्म होता है। फिर होली पश्चात यह क्रम कुछ माह के लिये थम सा जाता है। जो हिन्दू कलेन्डर के हिसाब से (विक्रमी संवत्) पुनः नये वर्ष के पश्चात हरेली त्यौहार से चालू हो जाता है।
हरेली त्यौहार वास्तव में, किसानों का ही त्यौहार होता है। हरेली त्यौहार में किसान भगवान से अच्छी फसल के लिये पर्याप्त पानी धूप के लिए प्रार्थना करते है। हमारे देश के विशाल भूभाग में हालांकि कई त्यौहार अलग अलग क्षेत्रों मे विशिष्ट रूप से मनाये जाते है। उसी प्रकार हरेली का त्यौहार खासकर छत्तीसगढ़ क्षेत्र में खास महत्व के साथ मनाया जाता है। हरेली के दिन किसान जुताई करना, भूमि खोदना, बीज डालना, अर्थात कृषि के सभी कार्यों को वर्जित करते हैं।
इस दिन इन कार्यों को करना अशुभ माना जाता है। हरेली का दिन ज्योतिष और तंत्र मंत्र साधना के लिये विशेष और उत्तम माना गया है। ज्योतिषीय विज्ञान का यह तर्क है कि ग्रहादि सूर्य, चंद्र होते है एवं पृथ्वी की स्थिति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सावनी अमावस्या में एवं तंत्र साधना के लिये सर्वोत्तम माना जाता है। हरेली को किसान भाई अपने सभी कृषियंत्रों हल कुदाली, रापा बैल आदि जानवरों की पूजा करते हैं। हरेली का त्यौहार विशेषकर छत्तीसगढ़ में बड़े उत्साह से मानाया जाता है। इसी दिन दिनभर तरह – तरह की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जाती है।
नारियल फेंक, नींबू फेंक स्पर्धा होती है। इस स्पर्धा में एक निश्चित दूरी को निश्चित संख्या के अंदर नारियल को फेंक कर नापना होता है। पहला व्यक्ति प्रतिस्पर्धा में रूपयों या वस्तु की बाजी लगाकर दूसरों को चुनौती देता है। जो उसे चुनौती को स्वीकार कर लेता है, उसे वह दूरी नारियल को निश्चित वह निर्धारित किए गए संख्या के अंदर फेंककर पार करना होता है। अगर वह ऐसा नहीं कर पात तो वह हारा हुआ माना जाता है और उसे दांव में लगी वस्तु या रकम जीतने वाले की देनी पड़ती है।
छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों के अलावा हरेली ग्रामीण इलाकों में और भी ज्यादा उत्साह से मनाया जाता है। ग्रामीण व किसान जन अपने देवता को उसकी बलि चढ़ाते है बलि के रूप में बकरे या मुर्गे को चढ़ाते हैं। शराब का भी खूब प्रयोग होता है इस दिन ! और यही कारण है कि इस दिन विवाद और झगडे भी खूब होते हैं। इन चीजों से इस त्यौहार का स्वरूप विकृत हो गया है।
हरेली त्यौहार के दिन किसान हल कुदाली आदि धोकर उसकी पूजा करते है।
मवेशियों के सींगों पर हल्दी और तेल लगाकर उन्हें अरण्डी के पत्ते में नमक रखकर खिलाते हैं, ताकि उन्हें बरसाती रोग न हो जाय, घर में पकवान बनाकर भगवान को भोग लगाते हैं। अपने बैलों को भी खिलातें है। और परिवार सहित स्वयं भी खाते हैं। शाम होने पर पूरे गांव के लोग मिलकर पूजा पाठ करते हैं एवं विचार विमर्श भी करते है कि किसानी का कार्य कैसे कुशलता से एवं सफलतापूर्वक संपन्न हो सके!
किसान भाई इस अपने नौकरों-मजदूरों को बिना काम किये ही मजदूरी एवं तोहफे आदि देते हैं। ग्राम्य जीवन के सौल्लास और सहकारिता के साथ मनाये जाने वाला यह त्यौहार वर्षों से मनाया जा रहा है। कृषि और कृषक का यह अप्रतिम त्यौहार हरेली भारतीय ग्राम्य जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है जिसे कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।