इंसुलिन डिसऑर्डर के कारण लंबे समय तक हाई ब्लड शुगर की समस्या ही डायबिटीज कहलाती है जो आजकल भारत में सर्वव्यापी हो चुकी है। डायबिटीज से यहां पांच करोड़ लोग पीडि़त हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। डायबिटीज न सिर्फ हर किसी की सामान्य जिंदगी में हस्तक्षेप करता है बल्कि इस वजह से क्रोनिक किडनी रोग, नेत्रहीनता, फुट अल्सर और स्ट्रोक के अलावा कार्डियोवैस्क्यूलर रोग सहित कई रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों में हार्ट अटैक का खतरा अधिक रहता है और हाल के कई सारे शोध बताते हैं कि डायबिटीज पीडि़त पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में हृदय रोग होने का खतरा अधिक रहता है।
सबसे भयावह सच यह है कि टाइप 2 डायबिटीज बड़ी ‘खामोशी’ से हृदय रोग का खतरा बढ़ा देता है और ऐसी स्थिति में आपको बिना किसी लक्षण के हृदय रोग हो जाता है। डायबिटीज के कारण क्षतिग्रस्त होने वाली तंत्रिकाएं कई बार दर्द का संदेश देने में निष्क्रिय हो जाती हैं और इसलिए आप किसी दर्द के बगैर हार्ट अटैक के शिकार हो सकते हैं।
अमूमन डायबिटीज से पीडि़त पुरुषों की तुलना में डायबिटीक महिलाओं की स्थिति बदतर होती है। एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, सन 1971 से 2000 के बीच डायबिटीज पीडि़त व्यक्तियों की मृत्यु दर में कमी आई है जिसका श्रेय नई उपचार पद्धतियों की सफलता को दिया जा सकता है। लेकिन डायबिटीज पीडि़त महिलाओं की मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है। प्रतिष्ठित यूरोपियन हार्ट जर्नल द्वारा सन 2007 में कराए गए अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में डायबिटीज और हार्ट अटैक के कारण होने वाली मृत्यु के बीच गहरा नाता रहा है। फिनलैंड का अध्ययन भी बताता है कि डायबिटीक पुरुषों के मुकाबले डायबिटीक महिलाओं में घातक हार्ट अटैक की संभावना अधिक रहती है।
आधुनिक चिकित्सा जगत भी इस बात पर सहमत है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए डायबिटीज अधिक खतरनाक रोग है लेकिन इस अंतर के पीछे की कोई स्पष्ट वजह नहीं मिल पाई है।
सीमित समझ होने के कारण स्वाभाविक है कि इस अंतर को पुरुषों और महिलाओं की अलग-अलग शारीरिक संरचनाओं से जोडक़र देखा जाता है। अमूमन पुरुषों की तुलना में महिलाओं का औसत जीवनकाल अधिक रहता है और उन्हें हृदय रोग का खतरा भी कम रहता है। लेकिन डायबिटीज पीडि़त महिलाओं में रक्त शर्करा पर नियंत्रण बिगडऩे, उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल स्तर गड़बड़ाने की अधिक संभावना रहती है।
समझा जाता है कि महिलाओं के कार्डियोवैस्क्यूलर रिस्क फैक्टर्स और डायबिटीज संबंधित स्थितियों का गंभीरता से इलाज नहीं हो पाता है और उन्हें अलग तरह के हृदय रोग भी होते हैं।
हार्ट अटैक की स्थिति में पुरुषों के मुकाबले डायबिटीज से पीडि़त महिलाओं में अधिक घातक हार्ट अटैक भी उनकी अलग शारीरिक संरचना से ही जुड़ा हो सकता है। आम तौर पर हार्ट अटैक के दौरान उभरने वाले लक्षणों में सीने में दर्द और असहजता शामिल है। लेकिन कई बार महिलाओं में मिचलाहट, सांस की तकलीफ, पीठ या जबड़े का दर्द जैसे अलग लक्षण उभरते हैं। कई मामलों में महिलाएं हार्ट अटैक के लक्षणों को समझने और पहचानने में असमर्थ हो जाती हैं और सही समय पर इलाज नहीं करा पाती हैं जिस वजह से उनकी स्थिति और परेशानियां घातक हो जाती हैं।
महिलाओं को डायबिटीज के कारण सबसे बड़ा नुकसान भी उनकी शारीरिक संरचना से ही जुड़ा हो सकता है। डायबिटीक महिलाओं में हाई ट्राइग्लिसेराइड्स (ब्लड फैट) के कारण एचडीएल (अच्छे कोलेस्ट्रॉल) का स्तर कम हो जाता है। इसके अलावा निम्न एचडीएल और उच्च ट्राइग्लिसेराइड्स (ब्लड फैट) के एक साथ होने से महिलाओं में हृदय रोग का खतरा अधिक हो जाता है।
कार्डियोवैस्क्यूलर रोग एक बड़ी आबादी को प्रभावित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, प्रतिवर्ष 1.73 करोड़ लोगों की जान कार्डियक रोगों के कारण ही जाती है। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों की अवधि में कोरोनरी रोगों से पीडि़त महिलाओं की संख्या 300 प्रतिशत तक बढ़ी है।
चिकित्सा विशेषज्ञों की चिंता इस बात को लेकर है कि पूरी दुनिया में लगभग 90 लाख लोग दिल की बीमारियों के कारण काल का ग्रास बन रहे हैं। इनमें से तकरीबन 30 लाख लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं। महिलाओं में इस रोग के अधिकतम खतरे का प्रमाण इस तथ्य से भी देखा जा सकता है कि एक साल में तकरीबन 25 प्रतिशत ऐसे लोगों की मृत्यु हो जाती है जो पहली बार हार्ट अटैक से पीडि़त होते हैं जबकि एक साल में ही पहली बार हार्ट अटैक झेलने वाली 45 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।
आजकल पुरुषों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं में तनाव का स्तर भी ज्यादा देखा गया है, खासकर भारत जैसे देश में जहां किसी महिला को परंपरागत रूप से घर का दायित्व भी संभालना पड़ता है, भले ही वह नौकरी ही क्यों न कर रही हो। धूम्रपान, मदिरापान, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन और डायबिटीज कुछ ऐसे फैक्टर्स हैं जो महिलाओं को आजकल हृदय संबंधी समस्याओं के बड़े खतरे में डालते हैं।
एक अन्य दुखद पहलू महिलाओं में जागरूकता का अभाव और अपनी स्वास्थ्य समस्याओं की अनदेखी करने की आदतों से जुड़ा हुआ है जबकि वे पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं। महिलाएं आम तौर पर नियमित स्वास्थ्य जांच भी नहीं करातीं और उनके हृदय संबंधी समस्याओं का पता ही नहीं चल पाता। कई महिलाओं में तो शुरुआती स्तर के डायबिटीज का भी पता नहीं चल पाता है जिस वजह से उनका इलाज शुरू करने में देर हो जाती है।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर महिलाओं में जागरूकता बढ़ाना और हाइपरटेंशन तथा डायबिटीज जैसे खतरनाक डिसऑर्डर की जांच कराते रहना जरूरी है। ये दोनों फैक्टर्स मिलकर कार्डियोवैस्क्यूलर रोग का बोझ बढ़ा देते हैं।
तनाव पर नियंत्रण, नियमित व्यायाम, स्वस्थ एवं संतुलित खानपान, वजन पर नियंत्रण जैसे कुछ सामान्य उपाय और नियमित रूप से स्वास्थ्य एवं हृदय की जांच कराते रहने से आप लंबी आयु तथा उत्पादनशील जिंदगी जी सकती हैं।