-अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
“एक लेखक की सबसे बड़ी पूंजी उसकी सोच होती है। शब्द तो केवल उस सोच का माध्यम होते हैं।”
एक शाम मैं अपनी बालकनी में सुकून से बैठा था, बड़े दिनों बाद ऐसा मौका मिला था जब हाथ में एक बढ़िया किताब और पास में गर्मागर्म चाय थी। लेखक ने किताब में अपनी विचारधारा को कुछ इस तरह पिरोया था कि किताब बीच में छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था। लेखन कौशल के साथ ही लेखक के विचार मुझे इतने प्रभावित कर गए कि किताब ख़त्म होते-होते तक मैं लेखक के विचारों को ही अपने विचार मानने लगा। यही होता है किसी के विचारों का प्रभाव…। और जब बात किसी लेखक की हो, तब यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसकी विचारधारा कितनी गहरी और प्रभावशाली है। लेखन और विचारधारा का संबंध ऐसा है जैसे शरीर और आत्मा का। बिना आत्मा के शरीर केवल एक निर्जीव वस्तु है, उसी प्रकार बिना गहरी सोच के लेखन केवल शब्दों का खेल बन कर रह जाता है। एक लेखक का लेखन तभी प्रभावशाली होता है जब उसमें उसकी सोच की गहराई झलकती है। जब वह अपनी सोच को अपने लेखन में समाहित करता है, तब उसका लेखन न केवल साहित्यिक रूप से समृद्ध होता है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देता है।
यह समृद्ध विचारधारा केवल कुछ किताबें पढ़ लेने से विकसित नहीं होती है, बल्कि यह विकसित होती है जीवन के अनुभवों से, आस-पास के वातावरण से, विभिन्न विचारों के लोगों से बातचीत करने और चीजों को परखने से। जब व्यक्ति इन अनुभवों को सुंदर शब्दों में ढालने की कला में माहिर होता है, तब वह लेखक कहलाता है। एक लेखक हर परिस्थिति के प्रति संवेदनशील होता है। वह हर परिस्थिति को आम लोगों से अलग नजरिये से देखता है। वह केवल किसी विषय पर दो-चार बातें करके उन्हें भूलता नहीं है, बल्कि उनसे अपने विचारों का निर्माण करता है, और उन विचारों को कुछ इस तरह शब्दों के साथ बुनता है, जिससे समाज को एक नया दृष्टिकोण मिल सके।
इसी संवेदनशीलता और दृष्टिकोण ने मुझे भी एक लेखक के रूप में गढ़ा है। मैंने अपनी ‘दिल से’ सीरीज की 6 किताबें लिखीं है, और इस यात्रा की प्रेरणा मुझे अपने आस-पास के वातावरण से ही मिली है। समाज में फैली अव्यवस्था, भुखमरी, गरीबी, और अशिक्षा के प्रति मेरी गहरी संवेदनशीलता ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया है। अपने शब्दों और विचारों के माध्यम से मैं समाज में बदलाव की उम्मीद करता हूँ, ताकि इन ज्वलंत मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकूं और एक बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकूं।
इतिहास में भी ऐसे कई लेखक हुए हैं जिन्होंने अपनी सोच से समाज को नई दिशा दी। उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी को ही लें। उनकी सोच ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी, बल्कि पूरे विश्व को अहिंसा और सत्याग्रह का पाठ पढ़ाया। गांधी जी के लेखन में उनकी गहरी सोच और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से झलकती है। उनके लेखन का प्रभाव इतना गहरा था कि आज भी उनके विचार लोगों को प्रेरित करते हैं। इसी तरह, भारत के प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी। उनकी सोच ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज को भी जागरूक किया। उनकी कहानियाँ जैसे “गोदान” और “गबन” ने समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर किया और उन्हें सुधारने की दिशा में प्रेरणा दी।
मेरा मानना है कि लेखक का काम केवल कहानियों या कविताओं के माध्यम से पाठकों का मनोरंजन करना नहीं होता। उसका असली उद्देश्य इससे कहीं अधिक गहरा होता है। एक सच्चा लेखक समाज का दर्पण होता है, जो समाज में फैली समस्याओं, विसंगतियों और अन्याय को उजागर करता है। जब वह समाज की वास्तविकताओं को अपने लेखन में व्यक्त करता है, तब वह पाठकों के दिल और दिमाग को छूता है। इसलिए, एक अच्छे लेखक को केवल लिखने पर नहीं, बल्कि अपनी सोच को भी विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि वही गहरी सोच उसके लेखन को जीवन दे सकती है और समाज में सकारात्मक बदलाव का माध्यम बन सकती है।
एक लेखक की सबसे बड़ी शक्ति उसकी सोच होती है। जब सोच में गहराई होती है, तो शब्दों में स्वतः ही शक्ति आ जाती है। यह शक्ति न केवल लेखन को प्रभावशाली बनाती है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने की क्षमता भी रखती है। इसी सोच और शब्दों की ताकत से हम एक बेहतर समाज की नींव रख सकते हैं।