शुक्रवार तड़के (4 अप्रैल, 2025) संसद ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को पारित कर दिया। राज्यसभा में करीब 14 घंटे तक चली बहस के बाद 128 सांसदों ने पक्ष में और 95 ने विरोध में मतदान किया। इससे पहले लोकसभा में यह विधेयक 56 मतों के अंतर से पारित हुआ था।

सरकार ने स्पष्ट किया कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। वहीं विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह विधेयक मुसलमानों को “दूसरी श्रेणी का नागरिक” बनाने की मंशा से लाया गया है।
राज्यसभा में हुआ तीखा टकराव
राज्यसभा में बहस के दौरान विपक्ष के कई सांसदों ने काले कपड़े पहनकर विरोध दर्ज कराया। डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर संशोधन पेश किया, लेकिन 125 मतों से इसे नकार दिया गया, जबकि केवल 92 मत समर्थन में आए।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने बहस का समापन करते हुए दोहराया कि सरकार ने सभी सुझावों को गंभीरता से सुना, और जो संशोधित विधेयक संसद ने पारित किया है, वह उसी का परिणाम है। उन्होंने विपक्ष द्वारा गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर उठाए गए आपत्तियों को “बेबुनियाद और निराधार” बताया।
उन्होंने कहा, “वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है, न कि धार्मिक संस्था। इस कारण इसमें धर्मनिरपेक्षता होनी चाहिए। गैर-मुस्लिम सदस्य केवल प्रशासनिक योगदान देने के लिए होंगे, वे निर्णय नहीं लेंगे।”
विपक्ष के आरोप
कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने इसे “मुस्लिम समुदाय के खिलाफ लक्षित कानून” करार देते हुए कहा कि यह विधेयक मुसलमानों को दूसरी श्रेणी का नागरिक बनाने की दिशा में एक कदम है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने यह विधेयक केवल ध्रुवीकरण और वोट बैंक राजनीति के लिए लाया है।
हुसैन ने पूछा, “अगर आप मुझे हिंदू मंदिर ट्रस्ट का सदस्य नहीं बना सकते, तो गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड का सदस्य कैसे बना सकते हैं?” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब वक्फ बाय यूजर की धारा को हटा दिया गया है, तो सदियों पुराने मंदिर, चर्च या गुरुद्वारे कैसे अपने अस्तित्व का प्रमाण देंगे?
सरकार का पलटवार
राज्यसभा में नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं को दूसरी श्रेणी की नागरिक बना दिया था। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार वास्तविक सेवा में विश्वास करती है, न कि दिखावे में। उन्होंने ट्रिपल तलाक का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में यह प्रथा काफी देर से बंद की गई, जबकि कई मुस्लिम देशों में यह पहले ही प्रतिबंधित हो चुकी थी।
आरजेडी सांसद मनोज के झा ने कहा कि विधेयक की मंशा और विषयवस्तु दोनों पर सवाल हैं। उन्होंने कहा कि अन्य धार्मिक ट्रस्टों में जब गैर-संप्रदाय के सदस्य नहीं हो सकते, तो वक्फ बोर्ड में यह व्यवस्था क्यों?
कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के उस बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने तिरुपति ट्रस्ट में गैर-हिंदुओं को शामिल करने का विरोध किया था। उन्होंने पूछा, “जब तिरुपति ट्रस्ट में गैर-हिंदू नहीं हो सकते, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम क्यों?”
शिवसेना (उद्धव) सांसद संजय राउत ने कटाक्ष करते हुए कहा, “बीजेपी और उसके सहयोगी जिस तरह मुस्लिम समुदाय की चिंता जता रहे हैं, वह जिन्ना को भी शर्मिंदा कर दे।“
कब्रिस्तानों को लेकर भी बहस
बीजेपी नेताओं ने वक्फ संपत्तियों की वाणिज्यिक उपयोग की कमी को मुद्दा बनाया। इसके जवाब में समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने कहा, “वक्फ की 60% संपत्तियां कब्रिस्तान हैं, और वहां केवल ‘मृतकों का कारोबार’ होता है।”
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि जब लोकसभा में आधी रात को वक्फ विधेयक पारित हो रहा था, उसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26% शुल्क लगाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी प्राथमिकताओं पर विचार करना चाहिए।
आम आदमी पार्टी का आरोप और हंगामा
आप सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा का ढोंग कर रही है, जबकि मंदिरों में घोटालों की अनदेखी कर रही है। उन्होंने अयोध्या में 13,000 एकड़ भूमि घोटाले का जिक्र किया, जिससे सत्ता पक्ष के सांसदों ने जोरदार विरोध किया और नारेबाजी की।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 संसद से पास हो चुका है, लेकिन इसके इर्द-गिर्द राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक बहस अभी जारी है। एक तरफ सरकार इसे पारदर्शिता और सुधार का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक हस्तक्षेप और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला मान रहा है। अब देखना यह होगा कि यह विधेयक जमीनी स्तर पर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में कितना बदलाव ला पाता है।