देश अब पक्षियों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों को लेकर पहले से कहीं ज्यादा सजग हो चला है। इसी दिशा में एक साहसिक और दूरदर्शी पहल करते हुए भारत सरकार ने एक महत्वाकांक्षी अंतर-मंत्रालयी वैज्ञानिक अध्ययन की शुरुआत की है। इस अध्ययन का उद्देश्य है – जूनोटिक बीमारियों का समय रहते पता लगाना और मानव, पक्षी तथा वन्यजीवों के स्वास्थ्य के बीच गहरे संबंधों को समझना।


इस परियोजना का शीर्षक है – “वन हेल्थ दृष्टिकोण का उपयोग करके पक्षी-मानव संपर्क से जूनोटिक संक्रमण का पता लगाने के लिए एक निगरानी मॉडल का निर्माण”, जिसकी शुरुआत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुख्यालय में की गई। यह अध्ययन विशेष रूप से सिक्किम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के चुनिंदा पक्षी अभयारण्यों और आर्द्रभूमियों में किया जाएगा।
क्यों है यह अध्ययन खास?
यह पहल वन हेल्थ मिशन के अंतर्गत की जा रही है, जो एक ही फ्रेमवर्क में मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एकीकृत करने का प्रयास है। इसका मुख्य फोकस है — प्रवासी पक्षियों के स्वास्थ्य की निगरानी, साथ ही वहां कार्यरत कर्मचारियों और स्थानीय समुदायों में संभावित संक्रमणों का पता लगाना।
क्या कहा विशेषज्ञों ने?
डॉ. राजीव बहल, महानिदेशक, ICMR ने कहा,
“जैसे देश की रक्षा के लिए रडार प्रणाली आवश्यक है, वैसे ही स्वास्थ्य खतरों से बचाव के लिए मजबूत निगरानी तंत्र भी जरूरी है।”
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि वन हेल्थ मिशन वैश्विक विज्ञान को भारत के स्वास्थ्य सुरक्षा ढांचे में शामिल करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
डॉ. रंजन दास, निदेशक, एनसीडीसी ने कहा,
“जूनोटिक संक्रमण के कारकों को समझना समय पर कार्रवाई के लिए अनिवार्य है। इस मॉडल से राष्ट्रीय रणनीति को नई दिशा मिलेगी।”
डॉ. संगीता अग्रवाल, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय से, ने कहा,
“यह अध्ययन विज्ञान से नीति तक की यात्रा में एक महत्वपूर्ण कड़ी बनेगा।”
श्री सुनील शर्मा, सहायक वन महानिरीक्षक, MoEFCC ने इसे समुदायों और जैव विविधता की सुरक्षा की दिशा में एक ठोस कदम बताया।
क्या होगा इस अध्ययन में?
- प्रवासी पक्षियों और पर्यावरण से नमूने लिए जाएंगे।
- नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS) जैसी आधुनिक तकनीकों से उभरते रोगजनकों की पहचान की जाएगी।
- बचावकर्मियों और पशु चिकित्सकों की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा।
भारत की तैयारियों को मिलेगा नया आधार
भारत मध्य एशियाई प्रवासी पक्षी मार्ग का एक अहम केंद्र है। ऐसे में यह अध्ययन न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की नींव रखेगा, बल्कि वन्यजीव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव कल्याण के बीच संतुलन को भी सशक्त करेगा।
इस ऐतिहासिक पहल के माध्यम से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वह सिर्फ बीमारियों से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें जड़ से रोकने के लिए भी पूरी तरह तैयार है। वन हेल्थ मिशन न केवल नीति-निर्माण में विज्ञान की भूमिका को मजबूत करता है, बल्कि भारत को एक सतर्क और जागरूक स्वास्थ्य राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है।