–परिचर्चा–
आज मोबाइल हम सबके जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है। व्यक्ति के लिए मोबाइल इतना जरूरी हो गया है कि थोड़ी देर के लिए व्यक्ति को इससे अलग कर दिया जाए, तो लगता है, जैसे शरीर का कोई अंग अलग कर दिया गया है। व्यक्ति ऐसे छटपटाने लगता है, जैसे सब कुछ खत्म हो गया। मोबाइल क्रांति ने जहाँ आज के मानव का जीवन बदला है, तो वहीं पढ़ने-लिखने का माहौल भी खत्म कर दिया है। मोबाइल से व्यक्ति घंटे का काम मिनट में और मिनटों का काम सैकेंडों में कर लेता है। व्यापारी लोग इसका सदुपयोग कर अपने व्यापार को ऊँचाइयाँ दे रहे हैं, सरकारी कामकाज से लेकर प्राइवेट सेक्टर तक मोबाइल ने बड़े बदलाव किए हैं। कोरोना काल में इसी मोबाइल क्रांति ने लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखा था और लोगों को सिखाया था कि इस टेक्नोलॉजी का सही सदुपयोग किया जाए, तो हम क्या-क्या लाभ पा सकते हैं। लेकिन जब हम मोबाइल के द्वारा मानव के जीवन में हानि की बात करते हैं, तो सबसे बड़ा तो यही करण है कि इसने पठन-पाठन के माहौल पर असर डाला है। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को मोबाइल की लत लग चुकी है। हमारे बच्चे पढ़ाई के बहाने मोबाइल पर क्या देख रहे हैं, यह सवाल हर अभिभावक के लिए गंभीर है। इसी समस्या को लेकर हमने अपने मित्रों, विद्यार्थियों से वार्ता की। आइए, जानते हैं, उनकी कलम से, उनकी ही जुवानी-
बच्चों को मोबाइल प्रयोग करने की समय-सीमा करें निर्धारित
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन बच्चों की जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए है। यह तकनीक संवाद का एक साधन होने के साथ-साथ शिक्षा और मनोरंजन का महत्वपूर्ण स्रोत भी है। लेकिन क्या बच्चों को मोबाइल देना उचित है ? इस पर हमें विचार करना जरूरी है।
लाभ
बच्चों को मोबाइल देने के कई फायदे हैं। सबसे पहले मोबाइल के जरिए बच्चे इंटरनेट से जुड़ सकते हैं। वे ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री, वीडियो और ज्ञानवर्धक ऐप्स का उपयोग करके अपनी पढ़ाई को बेहतर बना सकते हैं। इससे उन्हें नई जानकारी हासिल करने और कौशल विकसित करने का अवसर मिलता है। दूसरा मोबाइल बच्चों को तकनीकी कौशल सीखने में मदद करता है, जो भविष्य में उनके कैरियर के लिए आवश्यक हो सकता है। आज के कार्यस्थल पर डिजिटल कौशल की बहुत मांग है। इसके अतिरिक्त मोबाइल के जरिए बच्चे अपने दोस्तों और परिवार से जुड़े रह सकते हैं, जिससे उनकी सामाजिकता बढ़ती है।
हानियाँ
हालांकि बच्चों को मोबाइल देने के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। अत्यधिक स्क्रीन टाइम स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे आँखों की समस्याएँ, सिरदर्द और मोटापे का जोखिम। साथ ही मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है, जैसे चिंता और अवसाद। बच्चों को सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग की लत लगने का खतरा भी रहता है, जिससे उनकी पढ़ाई और सामाजिक जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा, अनधिकृत सामग्री और साइबर बुलिंग का खतरा भी बढ़ जाता है, जो बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इसलिए बच्चों को मोबाइल देना एक जटिल विषय है। इसके कई लाभ होने के बावजूद, माता-पिता को इसके हानिकारक प्रभावों पर ध्यान देना चाहिए। उचित निगरानी, समय की सीमाएं निर्धारित करना और स्वस्थ उपयोग के नियम बनाना महत्वपूर्ण है। इस संतुलन के जरिए, हम बच्चों को मोबाइल का सही तरीके से उपयोग करने में मदद कर सकते हैं, जिससे वे इसका लाभ लेते हुए सुरक्षित रह सकें।
बच्चों पर मोबाइल फोन का प्रभाव : लाभ और जोखिम
बच्चों पर मोबाइल फोन का प्रभाव एक जटिल मुद्दा है, जो उल्लेखनीय लाभ और महत्वपूर्ण जोखिम दोनों प्रस्तुत करता है। एक ओर मोबाइल संचार की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे माता-पिता अपने बच्चों से जुड़े रह सकते हैं और जीपीएस ट्रैकिंग जैसी सुविधाओं के माध्यम से सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। वे शैक्षिक संसाधनों और ऐप्स तक पहुँच भी प्रदान करते हैं जो कि सीखने और डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर अत्यधिक मोबाइल उपयोग से मोटापा, नींद में परेशानी और दृष्टि संबंधी समस्याओं सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के दबाव और साइबरबुलिंग के कारण बच्चों में चिंता और अवसाद बढ़ सकता है। अनुचित सामग्री और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आना एक और गंभीर चिंता का विषय है। मोबाइल फोन के उपयोग के लाभों और नुकसान के बीच संतुलन बनाने के लिए माता-पिता की ओर से सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी होनी चाहिए, जिसके द्वारा बच्चों की भलाई की रक्षा के लिए सीमाएँ निर्धारित करने के साथ-साथ जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सके।
बच्चों के लिए मोबाइल पर कार्य करने की बने समय-सीमा
आज का समय तकनीक का समय है। हर क्षेत्र में तेजी से विकास करती आधुनिक दुनिया में हर अभिभावक अपने बच्चे को कम से कम उम्र में अधिक समझदार बनाना चाहता है। वे उनकी हर मांग को पूरी करने के लिए तत्पर रहते हैं। इसके लिए वे अक्सर बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं। परवरिश की कठिनाई से बचने और बच्चे का मन बहलाव करने में अक्सर अभिभावक यह भूल जाते हैं कि इस उम्र में मोबाइल का उपयोग उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसकी लत से बच्चों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता आती है। कई अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में भी यह अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में उन्हें नियमित एक समय-सीमा निर्धारित कर अपनी उपस्थिति में बच्चों को मोबाइल पर कार्य करने में सहायता करनी चाहिए।
जिनके कंधों पर भविष्य का भार, उन्हें बचाना होगा
हर घटना के दो पहलू होते हैं। सकारात्मक और नकारात्मक। दुनिया में कोई भी आविष्कार, खोज, रचना मनुष्य जाति के जीवन को सुगम बनाने के लिए, भौतिक दूरियों को कम करने के लिए, सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों के विकास के लिए होती है। समय, काल और परिस्थितियों के बदलते परिदृश्य में वही चीज, जब वो आमजन तक पहुँच जाती है, तो उसका प्रभाव समाज, परिवार और बालमन पर पड़ता है। किसी शायर ने क्या खूब लिखा है-
माता-पिता बच्चों की जिद के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। उन्हें मल्टीमीडिया फोन दिलाकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। जबकि बच्चे मोबाइल पर क्या सर्च कर रहे हैं ? वे क्या देख रहे हैं ? किससे चैटिंग कर रहे हैं ? कैसे वीडियोज़ और फोटोज उनकी गैलरी में हैं ? इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं, जो एक अकल्पनीय चिंता का विषय है। बच्चे मोबाइल चलाते-चलाते कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं, इसका अंदाजा माता-पिता नहीं लगा पाएंगे।
आज दुनिया भर में बच्चे सोशल मीडिया के दुरूपयोग का शिकार हो रहे हैं। उन्हें इंटरनेट पर ब्लैकमेल किया जा रहा है। अश्लील फोटोज मांगे जा रहे हैं। जो देखना नहीं चाहते वो सरेआम दिखाया जा रहा है। ऐसे में हम अपने बच्चों के मानसिक संतुलन को संभाल सकें, हमारे लिए बहुत बड़ी पूँजी होगी। अगर माता-पिता की निगरानी में बच्चे मोबाइल का प्रयोग कर रहे हैं, तो ठीक है कि उन्हें बहुत जरूरी चीज देखने की अल्पावधि दी जा सकती है। अगर ऐसा नहीं है, तो मोबाइल देना खतरों से खाली नहीं होगा। जिनके कंधों पर भविष्य का भार रखा जाना है, उनमें ऐसी लत तो बर्दाश्त नहीं की जाएगी।